तमिलनाडु विधानसभा ने 10 विधेयकों को पारित करने के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को शनिवार को स्वीकार कर लिया। राज्यपाल आर.एन. रवि ने इन विधयेकों को सहमति देने के बजाय रोका और फिर सरकार को वापस लौटा दिया। शनिवार को सदन ने इन्हें फिर से पास कर दिया। बिल जब फिर से पास किया जा रहा था तो एआईएडीएमके और भाजपा के सदस्य सदन में मौजूद नहीं थे।
10 में से दो विधेयक एआईएडीएमके शासन के दौरान 15वीं विधानसभा द्वारा और आठ बिल 16वीं विधानसभा द्वारा पारित किए गए थे और उन्हें राज्यपाल के पास उनकी सहमति के लिए भेजा गया था। लेकिन तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि लंबे समय से इस पर राजनीति कर रहे थे। इन्हें पास करने के लिए मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने बार बार अनुरोध भी किया।
स्टालिन ने आरोप लगाया कि राज्यपाल राज्य के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं और वो यहां के विकास को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। स्टालिन ने कहा- “राज्यपाल ने विधेयकों को लंबे समय तक रोक कर रखा और 13 नवंबर, 2023 को, बिना कोई कारण बताए विधेयकों को वापस कर दिया। विधानसभा का मानना है कि सहमति को रोकना और बिना कोई कारण बताए उन्हें लौटाना स्वीकार्य नहीं है।
नियम 143 के अनुसार, जब विधानसभा द्वारा पारित कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाया जाता है तो पुनर्विचार के लिए विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उन्हें फिर से विधानसभा के सामने रखा जाता है और मतदान के जरिए पास किया जाता है।
जिन विधेयकों पर राज्यपाल ने अपनी सहमति रोक रखी थी उनमें से अधिकांश कुछ राज्य विश्वविद्यालयों की विधियों में संशोधन करने के प्रस्ताव से संबंधित हैं ताकि मुख्यमंत्री को राज्यपाल की जगह कुलाधिपति की भूमिका निभाने में सक्षम बनाया जा सके।
बहरहाल, इस मुद्दे पर रस्साकशी और तेज होने की आशंका है। क्योंकि राज्यपाल की गतिविधियों से तमिलनाडु सरकार खुश नहीं है। राज्यपाल राज्य में घूम-घूमकर राजनीतिक बयान देते हैं और प्रत्यक्ष रूप से सरकार पर निशाने साधते हैं। डीएमके नेताओं ने कई बार कहा है कि तमिलनाडु के राज्यपाल भाजपा एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं।
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