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नए स्पीकर ने चुने जाने के फौरन बाद 26 जून 2024 को ही अपना रंग दिखाना और जमाना शुरू कर दिया है। इसी रिपोर्ट में आगे उस पर चर्चा की गई है।
बतौर स्पीकर विवादास्पद फैसले
संसदीय इतिहास में ओम बिड़ला सिर्फ विपक्षी सांसदों को निलंबित करने और विपक्षी नेताओं के गंभीर आरोपों को संसदीय कार्यवाही से बाहर निकालने के लिए याद किए जाते रहेंगे। स्पीकर निश्चित रूप से सबसे बड़ी पार्टी से होता है लेकिन स्पीकर की कुर्सी पर बैठने के बाद वो सिर्फ अपनी ही पार्टी का नहीं रह जाता। खासकर जब संसद में किसी एक पार्टी का भारी बहुमत हो तो यहीं पर स्पीकर को अपनी तटस्थता और रणनीतिक कौशल दिखाना होता है। लेकिन ओम बिड़ला ने लगभग 140 विपक्षी सदस्यों को निलंबित कर इतिहास रच दिया। और यह सब उन तीन न्याय आपराधिक संहिताओं को पास कराने के लिए किया गया जो सीआरपीसी का स्थान लेंगी। 1 जुलाई से तीन संहिताएं लागू होने वाली है। तीनों न्याय संहिताएं लोकतंत्र विरोधी हैं और देश में अभिव्यक्ति की आजादी को नए खतरों का सामना करना पड़ेगा। तीनों संहिताओं को बिना बहस अध्यक्ष ओम बिड़ला ने पास होने दिया था।अडानी समूह के खिलाफ राहुल गांधी ने बोलने का साहस दिखाया। लेकिन उनके तथ्यात्मक बयानों को सदन की कार्यवाही से निकालने का आदेश इन्हीं ओम बिड़ला ने दिया। विश्व मीडिया ने अडानी पर खोजपूर्ण रपटें छापीं। फिर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आई, बिड़ला साहब ने उस पर बहस ही नहीं होने दी। टीएमसी की महुआ मोइत्रा ने भी अडानी मामला संसद में उठाना चाहा। लेकिन राहुल गांधी को और महुआ मोइत्रा को लोकसभा की सदस्यता से वंचित करने में बिड़ला भाजपा आलाकमान का एक हथियार बन गए।
- चीन की भारतीय सीमा में घुसपैठ। अनगिनत बार कई सीमाओं पर झड़पें। लोकसभा में इस मुद्दे पर बहस नहीं होने दी गई।
- मणिपुर में जातीय जनसंहार, गैंगरेप, तीन सौ चर्चों का जलाया जाना। इन पर भी बहस नहीं होने दी गई। प्रधानमंत्री ने मणिपुर के आदिवासियों का हालचाल लेना आज तक जरूरी नहीं समझा।
बिड़ला का ब्राह्मण प्रेम
ओम बिड़ला की एक्स (ट्विटर) पर जातिवादी टिप्पणी को लेकर काफी विवाद हुआ। उस समय वो नए-नए लोकसभा अध्यक्ष बने थे तो कोटा में हर छोटे-बड़े प्रोग्राम में पहुंच जाते थे। 8 सितंबर 2029 को ब्राह्मण महासभा की कोटा बैठक में भाग लेते हुए बतौर लोकसभा अध्यक्ष बिड़ला ने कहा था- ब्राह्मणों का हमेशा समाज में उच्च स्थान रहा है। यह स्थान उनकी त्याग, तपस्या का परिणाम है। यही वजह है कि ब्राह्मण समाज हमेशा से मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है।
समाज में ब्राह्मणों का हमेशा से उच्च स्थान रहा है। यह स्थान उनकी त्याग, तपस्या का परिणाम है। यही वजह है कि ब्राह्मण समाज हमेशा से मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है। pic.twitter.com/ZKcMYhhBt8
— Om Birla (@ombirlakota) September 8, 2019
नागरिक अधिकार संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने भी ओम बिड़ला की टिप्पणी की निंदा की थी। पीयूसीएल ने कहा था कि बिड़ला का ट्वीट भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 14 में लिखा है, "राज्य भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा।" संस्था ने कहा- "हम (ओम बिड़ला के) बयान की कड़ी निंदा करते हैं। किसी समुदाय का वर्चस्व स्थापित करना, किसी समुदाय को अन्य समुदायों से श्रेष्ठ घोषित करना संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है। यह एक तरह से अन्य समुदायों के प्रति हीनता की भावना पैदा करता है।" मोदी राज में आज अनुच्छेद 14 की क्या स्थिति है, यह कोई छिपी बात नहीं है।
This is the first day of the House, and look at this man’s arrogance.
— Amock (@y0geshtweets) June 26, 2024
He should act as a custodian of the House rather than behave like a party spokesperson#ombirla #ParliamentSession pic.twitter.com/XvZKfKrUtB
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