नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) पर मंगलवार को गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर सारे सवालों के जवाब दिए हैं। इसके द्वारा उसने यह समझाने की कोशिश की है कि नागरिकता संशोधन क़ानून का मक़सद तीन पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देना है और यह आशंका निराधार है कि इस क़ानून की वजह से किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता छिन जाएगी। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने भी यही बात कही थी और इस क़ानून का विरोध करने वाले भारतीयों (पढ़ें मुसलमानों) से आग्रह किया था कि वे अफ़वाहों के चक्कर में न पड़ें।
शरणार्थियों के लिए बने क़ानून से भारत के मुसलमानों में डर क्यों?
- विचार
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- 19 Dec, 2019

एक महत्वपूर्ण सवाल है - अगर राष्ट्रीय स्तर पर असम की तरह का नागरिक रजिस्टर बनेगा तो उसमें जो लोग छूटेंगे, वे तो हिंदू भी हो सकते हैं और मुसलमान भी, ईसाई भी हो सकते हैं, पारसी भी। तो फिर केवल मुसलमान ही उस राष्ट्रीय रजिस्टर से क्यों डरे हुए हैं? यहीं पर नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) की भूमिका आती है जिसका अभी विरोध हो रहा है।
गृह मंत्री और उनके मंत्रालय का कहना है - यह क़ानून भारतीयों के लिए है ही नहीं, यह तो उन पाकिस्तानी, अफ़ग़ान और बांग्लादेशी नागरिकों के लिए है जो वहाँ धार्मिक कारणों से सताए जा रहे थे और इस कारण से पिछले पाँच या अधिक सालों से भारत में शरण लिए हुए हैं। ऐसे सताए हुए लोगों के लिए ही मानवीय आधार पर यह क़ानून बनाया गया है। चूँकि ये देश मुसलिम-बहुल हैं और वहाँ मुसलमानों के सताए जाने का कोई कारण ही नहीं है, इसलिए इस क़ानून में उनको कवर नहीं किया गया है। इस क़ानून का मौजूदा भारतीय नागरिकों से - चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान - कोई लेना-देना नहीं है।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश