भारत सरकार के गृह मंत्री अमित शाह क्या बीजेपी अध्यक्ष के पद पर भी बने रहेंगे? इसे लेकर लंबे समय से अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक़, अमित शाह के अभी और 6 महीने तक पार्टी अध्यक्ष बने रहने की संभावना है। बताया जा रहा है कि इस दौरान पार्टी संगठन के आंतरिक चुनाव होने हैं और इन चुनावों के पूरे होने तक शाह अध्यक्ष पद पर बने रह सकते हैं।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत का श्रेय काफ़ी हद तक अमित शाह को दिया जा रहा है। पार्टी के सामने उनके क़द का अध्यक्ष चुनने की भी चुनौती है क्योंकि पिछले पाँच सालों में शाह ने जिस तरह पार्टी संगठन को देश के कोने-कोने तक खड़ा किया है, उससे उनके मुक़ाबले का अध्यक्ष चुनना निश्चित रूप से पार्टी के लिए बेहद मुश्किल साबित हो रहा है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आख़िर कैबिनेट मंत्री रहते हुए अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष पद पर क्यों नहीं बने रह सकते हैं। आपको बता दें कि बीजेपी में ‘एक व्यक्ति, एक पद’ का सिद्धांत लागू है, यानी आप सरकार में हैं तो पार्टी का पद छोड़ें और पार्टी में हैं तो आपको सरकार में पद छोड़ना होगा।
अमित शाह गुरुवार को (13 जून) सभी राज्यों के बीजेपी अध्यक्षों और महासचिवों से मुलाक़ात करेंगे और संगठन चुनाव की प्रक्रिया को शुरू करेंगे। बताया जा रहा है कि इस बैठक में पार्टी संगठन के आंतरिक चुनाव और पार्टी के सदस्यता अभियान को लेकर चर्चा होगी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक़, अक्टूबर-नवंबर तक ही संगठन के चुनाव पूरे हो पाएँगे। सूत्रों का कहना है कि शाह पार्टी के अध्यक्ष पद पर बने रहेंगे या नहीं या वह संगठन चुनाव तक पद संभालेंगे, इसे लेकर भी बैठक में चर्चा होने की संभावना है।
शाह को चुनावी राजनीति का चाणक्य माना जाता है और 2014 में उनके पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को कई राज्यों में जोरदार जीत मिली थी। शाह ने कई मौक़ों पर अपने चुनावी कौशल का लोहा मनवाया है। ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी, शाह को चुनावी जीत का श्रेय देते रहे हैं।
शाह के मोदी कैबिनेट में आने के बाद से ही इस बात की अटकलें लगने लगी थीं कि आख़िर पार्टी में उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। बता दें कि इस साल के अंत तक हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं और शाह इन राज्यों में एक बार फिर पार्टी की वापसी करवाना चाहते हैं। शाह का पार्टी अध्यक्ष के रूप में 3 साल का कार्यकाल इस साल की शुरुआत में ख़त्म हो चुका था। लेकिन लोकसभा चुनाव तक उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए कहा गया था। शाह के बाद पार्टी अध्यक्ष का पद संभालने वाले नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा को सबसे आगे माना जा रहा है।
गुजरात की मोदी सरकार में गृह मंत्री रह चुके शाह ने 2019 का चुनाव जीतने के लिए 300 से ज़्यादा लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया और 160 से ज़्यादा चुनावी रैलियाँ कीं। शाह के बारे में कहा जाता है कि वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी-जान से जुट जाते हैं।
यूपी में दिलाई थी बड़ी जीत अमित शाह राष्ट्रीय राजनीति में तब चर्चा में आए थे जब 2014 में बीजेपी ने उन्हें राजनीतिक लिहाज से बेहद अहम उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया था। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लंबे समय से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर बीजेपी अपने दम पर राज्य की 80 में से 71 सीटें जीत सकती है। शाह के प्रभारी रहते हुए पार्टी को यह जीत मिलने के बाद उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था।
पार्टी अध्यक्ष बनते ही अमित शाह ने अपना चुनावी कौशल दिखाना शुरू कर दिया था। उसी साल यानी 2014 में बीजेपी ने शाह के नेतृत्व में महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा में सरकार बनाई और जम्मू-कश्मीर में उपमुख्यमंत्री का पद हासिल किया था।
2015 में दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद शाह चुप नहीं बैठे और 2017 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में पार्टी को बड़ी जीत दिलवाई। शाह ने असम, त्रिपुरा में भी पार्टी को जीत दिलाई। पार्टी को हिंदी भाषी राज्यों से बाहर ले जाने में शाह का योगदान अहम है।राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, यह शाह की लगातार मेहनत का ही नतीजा है कि बीजेपी को लोकसभा चुनाव में कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में भी अच्छी सफलता मिली है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना में भी अमित शाह ने पार्टी संगठन को खड़ा किया है।
देश के राजनीतिक नक्शे में आज अगर अधिकांश राज्यों में बीजेपी की मौजूदगी नज़र आती है तो इसके पीछे अमित शाह का बेजोड़ चुनावी प्रबंधन बताया जाता है।
दिसंबर 2018 में तीन राज्यों में मिली हार के बाद शाह ने कमर कसी और ‘अबकी बार 300 पार’ का नारा दिया और जब चुनाव नतीजे आए और पार्टी को 303 सीटें मिलीं तो जीत का सेहरा नरेंद्र मोदी के साथ अमित शाह के सिर पर भी बंधा। अब अगर 6 महीने बाद भी अमित शाह पार्टी अध्यक्ष के पद से हटते हैं तो पार्टी के नए अध्यक्ष के सामने अमित शाह की जीत का ट्रैक रिकॉर्ड बरकरार रखने की बड़ी चुनौती होगी।
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