पिछले कुछ समय से समाज की सामूहिक समझ को आकार देने में व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण बन गई है। कड़ी मेहनत से और तार्किक व वैज्ञानिक आधारों पर हमारे अतीत के बारे में खोज करने वाले इतिहासविदों का मखौल बनाया जा रहा है और वर्चस्वशाली राजनैतिक ताक़तें उनके लेखन को दरकिनार कर रही हैं। यह सचमुच चिंता का विषय है कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी द्वारा जिस सामाजिक सोच को आकार दिया जा रहा है, वह हिंदुत्व या हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रतिगामी राजनैतिक एजेंडा को लागू करने वालों का औजार बन गई है।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी इतिहास: सच या राजनैतिक एजेंडा?
- विचार
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- 15 Nov, 2024

ऐसी ग़लत धारणाएँ लोगों में क्यों आ गईं कि आर्य इस देश के मूल निवासी थे, प्राचीन भारत में संपूर्ण वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध था, ‘हमारे पास’ पुष्पक विमान था, प्लास्टिक सर्जरी थी, जेनेटिक इंजीनियरिंग थी और न जाने क्या-क्या था?
यह मुद्दा अभी हाल में एक बार फिर तब उठा जब इतिहासकार विलियम डालरेम्पिल, जिनकी कई पुस्तकें हाल में लोकप्रिय हुई हैं, ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा:
“...इसका नतीजा है व्हाट्सएप इतिहास और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी। यह भारतीय अध्येताओं की असफलता है कि वे सामान्य लोगों तक नहीं पहुँच सके हैं।” -(इंडियन एक्सप्रेस, अड्डा, 11 नवम्बर 2024)
डालरेम्पिल के अनुसार इस कारण समाज में गलत धारणाएं घर कर गई हैं; जैसे, आर्य इस देश के मूल निवासी थे, प्राचीन भारत में संपूर्ण वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध था, ‘हमारे पास’ पुष्पक विमान था, प्लास्टिक सर्जरी थी, जेनेटिक इंजीनियरिंग थी और न जाने क्या-क्या था। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ही इस सामान्य सामाजिक समझ का स्त्रोत है कि इस्लाम और ईसाईयत विदेशी धर्म हैं, मुस्लिम शासकों ने हिन्दू मंदिर गिराए और हिन्दुओं पर घोर अत्याचार किये और यह भी कि इस्लाम तलवार के बल पर भारत में फैला। यह धारणा भी है कि महात्मा गाँधी हिन्दू विरोधी थे और देश को आज़ादी, गांधीजी के नेतृत्व में चलाये गए राष्ट्रीय आन्दोलन के कारण नहीं मिली। ये गलत धारणाएं बहुसंख्यक लोगों के दिमाग में बैठा दी गई हैं।