बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने यूपी में अपनी पार्टी की बुरी तरह हार के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया है। वो इस हद तक नाराज हैं कि उन्होंने अपने सभी पार्टी प्रवक्ताओं के टीवी डिबेट में जाने पर आज से ही रोक लगा दी है।
मायावती ने आज सुबह ट्वीट कर कहा कि यूपी विधानसभा आमचुनाव के दौरान मीडिया द्वारा अपने आक़ाओं के दिशा-निर्देशन में जो जातिवादी द्वेषपूर्ण व घृणित रवैया अपनाकर अम्बेडकरवादी बीएसपी मूवमेन्ट को नुकसान पहुंचाने का काम किया गया है वह किसी से भी छिपा नहीं है। इस हालत में पार्टी प्रवक्ताओं को भी नई जिम्मेदारी दी जाएगी।
बीएसपी अध्यक्ष ने कहा - इसलिए पार्टी के सभी प्रवक्ता सुधीन्द्र भदौरिया, धर्मवीर चौधरी, डा. एम एच खान, फैजान खान व सीमा कुशवाहा अब टीवी डिबेट आदि कार्यक्रमों में शामिल नहीं होंगे।
यूपी चुनाव 2022 में बीएसपी ने अब तक सबसे घटिया प्रदर्शन किया। उसका सिर्फ एक विधायक (उमाशंकर सिंह - रसड़ा से) विधानसभा में पहुंच सका है। जबकि खराब प्रदर्शन के बावजूद 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी के 19 विधायक जीत कर आए थे।
1. यूपी विधानसभा आमचुनाव के दौरान मीडिया द्वारा अपने आक़ाओं के दिशा-निर्देशन में जो जातिवादी द्वेषपूर्ण व घृणित रवैया अपनाकर अम्बेडकरवादी बीएसपी मूवमेन्ट को नुकसान पहुंचाने का काम किया गया है वह किसी से भी छिपा नहीं है। इस हालत में पार्टी प्रवक्ताओं को भी नई जिम्मेदारी दी जाएगी।
— Mayawati (@Mayawati) March 12, 2022
हालांकि मायावती का मीडिया पर यह आरोप गलत है। यूपी चुनाव के दौरान मीडिया लगातार लिख रहा था कि मायावती की चुनाव को लेकर कोई तैयारी नजर आ नहीं आ रही है। वो लगातार बीजेपी के अनुकूल हालात पैदा कर रही हैं। चुनाव की तारीख घोषित होने के बहुत बाद उनकी रैलियां शुरू हुईं। रैलियां भी इतना कम हुईं कि बीएसपी कार्यकर्ता उदास हो गए। बीएसपी महासचिव सतीश मिश्रा ने जरूर तमाम स्थानों पर पार्टी का सम्मेलन किया लेकिन उनसे बीएसपी को कोई खास नतीजा नहीं मिला। इससे पहले भी मीडिया बीएसपी के खिलाफ लिखता रहा है लेकिन बीएसपी की सीटें कम नहीं हुईं।
यूपी के चुनावी आंकड़ों से स्पष्ट है कि मायावती की उदासीनता की वजह से बीएसपी को वोट देने वाला दलित मतदाता छिटक कर बीजेपी में चला गया। अगर वो दलित मतदाता बीजेपी में नहीं जाता तो बीएसपी आराम से फिर 20-22 सीटें निकाल सकती थीं। इससे पहले मुस्लिमों का भी बीएसपी को वोट मिलता रहा है। लेकिन इस बार मायावती के रवैए को देखकर बीएसपी को वोट देने वाला मुस्लिम सपा के साथ खड़ा हो गया। मायावती ने लगभग 90 मुस्लिमों को जिस रणनीति के तहत टिकट दिया था, मुस्लिम मतदाता उसे भी भांप गए। क्योंकि बीएसपी ने ऐसा पहले कभी नहीं कहा था।
इस तरह इस चुनाव में बीएसपी ने वो तमाम कदम गलत उठाए, जिससे उसका नुकसान हुआ। अपनी गलत रणनीति के नतीजे की वजह अब मीडिया पर डालकर मायावती जिम्मेदारी से भाग रही हैं।
बीएसपी वही पार्टी है, जिसने 2007 में अपने दम पर यूपी में सरकार बनाई थी। उस चुनाव में उसे 40.43 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन उसके बाद ऐसा क्या हुआ कि दलित मायावती और उनकी पार्टी से दूर होने लगा। यह समय मायावती के खुद के आत्मनिरीक्षण का है। अगर वो टीवी डिबेट में अपने प्रवक्ताओं को नहीं जाने देंगी तो इससे मीडिया का नहीं मायावती और उनकी पार्टी का ही नुकसान हैय़
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