विपक्षी एकता की पैरोकारी करती रहीं ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच क्या सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? कम से कम ममता बनर्जी के बयान से तो ऐसा ही लगता है। दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने वाली ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाक़ात को लेकर एक सवाल के जवाब में पहले तो कहा कि 'वे पंजाब चुनाव में व्यस्त हैं', लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि 'हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए? क्या यह संवैधानिक बाध्यता है?' ममता बनर्जी के इस बयान में तल्खी तो दिखती ही है, इसके संकेत भी साफ़-साफ़ मिलते हैं।
इस बयान को उस संदर्भ में आसानी से समझा जा सकता है जिसमें ममता अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का पूरे देश में विस्तार करने में जुटी हैं और उसमें कई नेता कांग्रेस छोड़कर शामिल हो चुके हैं।
ममता बनर्जी लगातार कांग्रेस के नेताओं को तोड़ रही हैं। गोवा से लेकर दिल्ली, हरियाणा और यूपी में जिन नेताओं को तृणमूल अपने खेमे में ला रही है उसमें सबसे ज़्यादा नुक़सान कांग्रेस का ही हो रहा है। हाल ही में दिल्ली में कीर्ति आज़ाद टीएमसी में शामिल हुए हैं। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरो के अलावा महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देव, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे ललितेश पति त्रिपाठी और राहुल गांधी के पूर्व सहयोगी अशोक तंवर भी कांग्रेस से टीएमसी में शामिल हो गए हैं।
राजनीतिक हलकों में कांग्रेस नेताओं के तृणमूल यानी टीएमसी में जाने पर दोनों दलों के बीच रिश्तों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अब तक माना जाता रहा है कि ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच अच्छे समीकरण रहे हैं। दोनों नेता अक्सर विपक्षी एकता की बात करती रही हैं और बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए के ख़िलाफ़ एकजुटता की बात करती रही थीं। जब ममता बनर्जी के दिल्ली आने की ख़बर आई तो भी इसका हवाला दिया गया था कि वह सोनिया गांधी से मिल सकती हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
ममता ने आज उत्तर प्रदेश चुनावों को लेकर बात की और समाजवादी पार्टी का ज़िक्र किया, लेकिन कांग्रेस के बारे में ज़्यादा नहीं बोला। उन्होंने कहा, 'अगर तृणमूल यूपी में बीजेपी को हराने में मदद कर सकती है, तो हम जाएंगे... अगर अखिलेश हमारी मदद चाहते हैं तो हम देंगे।' लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, 'हमने गोवा और हरियाणा में शुरुआत की है... लेकिन मुझे लगता है कि कुछ जगहों पर क्षेत्रीय पार्टियों को लड़ना चाहिए। यदि वे चाहते हैं कि हम कैंपेन करें तो हम मदद करेंगे।'
तृणमूल प्रमुख ने यह भी कहा कि वह 1 दिसंबर को एक व्यावसायिक शिखर सम्मेलन के लिए मुंबई जाएंगी जहां वह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शरद पवार से मुलाक़ात करेंगी।
इन कवायदों को बंगाल में अप्रैल-मई में विधानसभा चुनावों में जीत के बाद से ममता बनर्जी की 2024 के आम चुनावों में बीजेपी को चुनौती देने की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। कई राज्यों में टीएमसी में कई नेताओं को शामिल करने को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है। समझा जाता है कि टीएमसी के इस प्रयास से उसे हाल के चुनावों में कोई ज़्यादा सीट मिलने की संभावना तो नहीं है, लेकिन कांग्रेस का नुक़सान ज़रूर हो सकता है।
हाल ही में कांग्रेस ने भी यह कहा था कि टीएमसी इस बात पर आत्ममंथन करे कि वह गोवा में चुनाव लड़कर बीजेपी को ही मज़बूत कर रही है। कांग्रेस ने तंज कसा था कि चुनाव कोई पर्यटन या सैर-सपाटा नहीं है।
वैसे बता दें कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता के लिए काम करने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस पर हमला बोला था। उन्होंने कहा था, 'बीजेपी कई दशकों तक कहीं नहीं जाने वाली और यहीं पर शायद राहुल गांधी के साथ परेशानी है कि वह यह सोचते हैं कि यह बस वक़्त भर की बात है और कुछ समय बाद लोग प्रधानमंत्री मोदी को हटा देंगे। लेकिन ऐसा नहीं होने जा रहा है।'
बहरहाल, ताज़ा हालात में विपक्षी एकता के लिए जो लंबे समय से कवायद की जाती रही थी वह खटाई में पड़ती दिख रही है।
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