पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में महज़ तीन महीने बचे हैं। अगले लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इन राज्यों के विधानसभा चुनाव को केंद्र की सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। बीजेपी के सामने अपनी सत्ता को बचा रखने की चुनौती है तो कांग्रेस के सामने बीजेपी को पटखनी देकर दोबारा से सत्ता हासिल करने की बड़ी चुनौती है। कांग्रेस मध्य प्रदेश में कर्नाटक जैसी बड़ी और निर्णायक जीत जाती है ताकि अगले लोकसभा चुनाव से पहले उसका हौसला बढ़े और बीजेपी के हौसले पस्त हो जाएं।
मध्य प्रदेश राजनीतिक रूप से बेहद अहम राज्य है यहां लोकसभा की 29 सीटें हैं। इनमें से पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 28 और कांग्रेस ने एक एक सीट जीती थी। राज्य में विधानसभा की 230 सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थी जबकि भाजपा 109 सिटी जीतने पर कामयाब रही थी। तब सरकार तो कांग्रेस की बनी थी। लेकिन करीब डेढ़ साल बाद 'ऑपरेशन लोटस' के तहत बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से बगावत कराके कांग्रेस की सरकार गिराकर शिवराज सिंह के नेतृत्व में अपनी सरकार बना ली थी।
चुनाव की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव के ऐलान से पहले ही उसने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। भाजपा को डर है कि अगर मध्य प्रदेश उसके हाथ से निकल गया तो उसकी केंद्र की सत्ता हाथ से निकलने का खतरा बढ़ जाएगा। कांग्रेस कर्नाटक कितना मध्य प्रदेश में बीजेपी को पटखनी देकर उसके हाथ से केंद्र की सत्ता छिनने के डर को बढ़ाना चाहती है।
कर्नाटक से समानताः मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव की कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव से काफी समानता है कर्नाटक में भी 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। 228 सदस्य वाली विधानसभा में उसे 104 सीटें मिली थी। तब राज्यपाल वजू भाई वाला ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को सबसे बड़ी पार्टी का नेता होने के नाते मुख्यमंत्री पद की शपथ भी दिला दी थी। लेकिन सदन में बहुत साबित करने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। बाद में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी। केंद्र में 2019 में मोदी सरकार की वापसी के बाद बीजेपी ने ऑपरेशन लोटस के तहत गठबंधन सरकार को गिराकर येदियुरप्पा के नेतृत्व में अपनी सरकार बना ली थी। हालांकि चुनाव से करीब साल भर पहले येदियुरप्पा को हटाकर बीएस बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भारी बहुमत से सत्ता में वापसी की। बीजेपी कांग्रेस के मुकाबले आधी से भी कम सीटों पर सिमट कर रह गई।
सुरजेवाला को कमान
कांग्रेस ने कर्नाटक में पार्टी को जीत दिलाने वाले प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला को अब मध्य प्रदेश की कमान सौंप दी है। उनसे पहले जेपी अग्रवाल मध्य प्रदेश के प्रभारी थे। उन्हें हटाकर सुरजेवाला को इसलिए कमान सौंपी गई है। सुरजेवाला ने कर्नाटक की जिम्मेदारी मिलने के बाद से बेंगलुरु में ही डेरा डाल दिया था। पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी खत्म कर तमाम नेताओं को एक प्लेटफार्म पर लाए। ठोस जिताऊ रणनीति बनाई। सुरजेवाला इस समय राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार माने जाते हैं। अगर वो कांग्रेस को मध्य प्रदेश में कर्नाटक जैसी जीत दिल देते हैं तो पार्टी में उनका कद सबसे ऊंचा हो जाएगा।
क्या है कांग्रेस का लक्ष्यः कांग्रेस हर हालत में राज्य में 130 से 140 के बीच सीटें जीतना चाहती है। कर्नाटक में भी कांग्रेस ने इसी लक्ष्य के साथ चुनावी रणनीति बनाई थी वह वह कामयाब रही तो लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के हौसले बुलंद होंगे और वह मध्य प्रदेश की करीब आधी सीटों पर बीजेपी को मजबूत टक्कर देने की स्थिति में रहेगी। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने वहां लोकसभा की 20 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। पिछले चुनाव में उसे सिर्फ एक सीट मिली थी। मध्य प्रदेश में भी उसका यही लक्ष्य है।
क्या कहते हैं पुराने आंकड़े?
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले वोट तो कम मिले थे लेकिन सीटें ज्यादा मिली थीं। बीजेपी 41.02% वोट लेकर 109 सीटें जीती थी जबकि कांग्रेस 40.80 प्रतिशत वोट हासिल करके 114 सीट जीत गई थी। बीजेपी को 3.8% वोटों का नुकसान हुआ था जबकि कांग्रेस को 4.6% वोटों का फायदा हुआ था। जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 44.88% वोटों के साथ 165 सीटें जीती थी कांग्रेस को 36.38 8% वोटों के साथ 58 सीटें मिली थी। बीएसपी को 6.29% वोटों के साथ 4 सीटें मिली थी लेकिन पिछले चुनाव में बीएसपी का लगभग सफाया हो गया था उसे से 2 सीटें मिली थी और 1.2% वोट मिला था। 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 37.67% वोटों के साथ 143 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को 32.39% वोट और 71 सीटें मिली थी।
टर्निंग प्वाइंट था 2003 का चुनावः मध्य प्रदेश की राजनीति में 2003 के विधानसभा चुनाव को टर्निंग प्वाइंट माना जाता है। इस चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस की लगातार दो बार की सत्ता को बुरी तरह उखाड़ फेंका था। तब दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस को महज 38 सीटें और 31.61% वोट मिला था। उमा भारती को दिग्विजय सिंह के मुकाबले उतारकर बीजेपी ने 173 सीटें और 42.50% वोट हासिल करके कांग्रेस का लगभग सफाया ही कर दिया था। उस चुनाव में चुनाव प्रबंधन की कमान बीजेपी के दिग्गज नेता रहे अरुण जेटली ने संभाली थी।
दो बार मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह उस उस समय अति आत्मविश्वास में थे। बीजेपी ने कब उनके पैरों के नीचे सियासी जमीन खींच ली उन्हें पता ही नहीं चल पाया था। उसके बाद से पिछले चुनाव तक कांग्रेस ने धीरे-धीरे अपना वोट प्रतिशत बढ़ाकर बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया था। लेकिन बीजेपी ने 'ऑपरेशन लोटस' के सहारे कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी।
मध्य प्रदेश का आने वाला विधानसभा चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए एक बड़ा इम्तिहान है। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश के चुनाव को 'करो या मरो' का चुनाव बना दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा की क्या कांग्रेस मध्य प्रदेश में कर्नाटक जैसी बड़ी और निर्णायक जीत दोहरा पाती है? अगर कांग्रेस इस मकसद में कामयाब रही तो निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
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