टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के ‘यूपीए क्या है, अब यूपीए नहीं है’ वाले बयान पर कांग्रेस के नेताओं ने तीख़ी प्रतिक्रिया दी है। ममता बनर्जी की ख़्वाहिश राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का विकल्प बनने की है और इसे लेकर वह दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक के दौरे कर रही हैं। साथ ही कांग्रेस के कई नेताओं को तोड़ने के काम में भी जुटी हैं।
बुधवार को एनसीपी मुखिया शरद पवार से मुलाक़ात के बाद पत्रकारों से बातचीत में ममता बनर्जी ने यूपीए को लेकर जो बयान दिया है, उसके ख़िलाफ़ कांग्रेस के नेता एकजुट हो गए हैं।
यहां तक कि कांग्रेस में बाग़ी नेताओं के गुट G-23 में शामिल कपिल सिब्बल ने भी ममता के इस बयान की मुखालफत की। सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस के बिना यूपीए वैसा ही है, जैसी शरीर के बिना आत्मा और यह वक़्त विपक्षी एकता को दिखाने का है।
लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता और पश्चिम बंगाल से ही आने वाले अधीर रंजन चौधरी ने एएनआई से बातचीत में कहा, “ममता को लगता है कि सारा हिंदुस्तान ने ममता-ममता करना शुरू कर दिया है। ममता के साथ मोदी जी खड़े हुए हैं इसलिए वह कई तरह के बहाने बनाकर कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश में जुटी हुई हैं।” अधीर ने कहा कि ममता मोदी और बीजेपी की बोली बोल रही हैं।
कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने कहा है कि कांग्रेस के बिना बीजेपी को हराना सपना देखने जैसा है। जबकि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है कि कांग्रेस की लड़ाई बीजेपी की नफ़रती विचारधारा के ख़िलाफ़ है और जो लोग हमारे साथ आना चाहते हैं आएं नहीं आना चाहते हैं तो न आएं।
ममता के साथ ही बंगाल चुनाव में उनके लिए चुनावी रणनीति बना चुके प्रशांत किशोर ने भी बीते दिनों में कई बार कांग्रेस पर हमला बोला है और ऐसा लगता है कि ये हमले जारी रहेंगे। दिल्ली दौरे के दौरान वह सोनिया गांधी से भी नहीं मिली थीं।
बंगाल से बाहर निकलने की कोशिश
ममता बनर्जी बंगाल के चुनाव में जीत हासिल करने के बाद राज्य से बाहर निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में अपना वजूद बनाने की कोशिश में जुटी हैं। वह गोवा में चुनाव लड़ रही हैं, त्रिपुरा में उनकी पार्टी बीजेपी से लड़ाई लड़ रही है और कई राज्यों में कांग्रेस के बड़े नेताओं को ममता बनर्जी ने तोड़ लिया है।
संसद के शीतकालीन सत्र में भी जिस तरह टीएमसी ने कांग्रेस से दूरी बनाने की कोशिश की है, उससे साफ लगता है कि ममता बनर्जी अब कांग्रेस को कमजोर कर विपक्षी नेतृत्व की कमान अपने हाथ में लेना चाहती हैं। लेकिन ऐसा होना क्या इतना आसान है। क्या देश के तमाम बड़े क्षेत्रीय दलों के नेता ममता बनर्जी की क़यादत को स्वीकार कर लेंगे, ऐसा होना मुश्किल है।
निश्चित रूप से जिस तरह ममता बनर्जी के तेवर दिख रहे हैं, उससे लगता है कि वह कांग्रेस को पीछे धकेलना चाहती हैं और इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि इसका सीधा फ़ायदा बीजेपी को मिलेगा।
लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के बिना किसी विपक्ष की कल्पना की जा सकती है।
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