वरूण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी ही बीजेपी में ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली है। कई और नेता भी कार्यकारिणी में जगह बनाने से चूक गए हैं। गुरूवार को घोषित हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सूची से बाहर हुए नेताओं को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हैं और इसे लेकर माहौल हल्का-फुल्का गर्म है।
वरूण की ही तरह किसानों के पक्ष में लगातार आवाज़ उठाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह को भी पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह नहीं दी है। हालांकि पार्टी के दिग्गजों लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का नाम इसमें शामिल है। कार्यकारिणी में कुल 80 नेताओं को जगह मिली है।
स्वामी भी बाहर
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी को भी पार्टी ने बाहर रखा है। स्वामी मोदी सरकार पर खासे हमलावर रहे हैं और बीजेपी के सोशल मीडिया इंचार्ज अमित मालवीय से भी भिड़ चुके हैं।
इसके अलावा पूर्व सांसद और राम मंदिर आंदोलन के जरिये अपनी पहचान बनाने वाले विनय कटियार, पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस आहलूवालिया को भी कार्यकारिणी में जगह नहीं मिल सकी है।
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जिन नए नेताओं को कार्यकारिणी में जगह मिली है, उनमें कांग्रेस छोड़कर आए और मोदी कैबिनेट में जगह बनाने में कामयाब रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी शामिल हैं।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से मात खाने वाली बीजेपी ने वहां के भी कुछ नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी है। इनमें अभिनेता से नेता बने मिथुन चक्रवर्ती, पूर्व केंद्रीय मंत्री दिनेश त्रिवेदी, अनिर्बान गांगुली, और स्वप्न दासगुप्ता शामिल हैं। तमिल अभिनेत्री खुशबू सुंदर का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है।
नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पहली बैठक 7 नवंबर को दिल्ली में होगी। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की अध्यक्षता में यह राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पहली बैठक होगी।
किसान आंदोलन ने बढ़ाई चिंता
किसान आंदोलन के बाद जिस तरह के हालात कुछ राज्यों में बने हैं, उसने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी को इस बात का डर है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव में इसका बड़ा असर हो सकता है।
बीजेपी जानती है कि उत्तर प्रदेश किसी क़ीमत पर नहीं हारना है क्योंकि उत्तर प्रदेश में हार का सीधा असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर होगा। अगर बीजेपी को उत्तर प्रदेश में हार मिलती है तो एंटी बीजेपी फ्रंट बनाने में जुटे विपक्षी दलों के नेताओं के हौसले भी बढ़ जाएंगे। लखीमपुर खीरी की घटना ने मोदी सरकार और बीजेपी को और बुरी तरह बेचैन कर दिया है।
बात साफ है कि पार्टी के लिए किसान आंदोलन एक बड़ी चुनौती है और इससे वह कैसे निपटेगी, इसका रास्ता वह बड़ी शिद्दत से खोज रही है।
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