किस पार्टी का नाम लें, किस नेता का नाम लें...आप ओमिक्रॉन और कोरोना
की वजह से घरों में दुबके और सहमे बैठे हैं और आपके नेता यूपी का
चप्पा-चप्पा छान रहे हैं। आप क्या हैं... आप उनके लिए भीड़ के अलावा कुछ
नहीं हैं।
यूपी में आपके घर कोई कार्यक्रम
है, आप 200 से ज्यादा लोग बुला नहीं सकते। रात में 11 बजे से सुबह 5 बजे तक
आप घर से बाहर नहीं निकल सकते।
लेकिन यूपी में आज सारे दलों के नेताओं की एक दर्जन से ज्यादा रैलियां थीं।
गाय-गोबर की बात को प्रमुखता से रखने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के
जस्टिस शेखर यादव की ओमिक्रॉन, कोरोना के बढ़ने के मद्देनजर की गई टिप्पणी
तक को हवा में उड़ा दिया गया।
जज साहब ने प्रधानमंत्री से कहा था कि यूपी
चुनाव टाल दिए जाएं और रैलियां बंद कर दी जाएं। पीएमओ ने कोई प्रतिक्रिया
नहीं दी। चुनाव आयोग अकेले फैसला कैसे लेगा।
सिर्फ एक दिन की बात नहीं है। लेकिन हम सिर्फ आज की बात करते हैं।
यूपी
में प्रमुख राजनीतिक दलों बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा के नेता आज रैलियां
करते घूम रहे थे। सैकड़ों-हजारों-लाखों की भीड़ से मुखातिब थे।
ओमिक्रॉन, कोरोना से बेखौफ।
“
यूपी में आज हुई कुछ रैलियों की फोटो गौर से देखिए। अपार जनसमूह हिलोरें मार रहा है। नेता गदगद है। लेकिन आप?
प्रधानमंत्री मोदी आज कानपुर में थे। मेट्रो का उद्घाटन किया। वो
मेट्रो से सवारी करते दिखे लेकिन मास्क नहीं था। वो मेट्रो स्टेशन पर
प्रवेश कर रहे हैं, मास्क नहीं था।
उन्होंने एक बड़े मजमे को संबोधित किया,
उस तस्वीर (सबसे ऊपर) को ही गौर से देख लीजिए।
गृह मंत्री अमित शाह आज सुल्तानपुर और हरदोई में थे। दोनों जगह की तस्वीरें देखिए।
हरदोई
की भीड़ को लेकर शाह उत्साहित हैं। उन्होंने फोटो ट्वीट किए। उस फोटो के
साथ लिखी इबारत को पढ़िए। अमित शाह ने जनसैलाब शब्द का इस्तेमाल किया है।
मुख्यमंत्री योगी कानपुर में तो थे ही। उसके अलावा भी उनके आज ही ढेरों प्रोग्राम थे।
अगर
बीजेपी के बाकी नेताओं की बात करें तो केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर आज
फुटबॉल मैच जैसे कार्यक्रम में बलिया पहुंचे थे।
अनुराग ठाकुर हिमाचल के
नेता हैं, पूर्वी उत्तर प्रदेश से उनका कोई संबंध नहीं है लेकिन चुनाव है
तो पूरा संबंध है। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने जिस भारी भीड़ के साथ अनुराग का
स्वागत किया, उसे देखकर लगता है कि इनमें से किसी को कोरोना का खौफ नहीं
है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आज
दो छोर पर थे। पहले वे हापुड़ पहुंचे और उसके बाद बदायूं में रैली को
संबोधित करने पहुंचे। कहां हापुड़ और कहां बदायूं। लेकिन साधन सम्पन्न
पार्टी का नेता कश्मीर से कन्याकुमारी तक दिन में दो बार आ-जा सकता है।
यूपी के डिप्टी सीएम भी वाराणसी पहुंचे हुए हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ सम्मेलन कर रहे हैं।
कांग्रेस की मैराथन रैली
लखनऊ के इकाना
स्टेडियम के बाहर कांग्रेस ने आज लड़कियों की मैराथन आयोजित की। यह बड़ा
कार्यक्रम था। इसमें युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.वी. श्रीनिवास
से लेकर प्रदेश अध्यक्ष लल्लू सिंह, पूर्व मंत्री राजीव शुक्ला समेत ढेरों
कांग्रेसी नेता पहुंचे थे।
इस रैली में उमड़ी भीड़ ने सैकड़ों कोरोना के जोखिम में डाला।
कांग्रेस
महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ऐसे ही कार्यक्रम में कल फिरोजाबाद जा रही
है। वहां भी भीड़ जुटाने की कोशिश में कांग्रेसी नेता जुटे हुए हैं।
अखिलेश क्यों पीछे रहें
अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और बेटी की कोविड 19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उन्होंने खुद को आइसोलेट कर रखा है।
अखिलेश की रिपोर्ट नेगेटिव थी, लेकिन उन्होंने फिर भी तीन दिन तक एहतियातन घर में बंद रखा।
लेकिन नेता जब तक भीड़ के दर्शन न कर ले, उसका खाना कहां हजम होता है। तीन दिन के बाद आज अखिलेश भी निकले और उन्नाव के आसपास बड़ी रैलियां कीं। फोटो देखकर लगता है कि अखिलेश सहित भीड़ कोरोना की परवाह किए बिना पहुंची थी।
यूपी पुलिस भर्ती 2013 में चुने गए जिन युवकों को अभी तक नियुक्ति नहीं मिली है, उनमें से 2000 युवक आज अयोध्या में राम की पैड़ी पर धरना देने पहुंचे थे। किसी ने तो इन्हें धरना देने की अनुमति दी होगी।
योगी सरकार ने 2018 में इन सभी का मेडिकल कराया था। लेकिन नियुक्ति अब तक नहीं दी। इनकी मांग जायज है लेकिन नौकरी के लिए ये लोग पूरे यूपी से अयोध्या में जमा हुए थे। इस धरना, प्रदर्शन का धार्मिक-राजनीतिक महत्व भी था। इसलिए इनमें से किसी को कोरोना की परवाह नहीं थी। भविष्य में इंस्पेक्टर बनने वाले इन युवकों ने मास्क तक नहीं लगाया था।
कौन करेगा पहल
अदालत को प्रधानमंत्री से लेकर राजनीतिक दलों तक से उम्मीद है कि वे रैलियां बंद कर देंगे।
एक हफ्ते हो चुके हैं जस्टिस शेखर यादव की टिप्पणी को, कोई पसीजा नहीं।
कोई पहल नहीं करना चाहता।
बीजेपी करेगी तो विपक्ष कहेगा, चुनाव हारने वाले थे, इसलिए मैदान छोड़ गए।
कांग्रेस, सपा, बीएसपी और बाकी दल रैलियां टालने का ऐलान कर बीजेपी पर दबाव तो बना सकते हैं लेकिन अगर बीजेपी नहीं मानी और रैलियां करती रही तो उन हालात का सदमा वो बर्दाश्त नहीं करना चाहते।
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बहरहाल, जनता को संकट में डाला जा रहा है। नेता खुद भी जोखिम ले रहे हैं। लेकिन नेता के मुकाबले जनता का जोखिम बड़ा है। नेता को जनता के जोखिम की परवाह नहीं है। उसके लिए अस्पताल और डॉक्टर सब हैं। जनता को तो कभी-कभी श्मशान और कब्रिस्तान भी नहीं मिलता। शव गंगा में बहाने पड़ते हैं।
बंगाल चुनाव में क्या हुआ था
याद
कीजिए अप्रैल में 2021 का बंगाल चुनाव। कोराना की दूसरी लहर कहर बरपा चुकी
थी। बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन हो चुका था। लेकिन नेता बंगाल
में बड़ी रैलियां कर रहे थे।
अदालत ने जब चुनाव
आयोग को फटकार लगाई तो आयोग ने 16 अप्रैल को बैठक बुलाकर कोरोना नियमों के
तहत आगे का चुनाव कराने का निर्देश दिया था।
बंगाल चुनाव को न अब जनता ने याद रखा और न नेता ने।
इससे यह बात साफ होती है कि कोराना आए या उसके डेल्टा और ओमिक्रॉन वैरिएंट आएं। नेता को चुनाव लड़ना है, आपको भीड़ बनना है।
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