कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
पीछे
कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
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पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
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लेकिन यूपी में आज सारे दलों के नेताओं की एक दर्जन से ज्यादा रैलियां थीं।
सिर्फ एक दिन की बात नहीं है। लेकिन हम सिर्फ आज की बात करते हैं।
ओमिक्रॉन, कोरोना से बेखौफ।
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यूपी में आज हुई कुछ रैलियों की फोटो गौर से देखिए। अपार जनसमूह हिलोरें मार रहा है। नेता गदगद है। लेकिन आप?
गृह मंत्री अमित शाह आज सुल्तानपुर और हरदोई में थे। दोनों जगह की तस्वीरें देखिए।
मुख्यमंत्री योगी कानपुर में तो थे ही। उसके अलावा भी उनके आज ही ढेरों प्रोग्राम थे।
इस रैली में उमड़ी भीड़ ने सैकड़ों कोरोना के जोखिम में डाला।
अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और बेटी की कोविड 19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उन्होंने खुद को आइसोलेट कर रखा है।
अखिलेश की रिपोर्ट नेगेटिव थी, लेकिन उन्होंने फिर भी तीन दिन तक एहतियातन घर में बंद रखा।
लेकिन नेता जब तक भीड़ के दर्शन न कर ले, उसका खाना कहां हजम होता है। तीन दिन के बाद आज अखिलेश भी निकले और उन्नाव के आसपास बड़ी रैलियां कीं। फोटो देखकर लगता है कि अखिलेश सहित भीड़ कोरोना की परवाह किए बिना पहुंची थी।
यूपी पुलिस भर्ती 2013 में चुने गए जिन युवकों को अभी तक नियुक्ति नहीं मिली है, उनमें से 2000 युवक आज अयोध्या में राम की पैड़ी पर धरना देने पहुंचे थे। किसी ने तो इन्हें धरना देने की अनुमति दी होगी।
योगी सरकार ने 2018 में इन सभी का मेडिकल कराया था। लेकिन नियुक्ति अब तक नहीं दी। इनकी मांग जायज है लेकिन नौकरी के लिए ये लोग पूरे यूपी से अयोध्या में जमा हुए थे। इस धरना, प्रदर्शन का धार्मिक-राजनीतिक महत्व भी था। इसलिए इनमें से किसी को कोरोना की परवाह नहीं थी। भविष्य में इंस्पेक्टर बनने वाले इन युवकों ने मास्क तक नहीं लगाया था।
अदालत को प्रधानमंत्री से लेकर राजनीतिक दलों तक से उम्मीद है कि वे रैलियां बंद कर देंगे।
एक हफ्ते हो चुके हैं जस्टिस शेखर यादव की टिप्पणी को, कोई पसीजा नहीं।
कोई पहल नहीं करना चाहता।
बीजेपी करेगी तो विपक्ष कहेगा, चुनाव हारने वाले थे, इसलिए मैदान छोड़ गए।
कांग्रेस, सपा, बीएसपी और बाकी दल रैलियां टालने का ऐलान कर बीजेपी पर दबाव तो बना सकते हैं लेकिन अगर बीजेपी नहीं मानी और रैलियां करती रही तो उन हालात का सदमा वो बर्दाश्त नहीं करना चाहते।
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बहरहाल, जनता को संकट में डाला जा रहा है। नेता खुद भी जोखिम ले रहे हैं। लेकिन नेता के मुकाबले जनता का जोखिम बड़ा है। नेता को जनता के जोखिम की परवाह नहीं है। उसके लिए अस्पताल और डॉक्टर सब हैं। जनता को तो कभी-कभी श्मशान और कब्रिस्तान भी नहीं मिलता। शव गंगा में बहाने पड़ते हैं।
बंगाल चुनाव को न अब जनता ने याद रखा और न नेता ने।
इससे यह बात साफ होती है कि कोराना आए या उसके डेल्टा और ओमिक्रॉन वैरिएंट आएं। नेता को चुनाव लड़ना है, आपको भीड़ बनना है।
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