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मुकुल राय, हिमंत बिस्व शर्मा, भारती घोष, ये 'दाग़' अच्छे हैं बीजेपी के लिए!

किसी ज़माने में ममता बनर्जी की बहुत नज़दीकी रही पूर्व आईपीएस अफ़सर भारती घोष का बीजेपी में शामिल होना और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का उनका स्वागत करना अलग 'चाल चरित्र और चेहरे' का दावा करने वाली पार्टी के सामने कई सवाल खड़े करता है। भारती घोष पर जबरन वसूली करने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप हैं। सीआईडी ने उनके कई फ़्लैटों पर छापे मारे थे और 2.4 करोड़ रुपये नकद बरामद किए थे। 
भारती घोष के बीजेपी में शामिल होने का समय और ज़्यादा महत्वपूर्ण इृसलिए भी है कि वह पार्टी में ठीक उसी समय हुईं जब सारदा चिटफंड घोटाले की जाँच करने वाले आईपीएस अफ़सर राजीव कुमार को गिरफ़्तार करने पर आमादा केंद्र की बीजेपी सरकार ने संवैधानिक संकट खड़ा करने तक की परवाह नहीं की थी।

कौन हैं भारती घोष? 

रिटायर्ड पुलिस अधिकारी भारती घोष पर जबरन वसूली करने और पति के साथ मिल कर आपराधिक साजिश रचने के आरोप हैं। सीआईडी  उनके मामले की जाँच कर रही है और उनके पति एम. ए. वी. राजू फ़िलहाल जेल में हैं। सीआईडी ने घोष को फ़रार घोषित कर दिया है और उनके समेत 8 लोगों के ख़िलाफ़ पश्चिम बंगाल की घाटाल ज़िला अदालत में चार्जशीट दाख़िल की है। भारती घोष के अंगरक्षक सुजीत मंडल को भी फ़रार बताया गया है। हालाँकि भारती घोष ने एक ऑडियो क्लिप में कहा है कि वह फ़रार नहीं हैं, पर उन्होंने ख़ुद पर लगे आरोपों या सीआईडी जाँच या चार्जशीट से इनकार नहीं किया है। 

सीआईडी के छापे

पिछले साल फ़रवरी मे चंदन माइती नाम के इन्सान ने भारती घोष पर जबरन वसूली और आपराधिक साजिश रचने के आरोप लगाते हुए उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद ही सीआईडी ने मामले की जाँच शुरू की। भारती घोष की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई तक उन्हें गिरफ़्तार न किया जाए। 
भारती घोष ने कुछ दिन पहले कहा था कि वह तृणमूल कांग्रेस से 'बदला' लेने के लिए राजनीति में कूदेंगी। उन्होंने यह भी कहा था कि जब तक वह तृणमूल कांग्रेस के आदेशों का आँख मूंदे पालन करती रहीं, उन्हें ईमानदार अफ़सर कहा जाता रहा। लेकिन जैसे ही भारती ने उन बातों का विरोध करना शुरू किया जो उन्हें ग़लत लगती थी, उन्होने भारती के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज करा दिए। 

मुकुल राय मामले को भूल गई सीबीआई?

भारती घोष की तरह ही दिलचस्प मामला है मुकुल राय का। वह किसी समय ममता बनर्जी के सबसे बड़े विश्वासपात्र थे, उनके बेहद क़रीब थे। वह तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे और पार्टी के कोटे से रेल मंत्री भी बने थे। तृणमूल सांसद कुणाल घोष ने सारदा घोटाले में हुई पूछताछ के दौरान 2014 में राय का नाम लिया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने दिसंबर 2014 में मुकुुल राय के ख़िलाफ़ जाँच शुरू की और 30 जनवरी 2015 को पहली बार उनसे पूछताछ की। 
कई बार की पूछताछ के बाद केंद्रीय जाँच एजेन्सी ने मुकुल राय को सारदा घोटाले में अभियुक्त बनाया। राय 3 नवंबर, 2017 को बीजेपी में शामिल हो गए। उसके बाद सीबीाई ने उन्हें एक बार भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया।
सारदा समूह के अध्यक्ष सुदीप्त सेन ने पूछताछ के दौरान कहा था कि उनकी कंपनी असम कांग्रेस के नेता हिमंत बिस्व शर्मा को हर महीने 20 लाख रुपये दिया करती थी। इस तरह बिस्व शर्मा का नाम पहली बार सारदा चिटफंड मामले में आया। सीबीआई ने 26 नवंबर 2014 को पहली बार उनसे पूछताछ की। असम विधानसभा चुनाव के पहले हिमंत ने कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। उसके बाद से अब तक सीबीआई ने पूछताछ के लिए उन्हें फिर कभी नहीं बुलाया। 
BJP embraces bharati ghosh, mukul roy, himant biswasharma not rajiv kumar - Satya Hindi
हिमंत बिस्व शर्मा और मुकुल राय
सवाल यह उठता है कि जिस बीजेपी की सरकार कोलकाता के पुलिस प्रमुख की गिरफ़्तारी और उनसे पूछताछ के लिए हाई कोर्ट के आदेश की अनदेखी करती है ताकि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ा जा सके, वही बीजेपी उन सारे लोगों को क्यों पार्टी में शामिल करती है जिनके ख़िलाफ़ घोटाले और जबरन वसूली जैसे गंभीर आपराधिक आरोपों की जांँच चल रही है। सवाल यह भी है कि राजीव कुमार के ख़िलाफ़ अचानक इनती मुस्तैदी दिखाने वाली सीबीआई ने मुकुल राय और हिमंत बिस्व शर्मा से उनके बीजेपी में शामिल होने की तारीख़ के बाद से अब तक कोई पूछताछ क्यों नहीं की।
क्या बीजेपी सीबीआई का इस्तेमाल कर विरोधी दलों के नेताओं को पहले डराती है और फिर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करा कर उनके मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर उन्हें एक तरह का अभयदान देती है, यह सवाल लाज़िमी है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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