महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने फैसला सुनाया है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट ही असली शिवसेना है। उन्होंने शिंदे और उनके विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनके द्वारा दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि ठाकरे गुट के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु के पास व्हिप जारी करने का कोई अधिकार नहीं था। तो इस फैसला का अर्थ क्या निकल रहा हैः
कुछ बातें तो एकदम स्पष्ट हैं। जैसे शिंदे की मुख्यमंत्री की कुर्सी बच गई है। यानी उनकी तकनीकी फजीहत बच गई। उन्हें उद्धव ठाकरे के साथ अपनी राजनीतिक जंग तेज करने का मौका मिल गया है। क्योंकि असली शिवसेना के उनके दावे पर अब विधानसभा अध्यक्ष की मुहर लग गई है। लेकिन उनका भविष्य अब इस बात पर निर्भर करेगा कि अयोग्यता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला करता है। जाहिर सी बात है ठाकरे गुट नार्वेकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती जरूर देगा।
शिंदे लोकसभा चुनाव 2024 में अपने गठबंधन की राजनीति का नेतृत्व करेंगे या नहीं, यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा कि वो कब तक अपना फैसला उद्धव की याचिका पर देता है। अगर सुप्रीम कोर्ट में भी शिंदे कानूनी लड़ाई जीत जाते हैं, तो इस साल के अंत में राज्य विधानसभा चुनावों में भी गठबंधन का नेतृत्व वही करेंगे। अगर भाजपा की नीयत नहीं बदलती है। अगर गठबंधन विधानसभा चुनाव जीतता है तो उनके पास मुख्यमंत्री के रूप में वापसी का भी अच्छा मौका होगा। लेकिन सबकुछ भाजपा की दया पर है। चुनाव जीतने के बाद भाजपा उन्हें हाशिए पर भी ला सकती है। लेकिन अगर शिंदे अदालती लड़ाई हारे तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा और उनका राजनीतिक अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। सुप्रीम कोर्ट शिंदे को शिवसेना पार्टी और चुनाव चिह्न देने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई कर ही रहा है। इस याचिका के नतीजे का असर उनके और ठाकरे के बीच चुनावी लड़ाई पर जरूर पड़ेगा।
ठाकरे गुट के लिए, नार्वेकर का फैसला कोई हैरान करने वाला नहीं है। अयोग्यता मुद्दे पर ठाकरे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भरोसा कर रहे हैं। अगर वो सुप्रीम अदालत में कानूनी लड़ाई जीत जाते हैं, तो इससे उन्हें पार्टी को फिर से खड़ा करने में बढ़ावा मिलेगा। इस संभावना को देखते हुए कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला लोकसभा चुनाव के बाद आ सकता है, ठाकरे गुट के नेता नार्वेकर के फैसले का इस्तेमाल उद्धव टाकरे के प्रति हमदर्दी पैदा करने के लिए करेंगे। खुद उद्धव से लेकर संजय राउत, आदित्य ठाकरे समेत तमाम नेता इस कहानी को बताने में जरा भी नहीं हिचकिचाएंगे कि कैसे शिंदे ने "भाजपा के इशारे पर बालासाहेब की पार्टी को चुरा लिया है।"
यह भी मुमकिन है कि अगर लोकसभा चुनावों के लिए नामांकन प्रक्रिया समाप्त होने से पहले चुनाव आयोग के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आता है तो ठाकरे पार्टी के नाम और प्रतीक के बिना लोकसभा चुनाव लड़ें और इसके जरिए सीधा संदेश महाराष्ट्र की जनता को देने की कोशिश करें। उनके लोकसभा चुनाव लड़ने का असर व्यापक हो सकता है।
शिंदे और ठाकरे दोनों के लिए, बुधवार का फैसला जून 2022 में शिंदे द्वारा पार्टी में विभाजन के बाद उनकी लंबी कानूनी लड़ाई का एक और दौर लाने वाला है। दोनों प्रतिद्वंद्वी गुट पूरे साल अपनी कड़वी कानूनी और राजनीतिक लड़ाई जारी रखेंगे।
उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता देवेन्द्र फणवीस के लिए यह फैसला उस लड़ाई का तार्किक अंत होगा जिसमें वह एक प्रमुख खिलाड़ी थे। फैसले का इस्तेमाल वह और उनकी पार्टी शिवसेना को विभाजित करने के कदम की वैधता का दावा करने के लिए करेंगे। हालाँकि, इसका मतलब यह भी है कि शिंदे राज्य में शीर्ष पर बने रहेंगे और लेकिन वो दोबारा तब तक नहीं लौट सकते जब तक कि शिंदे के भाग्य का फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा नहीं किया जाता। यानी लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण बदल जाएंगे।
नार्वेकर का फैसला आने वाले दिनों में चुनावी लड़ाई की दिशा भी तय करेगा। आगामी चुनावों में विपक्षी महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) इस फैसले को अपने पक्ष में मोड़ने की पूरी कोशिश करेगा। हाल के सर्वेक्षणों से पता चला है कि एमवीए अभी भी महाराष्ट्र में एक बड़ी ताकत है। तीनों दल महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटों के लिए अपने सीट-बंटवारे समझौते को अंतिम रूप दे रहे हैं, जो सत्तारूढ़ भाजपा के साथ-साथ इंडिया गठबंधन दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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