कांग्रेस का अंदरूनी संकट ख़त्म नहीं हो रहा है। सोनिया गाँधी को पूरा एक साल हो गया है अंतरिम अध्यक्ष बने हुए। राहुल गाँधी फिर से ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं तो क्यों नहीं नया नेता चुना जाए? क्या कांग्रेस में अब गाँधी परिवार को लेकर ‘टीना’ फ़ैक्टर ख़त्म हो गया है? और राजस्थान में कब तक विधायकों की बाड़ेबंदी रहेगी? क्या अशोक गहलोत जीत पाएँगे विश्वास मत? और क्या यह बुजुर्ग और युवा नेताओं के बीच की जंग है? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिन पर बेबाक बातचीत हुई कांग्रेस के बीस साल से राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा से तीसरी बार सांसद अभिषेक मनु सिंघवी से।
सिंघवी मानते हैं कि नेतृत्व का संकट हल नहीं होने से कांग्रेस का नुक़सान हो रहा है और यदि राहुल गाँधी ज़िद पर अड़े हैं तो फिर चुनाव से नया अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
प्रश्न- राजस्थान कांग्रेस का संकट जयपुर, दिल्ली होता हुआ जैसलमेर पहुँच गया है, कैसे ख़त्म होगा?
सिंघवी- राजस्थान में अभी पर्यटन का मौसम नहीं है, लेकिन दलबदल के कुछ लोगों ने इसे दिल्ली, जयपुर, हरियाणा का पर्यटन बना दिया है। लेकिन यह सवाल आपको उन लोगों से पूछना होगा जो विधायकों को लेकर हरियाणा में बैठे हैं। किसी भी पार्टी में ऐसा नहीं होता कि आपने तय कर लिया कि कुछ तय समय तक एक मुख्यमंत्री होगा और दूसरा उप मुख्यमंत्री ढाई साल बाद बटन दबा दें। यह आकांक्षा ग़लत है। जिस तरह आज संस्थाओं और सिस्टम का दुरुपयोग हो रहा है। बेशर्मी से इस्तेमाल हो रहा है, चाहे राज्यपाल को ले लीजिए या केन्द्र को।
प्रश्न- यह जो दुरुपयोग की बात कर रहे हैं, क्या आप मुख्यमंत्री गहलोत की बात कर रहे हैं जो डेढ़-दो महीनों से विधायकों की क़िलेबंदी कर के बैठे हैं? राज्यपाल ने तो विधानसभा का सत्र बुला लिया और केन्द्र ने इतने झगड़े के बाद भी आपकी सरकार नहीं गिराई?
सिंघवी- राज्यपाल ने कितना वक़्त लिया है, सत्र बुलाने का ताकि ख़रीद-फ़रोख़्त हो सके, यह किसके इशारे पर हो रहा है, यह सब जानते हैं और विधायकों की बाड़ेबंदी हरियाणा में की गई है, यहाँ तो विधायक अब तक जयपुर में ही थे। संविधान के वक़्त आंबेडकर ने कहा था कि गवर्नर केवल दिखाने का पद है, सरकारिया कमीशन ने भी कहा है, लेकिन यहाँ चार बार कह दिया, मगर आपने क्या किया? आपका उद्देश्य था कि ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए समय दिया जाए। यह बिना केन्द्र के इशारे पर हो रहा है। हमारे प्रखर प्रधानमंत्री राज्यपाल को अपना राजधर्म का पालन करने की चेतावनी नहीं देते। और हम इस नंगे नाच को चुपचाप बैठकर देखते रहे।
प्रश्न- आपको तो शुक्रिया करना चाहिए कि कलराज मिश्र ने रोमेश भंडारी जैसा नहीं किया, पायलट तो कल तक आपके लोग थे। क्या कांग्रेस में आकांक्षी ख़राब शब्द है? कांग्रेस ने 93 बार धारा 356 का ग़लत इस्तेमाल किया? शीशे के महल पर रह कर आप पत्थर फेंक रहे हैं?
सिंघवी – यदि हमने ग़लत किया होगा तो क्या आपका ग़लत सही माना जाएगा। 1990 के बाद जो फ़ैसले आए हैं, उनमें कोर्ट ने सतर्क कर दिया कि कैसे काम करना है तो उसके बाद भी आपकी यह हिम्मत हुई यानी आपको हर हाल में सत्ता चाहिए। और दल बदल तो अपने ही लोगों में होती है, अपने घर से दूसरे घर में जाना।
प्रश्न- क्या अब आपको लगता है कि दल बदल क़ानून ही बेमायने हो गया है और उसमें बड़े बदलाव की ज़रूरत है?
सिंघवी- मैं आपसे सौ फ़ीसदी सहमत हूँ, इसपर मैंने लिखा भी है। अब सब कुछ जुगाड़ के भरोसे चल रहा है और हर कोई जुगाड़ का इस्तेमाल कर रहा है। कई बार स्पीकर अपने हिसाब से जल्दबाज़ी करता है तो कभी लंबे समय तक फ़ैसला नहीं, तो दोनों में वो मदद करता है। अब समय आ गया है कि उसमें बहस करके ज़रूरी बदलाव किए जाएँ। और एक निष्पक्ष इंडिपेंडेंट व्यवस्था बना दी जाए। और यह बदलाव केवल कांग्रेस नहीं कर सकती, यह लंबा काम है। इसमें वक़्त लगता है।
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प्रश्न – क्या अब गहलोत 14 अगस्त को विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त कर पाएँगे?
सिंघवी – मैं जीतने हारने की भविष्यवाणी तो नहीं कर सकता, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि गहलोत बहुत सफलता से जीतेंगे!
प्रश्न- क्या सचिन पायलट और उनके लिए दरवाज़े कांग्रेस ने बंद कर दिए हैं?
सिंघवी – ऐसी बातों के बाद भी मेरे सहयोगियों ने कहा है कि दरवाज़े खुले हैं। लेकिन पहला क़दम कौन लेगा। गहलोत साहब ने जिन शब्दों का प्रयोग किया होगा वो उनकी व्यथा को समझना होगा। मैं समझता हूँ कि पायलट भटक गए हैं, लेकिन कल वो आ जाएँ तो गहलोत साहब भी उनका स्वागत करेंगे, लेकिन कोई शर्त मत डालिए। विश्वास रखिए कि आपका समय आने वाला है।
प्रश्न- क्या यह प्रश्न कांग्रेस में बुजुर्ग और युवा नेताओं के बीच का झगड़ा है?
सिंघवी – ऐसा कहना ठीक नहीं है, यह अतिश्योक्ति है। बहुत से लोगों को बहुत मौक़े मिले हैं। हाँ, असहमति बहुत है कांग्रेस में, बीजेपी की तरह कहने से डरते नहीं हैं। जो असंतोष है वो उसके लिए नेतृत्व के बारे में फ़ैसला होना चाहिए।
प्रश्न- सोनिया गाँधी को अंतरिम अध्यक्ष बने हुए एक साल हो रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व में अनिश्चितता बनी है। अब भी आप कहते हैं कि राहुल गाँधी दर्शन के लिए फिर हाँ कह दे, अभिषेक सिंघवी क्यों अध्यक्ष नहीं बन सकते?
सिंघवी – अभी हमारी हालत ख़राब है, लेकिन हार के बाद भी यह कहना ग़लत होगा कि वे दोबारा नहीं हो सकते। हम कह रहे हैं कि राहुल गाँधी आएँ और अगर वो नहीं आना चाहते, उनकी ज़िद है तो फिर इस पर फ़ैसला करके नए अध्यक्ष को चुना जाए, यह अनिश्चितता नहीं रहनी चाहिए। इससे नुक़सान हो सकता है। कुछ हफ्तों में हल निकलेगा। कोई तो आएगा ही और चुनाव के रास्ते आएगा।
प्रश्न- यानी अब कांग्रेस में टीना फ़ैक्टर नहीं है, यानी बिना गाँधी परिवार के काम नहीं चलेगा?
सिंघवी – यह वाजिब है कि गाँधी परिवार के बलिदान, काम और ताक़त की वजह से सब लोग चाहते हैं कि वो इस ज़िम्मेदारी को स्वीकार करें, इसमें क्या ग़लत है, लेकिन यदि वो नहीं चाहते तो इसका गणतांत्रिक तरीक़े से हल निकलना चाहिए। लेकिन समय बहुत लग रहा है।
प्रश्न- मुझे समझाइए कि राहुल गाँधी के बिना कांग्रेस का काम चल सकता है? गाँधी परिवार के बिना चल सकता है?
सिंघवी- राहुल गाँधी पिछले एक साल से अध्यक्ष नहीं हैं कांग्रेस का काम चल रहा है। सोनिया जी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं बल्कि कई बार राहुल जी के पास टाइम माँगते हैं तो वह कहते हैं कि मैं अध्यक्ष नहीं हूँ। लेकिन प्रकृति हो या पार्टी, कहीं भी वैक्यूम नहीं रह सकता, लेकिन यह लॉन्ग टाइम विकल्प नहीं है।
प्रश्न - यानी कांग्रेस पार्टी में से लोग हैं जो नेतृत्व दे सकते हैं जो गाँधी परिवार को रिप्लेस कर सकते हैं?
सिंघवी- ये मेरे शब्द नहीं हैं और आप भी समझते हैं कि इसका मतलब क्या है। यह आप भी समझते हैं, लेकिन मैं इतना कहता हूँ कि समय बहुत हो गया, इसका हल होना चाहिए।
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