अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले दलितों का समर्थन जुटाने के उद्देश्य से एक बड़े कदम के तहत, जेडीयू रविवार 26 नवंबर को पटना में 'भीम संसद' आयोजित कर रहा। कार्यक्रम के प्रभारी नेताओं ने कहा कि सभा में एक लाख से अधिक लोग जुट चुके हैं। यह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व के लिए एक बड़ा गेमचेंजर होगा।
दरअसल, यह इवेंट हाल के जाति सर्वेक्षण के मद्देनजर बहुत महत्वपूर्ण है। जाति सर्वेक्षण से यह पता चला है कि एससी/एसटी समुदाय में बिहार की 21% से अधिक आबादी शामिल है। यह खोज संसदीय चुनावों में जेडीयू और नीतीश की बहुत मदद करने वाला है। हालांकि, अगर जेडीयू खुद को उनके हितैषी के रूप में पेश कर पाई, तभी वो उसके पाले में आएंगे। बिहार के दलित बहुत जागरूक हैं। वो भी सारी राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं।
जातीय सर्वे आने के अगले ही दिन सीएम नीतीश की कैबिनेट ने राज्य आरक्षण सीमा को 60 से बढ़ाकर 75 फीसदी कर दिया। इस घोषणा का न सिर्फ ओबीसी ने बल्कि दलितों ने भी स्वागत किया था। भाजपा इस बात पर भी तिलमिलाई है कि नीतीश और जेडीयू ने इस मामले में केंद्र सरकार को फंसाने की कोशिश की है। बिहार सरकार ने बढ़े हुए आरक्षण को संविधान की 9वीं में शामिल करने के लिए मोदी सरकार को प्रस्ताव भी भेज दिया। अगर 2024 के चुनाव तक मोदी सरकार इसे शामिल नहीं करती है तो नीतीश भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की कोई कोशिश नहीं छोड़ेंगे।
नीतीश कैबिनेट के मंत्री अशोक चौधरी ने कहा, "यह हमारी ताकत का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि खतरे में पड़े संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए एकता प्रदर्शित करना है।" उन्होंने कहा, "यहां तक कि एक दलित मुख्यमंत्री ने भी समुदाय के लिए उतना काम नहीं किया जितना नीतीश ने पिछले 18 वर्षों में उनके लिए किया है। हम मुख्यमंत्री को सशक्त बनाना चाहते हैं ताकि वह उनके लिए और अधिक काम करें।"
दिलचस्प बात यह है कि चौधरी ने यह भी कहा कि जाति सर्वेक्षण में राज्य में 43% एससी/एसटी लोग गरीबी रेखा से नीचे पाए गए। हालाँकि, सरकार को निष्कर्ष सौंपे जाने के बाद से जेडीयू ने आक्रामक तरीके से उन्हें लुभाना शुरू कर दिया है। यह सम्मेलन उसी सिलसिले की कड़ी है।
पिछले महीने नीतीश ने अपने आवास पर भीम संसद रथों को हरी झंडी दिखाई थी। इस कदम को चुनाव से पहले दलित और दलित समुदायों तक पहुंचने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ ही नीतीश खुद को ओबीसी के चैंपियन के तौर पर भी पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
जेडीयू का मुकाबला करने के लिए, भाजपा विभिन्न जाति समूहों पर टारगेट आउटरीच कार्यक्रम भी आयोजित कर रही है। ऊंची जाति के भूमिहार मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इसने सबसे पहले स्वामी सहजानंद जयंती का आयोजन किया। इस महीने की शुरुआत में पार्टी ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण यादवों तक पहुंचने के लिए 'यदुवंशी सम्मेलन' आयोजित किया था। शनिवार को बीजेपी ने बुनकर समुदाय को लुभाने के लिए रैली निकाली थी। यानी कुल मिलाकर बिहार की राजनीति अगले लोकसभा चुनाव से पहले गरम होती जा रही है।
नीतीश कुमार, जेडीयू और लालू यादव की आरजेडी का हर दांव भाजपा को दलित और आरक्षण विरोधी ठहरा रहा है। इसकी काट भाजपा नहीं कर पा रही है। बिहार में भाजपा उच्च सवर्णों की पार्टी के रूप में एक तरह से स्थापित हो गई है। इसीलिए हाल ही में भाजपा ने दलित नेता जीतन राम मांझी पर डोरे डाले थे। लेकिन मांझी अपनी गतिविधियों की वजह से दलितों के सर्वमान्य नेता अब नहीं हैं।
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