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मणिपुर हिंसा पर बीजेपी की एन बीरेन सिंह सरकार के दावों पर विपक्षी दल गंभीर सवाल उठा रहे हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने शनिवार को कहा कि हालांकि राज्य में मेइती और कुकी समुदायों के बीच चल रही जातीय झड़पों में अंतरराष्ट्रीय हाथ होने की पुष्टि या खंडन करना संभव नहीं है, लेकिन यह पूर्व नियोजित लगता है। सीएम के इस बयान के बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने सवाल किया है कि यदि यह हिंसा पूर्व नियोजित है तो फिर कौन ज़िम्मेदार है। राउत ने हिंसा में चीन का हाथ होने की बात कही और पूछा कि उसको कब सबक सिखाया जाएगा। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने भी कुछ ऐसे ही सवाल उठाए हैं।
शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने कहा कि चीन मणिपुर में हिंसा भड़काने में शामिल है और उन्होंने चीन के खिलाफ की गई कार्रवाई पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा। संजय राउत ने कहा कि भाजपा केंद्र और पूर्वोत्तर राज्य में सत्ता में है, जहां 3 मई से जातीय हिंसा हो रही है।
एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, संजय राउत ने कहा, 'अगर मणिपुर की हिंसा पूर्व नियोजित है तो केंद्र सरकार, राज्यपाल, मुख्यमंत्री आपके हैं। यह पूर्व नियोजित किसने की? मणिपुर की हिंसा में चीन का हाथ है। आपने चीन को क्या सबक सिखाया?' उन्होंने मांग की कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए।
कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने भी मणिपुर हिंसा को लेकर बीजेपी पर कुछ ऐसे ही आरोप लगाए। उन्होंने कहा, 'मणिपुर में जो राइफलें पकड़ी गई हैं, वे चीन में बनी हैं। राहुल गांधी ने वहां जाकर शांति की अपील की। सीएम को तुरंत हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए।'
उन्होंने कहा, 'यह पूर्व नियोजित लगता है लेकिन इसका कारण स्पष्ट नहीं है।' एएनआई से साक्षात्कार में बीरेन सिंह ने यह भी कहा कि वह इस सप्ताह की शुरुआत में अपने पद से इस्तीफा देने पर विचार कर रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि जनता ने उन पर विश्वास खो दिया है, लेकिन समर्थन मिला तो उन्होंने अपना मन बदल दिया।
मणिपुर में 3 मई से मेइती लोगों और एसटी कूकी-ज़ोमी लोगों के बीच लगातार जातीय हिंसा देखी जा रही है। 27 मार्च के विवादास्पद आदेश के खिलाफ एक आदिवासी विरोध के तुरंत बाद हिंसा शुरू हो गई थी। अब तक 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों अन्य घायल हो गए हैं और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं।
समझा जाता है कि हिंसा की वजह मेइती और कुकी समुदायों के बीच तनाव है। कहा जा रहा है कि यह तनाव तब बढ़ गया जब मेइती को एसटी का दर्जा दिए जाने की बात कही जाने लगी।
इसको लेकर हजारों आदिवासियों ने राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में एक मार्च निकाला। इन जिलों में अधिकांश आदिवासी आबादी निवास करती है। यह मार्च इसलिए निकाला गया कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध किया जाए। मेइती समुदाय की आबादी मणिपुर की कुल आबादी का लगभग 53% है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है।
मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
दूसरी ओर, आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं।
मणिपुर में कुकी जनजाति के लिए एक अलग प्रशासनिक प्राधिकरण की मांग पर चर्चा करते हुए बीरेन सिंह ने कहा, 'हम एक हैं। मणिपुर एक छोटा राज्य है लेकिन हमारे पास 34 जनजातियां हैं। इन सभी 34 जनजातियों को एक साथ रहना होगा... सीएम के रूप में, मैं वादा करता हूं कि मैं मणिपुर को टूटने नहीं दूंगा और न ही राज्य में कोई अलग प्रशासनिक प्राधिकरण होगा। मैं सभी को एक साथ रखने के लिए बलिदान देने को तैयार हूं।'
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