पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का एलान होने के साथ ही ना केवल लोकतंत्र में भरोसा रखने की राजनीतिक लड़ाई शुरु हो गई है बल्कि इसके साथ ही राजनीति में धर्मयुद्ध के लिए भी राजनीतिक सेनाएं तैयार हो गई हैं। धर्म के नाम पर होने वाला छद्म युद्ध, खुद को धर्माधिकारी, धर्म के रक्षक साबित करते राजनेता और उनके पीछे-पीछे जयकार करते भक्त कार्यकर्ता। इसमें कौन कौरव है, कौन पांडव, यह भेद बचा ही नहीं है, हर कोई कौरव की तरह किसी को एक इंच राजनीतिक जगह देने को तैयार नहीं।