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कभी वाजपेयी को कहा था धूर्त-पियक्कड़, आज हैं बीजेपी सांसद

  • 'वाजपेयी एक धूर्त व्यक्ति हैं (है) और मुझे तो शक है कि भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने (उसने) अंग्रेज़ों के लिए मुख़बिरी न की हो।’
  • ‘जापान के विदेश मंत्री ने एक रात्रिभोज रखा था। वाजपेयी जो उसमें देश के विदेश मंत्री के तौर पर आए थे (आया था), बिल्कुल टुन्न थे (था)। मैं भी उस भोज में आमंत्रित था। विदेश मंत्री को नशे में धुत देखकर मैं तो हतप्रभ रह गया।'
  • 'इमरजेंसी के नायक' के तौर पर मुझे जो ख्याति मिली थी, वाजपेयी उसे बिल्कुल पचा नहीं पा रहे थे (रहा था)। साथ ही साथ वह इस कोशिश में भी थे (था) कि इंदिरा गाँधी के सामने उन्होंने (उसने) जो खुल्लमखुल्ला समर्पण कर दिया था, वह बात ढकी-छुपी रहे...'
  • 'मोरारजी और चरण सिंह रामायण की कैकेयी की तरह हैं। लेकिन जनता रामायण (महाभारत?) में शकुनि की भूमिका वाजपेयी ने निभाई थी।'

दरअसल, ये सारी बातें बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने 1997 में तमिल साप्ताहिक कुमुदम में धारावाहिक रूप में प्रकाशित अपनी राजनीतिक जीवनी में लिखी हैं। यह तब की बात है जब वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष पर थे और 1996 में वह एक बार प्रधानमंत्री भी बन चुके थे। वाजपेयी से उनकी पुरानी खुन्नस रही थी और इस जीवनी में उन्होंने वाजपेयी के ख़िलाफ़ काफ़ी ज़हर उगला था।

स्वामी द्वारा लिखी ये सारी बातें तमिल में थीं जिसके कुछ चुनिंदा हिस्सों का अंग्रेज़ी अनुवाद आउटलुक पत्रिका ने 23 मार्च 1998 के अपने अंक में छापा। नीचे उसी का हिंदी अनुवाद मैं पाठकों के लाभार्थ पेश कर रहा हूँ। इसमें मैं वाजपेयी के लिए सम्मानजनक सर्वनाम (उन्हें, उन्होंने आदि) और क्रियाओं (रहे, आए आदि) का इस्तेमाल कर रहा हूँ लेकिन इस मक़सद से कि आप स्वामी की ज़हरबुझी भाषा का स्वाद ले सकें, मैंने वाजपेयी के लिए हर जगह वैसे ही सर्वनाम और विशेषण इस्तेमाल किए हैं जो स्वामी विरोधियों के बारे में बोलते समय करते हैं।

तो जानिए, बीजेपी के सांसद सुब्रमण्यन स्वामी के मन में बीजेपी के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी के बारे में क्या धारणा थी या अब भी है। ध्यान रहे, स्वामी ने आज तक इन बातों के लिए न तो माफ़ी माँगी है, न ही अपने शब्द वापस लिए हैं। इसके बावजूद बीजेपी ने क्यों उनको सांसद बनाया, इसके बारे में मैं अपना आकलन इस पोस्ट के अंत में दूँगा।

स्वामी ने क्या कहा था-

  • जब (1977 में) कांग्रेस पार्टी को हराकर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो कई लोगों को उम्मीद थी कि इमरजेंसी के दौरान मैंने जो कमाल का प्रतिरोध दिखाया था, उसको देखते हुए मुझे अवश्य कैबिनेट में जगह मिलेगी। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी टाँग अड़ाकर इसे रुकवा दिया। (इमरजेंसी के दौरान) जेल से (परोल पर) बाहर आने के लिए वाजपेयी ने इंदिरा गाँधी को एक माफ़ीनामा लिखकर एक ख़राब मिसाल क़ायम की थी। लेकिन उनके (उसके) नियंत्रण में जनसंघ के 91 सांसद थे। मुझे ‘इमरजेंसी के नायक’ के तौर पर जो ख्याति मिली थी, उसे वह पचा नहीं सके (सका)। इसके अलावा उन्होंने (उसने) इंदिरा के सामने जो खुल्लमखुल्ला समर्पण किया था, उसकी बदनामी को भी वह छुपाना चाहते थे (चाहता था)। इसलिए उन्होंने (उसने) मोरारजी देसाई से मिलकर ऐसी चालाकी की कि मुझे केवल राज्यमंत्री का पद मिल सका।
subramanian swamy comment atal bihari vajpayee bjp politics - Satya Hindi
वाजपेयी और मोरारजी देसाई (बिलकुल दाएँ) जो भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।
  • विदेश मंत्री के तौर पर वाजपेयी ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी कि मैं चीन न जा पाऊँ और वह इसमें एक साल के लिए कामयाब रहे (रहा)। लेकिन 1978 में मोरारजी ने मेरी चीन यात्रा को हरी झंडी दिखा दी। मोरारजी चीन के बारे में सिर्फ़ मेरे विचार सुनते थे, वाजपेयी की समझ को बिल्कुल नकार देते थे। वाजपेयी ख़ाली सोवियत संघ को ख़ुश करना चाहते थे (चाहता था)। उनको (उसको) विदेश मंत्री बनाने का कारण एक ही था कि उनकी (उसकी) मुट्ठी में जनसंघ के 91 सांसद थे और नंबरों की इस ताक़त के कारण ही उनको (उसको) विदेश मंत्री की कुर्सी से नहीं हटाया गया।
  • हालाँकि मोरारजी देसाई की सरकार को गिराने के लिए चरण सिंह की काफ़ी बदनामी हुई लेकिन असली गुनाहगार थे (था) वाजपेयी और उनके (उसके) साथ रामकृष्ण हेगड़े। दोनों ने जानबूझकर चरण सिंह और मोरारजी के बीच झगड़ा करवा दिया और इस चक्कर में मोरारजी मारे गए। 279 सासंदों के सपोर्ट का दावा करते हुए यही दोनों राष्ट्रपति से मिले थे। इनमें से भी 23 सासंदों के सिग्नेचर जाली थे। जाँच एजंसियों ने राष्ट्रपति को आगाह कर दिया और उन्होंने इसकी जानकारी सबको दे दी। इससे मोरारजी को शॉक लगा और उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया और पब्लिक लाइफ़ से हमेशा के लिए दूर चले गए जबकि होना तो यह चाहिए था कि उस दिन हेगड़े और वाजपेयी को सार्वजिनक जीवन से अवकाश ले लेना चाहिए था।
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वाजपेयी और चौधरी चरण सिंह (दाएँ)। चरण सिंह मोरारजी सरकार को गिराने के बाद कुछ समय के लिए कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे।
  • मोरारजी और चरण सिंह को उनकी नैतिकता के कारण जाना जाता है। लेकिन जनता सरकार में मौजूद कुछ अनैतिक लोगों ने अपने निजी फ़ायदे के लिए दोनों में झगड़ा करवा दिया। मिसाल के तौर पर जब मोरारजी ने वाजपेयी को चेतावनी दी कि वह अपनी पीने की आदत छोड़ दें (दे) तो वह झेंप गए (गया)। दिल्ली में जापानी विदेश मंत्री ने एक दावत रखी थी। वाजपेयी भी उसमें विदेश मंत्री के तौर पर मौजूद थे (था)। मुझे भी उस डिनर में बुलाया गया था। जब मैंने वहाँ देखा कि विदेश मंत्री तो बिलकुल टुन्न हैं (है) तो मैं तो हतप्रभ रह गया।
  • जब मोरारजी ने मुझसे पूछा तो मैंने सारी बात बता दी। तब उन्होंने मेरे सामने ही उनको (उसको) बुलाया और लताड़ लगाई। वह वहाँ ऐसे खड़े थे (खड़ा था) जैसे कोई छात्र चोरी करते पकड़ा गया हो और प्रिंसिपल के सामने खड़ा हो। इस (अपमान) का बदला चुकाने के लिए और मोरारजी देसाई को कमज़ोर करने के लिए उन्होंने (उसने) चरण सिंह के मन में ज़हर घोलना शुरू किया। यह वाजपेयी ही थे (था) जिन्होंने (जिसने) चरण सिंह के मन में प्रधानमंत्री बनने का आइडिया डाला। वह मोरारजी और चरण सिंह दोनों से अलग-अलग मिलते थे (मिलता था) और दोनों के ख़िलाफ़ मनगढ़ंत बातें फैलाने लगे (लगा)। लोग ऐसा समझते हैं कि जनता पार्टी को चरण सिंह ने तोड़ा। लेकिन सच्चाई यह है कि वाजपेयी ने ही जनता पार्टी नामक क़िले में डायनामाइट लगाया।
  • मोरारजी और चरण सिंह रामायण की कैकेयी की तरह थे। लेकिन जनता रामायण (महाभारत?) में शकुनि की भूमिका निभाई थी वाजपेयी ने।
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जगजीवन राम (बिलकुल बाएँ) वाजपेयी और कुछ अन्य लोगों के साथ। जगजीवन राम प्रधानमंत्री नही बन पाए क्योंकि स्वामी के अनुसार वाजपेयी आख़िरी क्षणों में अपने वादे से पलट गए।

वाजपेयी से खुन्नस खानेवाले स्वामी 1997 में किए गए अपने इन ‘भंडाफोड़ों’ के बावजूद वाजपेयी को 1998 में दुबारा प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सके। जब केंद्र में नई मिलीजुली सरकार आई तो उन्होंने अपना स्वर बदला और वाजपेयी के बजाय RSS को दोष देने लगे। 

(1998 का यह इंटरव्यू इस लिंक पर पढ़ें।)

स्वामी उन दिनों जयललिता के गुड बुक्स में थे और उन्हें उम्मीद थी कि वाजपेयी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया जाएगा।

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लेकिन जब केंद्र सरकार में जयललिता के दबाव डालने पर भी उनको मंत्री नहीं बनाया गया तो वह सरकार गिराने के मक़सद में लग गए और 1999 में सोनिया गाँधी व जयललिता से मिलकर NDA सरकार गिराने में कामयाब रहे। लेकिन वाजपेयी कुछ महीनों बाद हुए चुनावों में फिर सत्ता में आ गए। इसके बाद स्वामी ने पक्के सेक्युलर को चोला पहन लिया था और उन्होंने 2000 में फ्रंटलाइन में लिखे एक लेख में RSS के बारे में कई नेगेटिव बातें कीं। इसमें उन्होंने और भी कई बातों के अलावा कहा - 
  • RSS के गेम प्लान का पहला हिस्सा यह है कि अपने सारे विरोधियों को बदनाम करो लेकिन जो आपकी शरण में आ जाए उसको हर क़ीमत पर बचाओ। संदेश यह कि हमारा साथ दो और जो चाहे करो। हमारा विरोध करो और कोर्ट के चक्कर काटने को तैयार रहो।
  • RSS के गेम प्लान का दूसरा हिस्सा यह है कि जो भी संस्था उसके आगे बढ़ने में रुकावट डालती हो या उसके दायरे को सीमित करती हो, उसपर ऐसा वार करो कि जनता का उसपर से विश्वास हट जाए।
  • RSS के गेम प्लान का तीसरा हिस्सा यह है कि अपने अजेंडा को पूरा करने के लिए ख़ाका तैयार रखो।… उसने इतिहास की किताबों में क्या बदलाव करना है, यह रेडी करके रखा है। उन्होंने अपने वफ़ादारों के बीच नए संविधान का प्रारूप भी बँटवा दिया है।

स्वामी के लेख आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।

अब आपके भी दिमाग़ में यह सवाल उठ रहा होगा कि वाजपेयी और RSS के बारे में ऐसी विषैली बातें कहनेवाले ये बड़े नेता आज भी बीजेपी में क्यों हैं? इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं, इसके बारे में चर्चा कल के पोस्ट में।

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नीरेंद्र नागर
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