शायद शिव सेना को यह बात समझ आ गयी है कि कांग्रेस के समर्थन के बिना बीजेपी को सत्ता से हटा पाना या हटाने की कोशिश करना संभव नहीं है। इसीलिए, शायद उसने अपने मुखपत्र 'सामना' के ताज़ा संपादकीय में लिखा है कि विपक्ष को एकजुट करने के शरद पवार के प्रयास में राहुल गांधी जैसे कांग्रेस के प्रमुख नेता को शामिल होना चाहिए।
एनसीपी मुखिया शरद पवार बीते कुछ दिनों से काफी सक्रिय हैं। एक पखवाड़े के भीतर वह तीन बार चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मुलाक़त कर चुके हैं और कुछ दिन पहले उन्होंने अपने दिल्ली आवास पर सभी विपक्षी दलों के नेताओं को बुलाया।
राजनीतिक समझदारी दिखाते हुए कहा गया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के संगठन राष्ट्र मंच की ओर से यह बैठक रखी गयी है लेकिन शरद पवार के घर पर इस बैठक के होने से यह चर्चा होनी लाजिमी थी कि यह विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद है। मतलब कि कुछ थर्ड फ्रंट जैसा।
यूपीए का हिस्सा होते हुए शरद पवार इस तरह की कोई बैठक बुलाते हैं और उससे कांग्रेस के नेता ग़ैर हाज़िर रहते हैं तो निश्चित रूप से सवाल उठेंगे ही। राष्ट्र मंच की बैठक से कांग्रेस के नेता ग़ैर हाज़िर रहे और राजनीतिक गलियारों में शरद पवार की 'मंशा' को लेकर कई सवाल उठे।
कांग्रेस को नीचा दिखाया?
सवाल यह उठा कि क्या यह कांग्रेस को नीचा दिखाने की कोशिश है क्योंकि बीते कुछ महीनों में शिव सेना ने यूपीए चेयरपर्सन पद के लिए शरद पवार की हिमायत की तो उससे इस बात की बू आने लगी कि कहीं कुछ पक ज़रूर रहा है और बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की जीत, पवार की प्रशांत किशोर से ताबड़तोड़ मुलाक़ातों से शक गहरा गया।
लेकिन शायद शिव सेना को इस बात का अंदाजा हुआ और उसने संपादकीय में लिखा है कि शरद पवार ने विपक्ष को जिस तरह अपने घर पर चाय-पान कराया, वैसे समारोह दिल्ली में अगर राहुल गांधी शुरू करें तो मरणासन्न विपक्ष के चेहरे पर ताजगी का भाव दिखने लगेगा।
विपक्षी दलों पर सवाल
शिव सेना ने 'सामना' में लिखा है कि देश के सामने आज समस्याओं का पहाड़ है और यह वर्तमान सरकार की ही देन है लेकिन वैकल्पिक नेतृत्व का विचार क्या है? ये कोई नहीं बता सकता। 'सामना' में आगे लिखा है कि विपक्षी दलों को एकजुट होना चाहिए और यही संसदीय लोकतंत्र की जरूरत है लेकिन बीते 7 वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का अस्तित्व बिल्कुल भी नज़र नहीं आता है।
पवार इस साल मार्च में ही कह चुके हैं कि देश में थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे की ज़रूरत है और वह इस मामले में कई पार्टियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। बंगाल चुनाव के बाद पवार की सियासी कसरत साफ करती है कि उनके इरादे कुछ और हैं।
पवार जैसे घाघ नेता को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने विपक्षी दलों को अपने घर पर सिर्फ़ मुद्दों पर चर्चा के लिए बुलाया होगा। यह माना जा रहा है कि पवार, ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर- ये तीनों मिलकर एंटी बीजेपी फ्रंट खड़ा करना चाहते हैं।
विपक्ष की ताक़त को समझाया
हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली शिव सेना ने विपक्षी दलों की सरकारों द्वारा बीजेपी और मोदी-शाह के विरोध को रेखांकित किया है। 'सामना' में लिखा गया है, “पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु में स्टालिन, बिहार में तेजस्वी यादव, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव, आंध्र में चंद्रबाबू, जगनमोहन, केरल में वामपंथी और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, शरद पवार व कांग्रेस ने एक साथ आकर जिस तरह से बीजेपी को रोका, वही वास्तव में विरोधी दलों का असली विचार मंथन है।”
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नेतृत्व का सवाल
विपक्षी दलों की अगुवाई कौन करेगा, 'सामना' में यह सवाल भी उठाया गया है। संपादकीय में लिखा है, “शरद पवार ये कर सकते हैं लेकिन फिर नेतृत्व का सवाल उठाया जा रहा है। कांग्रेस जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टी को इस पूरे घटनाक्रम में उतरना चाहिए और विपक्ष को एकजुट करने के शरद पवार के प्रयास में राहुल गांधी को शामिल होना चाहिए। तभी विरोधी दलों की एकत्रित शक्ति को वास्तविक बल प्राप्त हो सकेगा।”
शिव सेना ने एक बार फिर यूपीए को लेकर सवाल उठाया है और कहा है कि यूपीए नामक संगठन है, परंतु देश में सशक्त, संगठित विपक्ष है क्या? यह सवाल जस का तस ही है।
इससे साफ है कि शिव सेना और शायद शरद पवार भी यह बिलकुल नहीं चाहते कि ग़लती से भी यह मैसेज नहीं जाना चाहिए कि थर्ड फ्रंट को खड़ा करने की क़वायद हो रही है और उससे कांग्रेस को बाहर रखा जा रहा है।
कांग्रेस बिना संभव नहीं मोर्चा
वैसे भी देश के राजनीतिक हालात में बीजेपी के सामने एक मजबूत फ्रंट खड़ा करना कांग्रेस की मदद के बिना संभव ही नहीं है। क्योंकि जिन विपक्षी दलों की बात शिव सेना ने अपने संपादकीय में की है, वे अपने राज्यों के बाहर लगभग शून्य हालात में हैं।
कांग्रेस का प्रदर्शन भले ही कई राज्यों और लगातार दो लोकसभा चुनावों में ख़राब रहा हो लेकिन विपक्षी दलों में एक कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसका सभी राज्यों में मज़बूत संगठन है और कुछ राज्यों में अपने दम पर सरकार भी। इसलिए एनडीए के ख़िलाफ़ बनने वाले किसी भी मोर्चे में कांग्रेस को नज़रअंदाज करने की कोशिश शायद शिव सेना और शरद पवार भी नहीं करेंगे।
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