पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का एलान होने के साथ ही ना केवल लोकतंत्र में भरोसा रखने की राजनीतिक लड़ाई शुरु हो गई है बल्कि इसके साथ ही राजनीति में धर्मयुद्ध के लिए भी राजनीतिक सेनाएं तैयार हो गई हैं। धर्म के नाम पर होने वाला छद्म युद्ध, खुद को धर्माधिकारी, धर्म के रक्षक साबित करते राजनेता और उनके पीछे-पीछे जयकार करते भक्त कार्यकर्ता। इसमें कौन कौरव है, कौन पांडव, यह भेद बचा ही नहीं है, हर कोई कौरव की तरह किसी को एक इंच राजनीतिक जगह देने को तैयार नहीं।
यूपी चुनाव: इस महाभारत में कौरव सभी हैं, पांडव कोई नहीं!
- राजनीति
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- 10 Jan, 2022

राजनेताओं की मानसिकता से लगता है कि वो चाहे कोई धर्म हो या जाति, उसके मानने वालों को अपना बंधुआ समझते हैं और यह भी मानते हैं कि वोटर अपनी परेशानियों से दूर रह कर धर्म और जाति के नाम पर ही वोट देगा। महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ विकास जैसे मुद्दे बेमायने हैं।
यहां सिर्फ एक भीष्म पितामह नहीं है, बहुत है, हर कोई सत्ता के सिंहासन से बंधा, लेकिन उनके लिए शूल शैया नहीं है, उन्हें सत्ता के सिंहासन के करीब होने की गर्माहट मिल रही है।
धर्मो रक्षति रक्षित: यानी जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है। महाभारत और मनुस्मृति के इस श्लोक का अब राजनीतिक मायने है कि जो हमारी रक्षा कर सके वही धर्म है। क्या आपने यह पूरा श्लोक पढ़ा है-
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।।
‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए। लेकिन अब अर्थ और ज़रूरतें बदल गई हैं।