ये सारी बातें कांग्रेस आलाकमान को सवालों के कठघरे में खड़ा करती हैं। पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस से सवाल पूछ रहे हैं कि बिहार चुनाव में उसकी इस बुरी गत के लिए वह बताए कि इसके क्या कारण हैं, क्योंकि उसकी ही वजह से महागठबंधन सत्ता से दूर रह गया।
कांग्रेस से पूछा जा रहा है कि उसे आख़िर क्या ज़रूरत थी कि वह 70 सीटों पर चुनाव लड़े, थोड़ा कम पर लड़ती तो आरजेडी के कोटे में ज़्यादा सीटें जातीं और 3 सीटों के बेहद मामूली बहुमत से सरकार बना रहा एनडीए आज शपथ ग्रहण की तैयारी नहीं कर रहा होता।
कांग्रेस को वाम दलों के प्रदर्शन के बारे में बताकर उसे उलाहने दिए जा रहे हैं और इससे लोकसभा चुनाव में करारी हार और दिल्ली विधानसभा चुनाव में शून्य सीटें मिलने के बाद लगा जख़्म हरा हो गया है।
कुछ महीने पहले जब पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने चिट्ठी लिखकर नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे और आंतरिक चुनाव कराने की मांग की थी, तो पार्टी ने सख़्त रूख़ अपनाते हुए कुछ नेताओं के पर कतर दिए थे। इनमें लंबा सियासी तजुर्बा रखने वाले ग़ुलाम नबी आज़ाद भी थे, जिन्हें पार्टी ने कांग्रेस महासचिव के पद से हटा दिया था।
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‘हमसे मुंह फेर लिया’
सिब्बल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘हम में से कुछ लोगों ने बताया कि कांग्रेस में आगे क्या किया जाना चाहिए। लेकिन हमारी बात सुनने के बजाय उन्होंने हमसे मुंह फेर लिया। अब हम रिजल्ट्स देख सकते हैं। केवल बिहार के ही लोग नहीं, बल्कि जहां-जहां उपचुनाव हुए हैं, स्वाभाविक रूप से वहां के लोग कांग्रेस को एक प्रभावी विकल्प नहीं मानते।’
बता दें कि बिहार में तो पार्टी 70 सीटों पर लड़कर सिर्फ़ 19 सीटें जीती है जबकि उपचुनावों में गुजरात, उत्तर प्रदेश में उसका खाता तक नहीं खुला है। मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में वह सिर्फ़ 9 सीटें जीती है जबकि विधानसभा चुनाव, 2018 में वह इनमें से 27 सीटें जीती थी।
‘आत्मचिंतन का वक़्त ख़त्म’
सिब्बल आगे कहते हैं कि आत्मचिंतन का वक़्त अब ख़त्म हो चुका है। उन्होंने कहा, ‘मेरे एक सहयोगी जो कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य (सीडब्ल्यूसी) हैं, ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि कांग्रेस आत्मचिंतन करेगी।’ लेकिन जब छह साल तक कांग्रेस ने आत्मचिंतन नहीं किया, तो अब हम इसकी क्या उम्मीद कर सकते हैं। हम जानते हैं कि कांग्रेस में दिक्क़त कहां पर है।’
दिल्ली की चांदनी चौक सीट से लोकसभा का चुनाव जीत चुके सिब्बल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा, ‘कांग्रेस भी इन दिक्क़तों का हल जानती है लेकिन वह इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए ग्राफ़ नीचे गिरता जा रहा है। कांग्रेस को इसे स्वीकार करने की हिम्मत दिखानी चाहिए।’
सिब्बल पहले भी सीडब्ल्यूसी में चुनाव कराए जाने की मांग को जोरदार ढंग से उठा चुके हैं और इस बार भी उन्होंने यही कहा है कि पार्टी में फ़ैसले लेने वाली इस सर्वोच्च संस्था में सदस्यों के चयन के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आप मनोनीत किए गए सदस्यों से सवाल पूछने की उम्मीद नहीं कर सकते।
‘ऐसे ही चलता रहता है’
राज्यसभा सांसद सिब्बल ने गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में कांग्रेस की हार पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि हमें अभी भी पार्टी की ओर से बिहार चुनाव और उपचुनाव में प्रदर्शन पर उसकी राय का इंतजार है। लेकिन हो सकता है कि वे सोचते हों कि सब ठीक है और यह सब ऐसे ही चलता रहता है।
उन्होंने कहा कि हर संगठन में संवाद की ज़रूरत होती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने गठबंधन किए जाने की ज़रूरत को लेकर कहा, ‘हम अब ये बहुत उम्मीद नहीं कर सकते कि लोग हमारे पास आएंगे। हम उस तरह की ताक़त नहीं रह गए हैं, जैसी कांग्रेस हुआ करती थी।’
आलाकमान को संदेश
सिब्बल का मैसेज लाउड और क्लियर है। सिब्बल आलाकमान को चेताना चाहते हैं कि वह पार्टी में स्थायी अध्यक्ष के मसले और सीडब्ल्यूसी में चुनाव कराए जाने को गंभीरता से ले। उनका यह भी मैसेज है कि जो लोग पार्टी में रहकर सुधारों की आवाज़ उठा रहे हैं, वे ऐसा पार्टी के भले के लिए ही कर रहे हैं और पार्टी उन्हें अपना दुश्मन ना समझे।
चिट्ठी लिखे जाने के बाद हमने देखा था कि सिब्बल, आज़ाद, जितिन प्रसाद सहित कुछ और नेताओं के ख़िलाफ़ पार्टी के ही अन्य नेताओं ने बयानबाज़ियां की थीं और इससे कार्यकर्ताओं के बीच बेहद ख़राब संदेश गया था।
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