‘मैं जोशीमठ हूँ’। आदिगुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली ज्योतिर्मठ। सीमांत जनपद चमोली का सरहदी ब्लाॉक। विश्व प्रसिद्ध हिम क्रीडा स्थल औली, आस्था का सर्वोच्च धाम श्री बदरीनाथ धाम, हेमकुंड साहिब और रंग बदलने वाली फूलों की घाटी का प्रवेश द्वार मैं ही हूँ।
देश की द्वितीय रक्षा पंक्ति नीती माणा घाटी मेरे ही नगर से होकर जाया जाता है। हर साल देश विदेश से लाखों-लाख तीर्थयात्री और पर्यटक यहां पहुंचते हैं। मैं चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी की थाती हूं। पंच प्रयाग में से प्रथम प्रयाग मेरे ही मुहाने पर धौली गंगा और अलकनंदा का संगम विष्णुप्रयाग स्थित है।
एशिया का सबसे लम्बा रज्जू मार्ग (ropeway) मेरे ही नगर के ऊपर से गुजरता है। मैं भगवान बदरीविशाल जी का शीतकालीन गद्दी स्थल हूं। मेरे पौराणिक नृसिंह मंदिर में 6 महीने भगवान बदरीविशाल जी की पूजा होती है। मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष बद्रीविशाल के कपाट खुलने से पहले पौराणिक तिमुंडिया कौथिग का आयोजन होता है। मैं महज एक नगर ही नहीं हूं अपितु धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी हूं। मैं गढ़वाल के कत्यूरी राजवंश की राजधानी भी रहा हूं। मैं बरसों से सैलानियों की पहली पसंदीदा शहर रहा हूं।
लेकिन इन सबसे इतर आज मैं अपनी ही पहचान के लिए छटपटाहट सी महसूस कर रहा हूं। भू-धँसाव की वजह से मेरे भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। मेरे शहर के विभिन्न वार्डों में हो रहे भू-धँसाव ने मेरे शहर की खुशियाँ छीन ली हैं। मकानों में पड़ी दरारों ने मेरे नगरवासियों का सुख-चैन छीन लिया है। लोगों के आँसुओं से बह रही अविरल आंसुओं की धारा सबकुछ बयाँ करने के लिए काफी है।
चारों ओर एक अजीब सा सन्नाटा कचोट रहा है। अपने जीवनभर की मेहनत की कमाई को अपने घर बार और मकान में लगाने के बाद आज इनके घर सुरक्षित नहीं रह गये हैं। खेत खलिहान से लेकर मकान सबकुछ भू-धँसाव की चपेट में आ चुके हैं। भू-धँसाव के कारण मेरे नगर के बाशिंदे अब पौष माह की इन सर्द/ठंड रातों में अपने भविष्य को लेकर आशांकित है। मेरे शहर के लोगों के माथे पर पड़ी चिंता की लकीरें, बेबस व लाचार आँखें बेहद पीड़ादायक है। बस भगवान बद्रीविशाल से प्रार्थना है कि किसी तरह मेरे इस शहर को बचा लीजिए।
जो कि पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर मौजूद है। फिर भी मेरे शहर में जलविद्युत परियोजना निर्माण को मंजूरी दी गयी। 1970 की धौली गंगा में आई बाढ़ ने पाताल गंगा, हेलंग से लेकर ढाक नाला तक के बड़े भू-भाग क्षेत्र को हिलाकर रख दिया था, जिसके बाद 2013 की केदारनाथ आपदा और फरवरी 2021 की रैणी आपदा ने तपोवन से लेकर विष्णुप्रयाग के संगम को बहुत नुक़सान पहुंचाया है, नदी किनारे कटाव बढ़ने से भी भूस्खलन को बढ़ावा मिला है जबकि मेरे शहर के नीचे से होकर एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड परियोजना की सुरंग निर्माणाधीन है।
जो भू-धँसाव के लिए सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। पूर्व के बरसों में हेलंग से लेकर पैनी गांव, सेलंग गांव में भू-धँसाव की घटना सामने आ चुकी है। भू-धँसाव से मेरे शहर के गांधी नगर, मारवाड़ी, लोअर बाजार नृसिंह मंदिर, सिंहधार में, मनोहर बाग, अपर बाजार डाडों, सुनील, परसारी, रविग्राम, जेपी कॉलोनी, विष्णुप्रयाग, क्षेत्र अधिक प्रभावित हैं।
बस, जैसे भी हो सके मेरे इस शहर को बचा लीजिए। नहीं तो भू धँसाव से मेरा भूगोल ही नहीं इतिहास भी सदा के लिए इतिहास के पन्नो में सिमट कर रह जायेगा। मेरे शहर को भू-धँसाव से बचाने के लिए सरकार से लेकर शासन प्रशासन अपनी अपनी ओर से हरसंभव प्रयास में जुट चुके हैं। प्रभावित लोगों को राहत शिविरों में भेजा जा रहा है, प्रभावित मकानों के सर्वे के लिए टीमें गठित कर दी गयी हैं, विशेषज्ञों की टीमें भी पहुंच चुकी हैं, जो भू धँसाव का आकलन कर रही है और कारणों का पता लगा रही है।
सबसे अच्छी बात, प्रकृति का भी मुझे साथ मिला है वरना आजकल मेरा पूरा शहर बर्फ से अटा पड़ा रहता। इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके फौरन तौर पर लोगों को सुरक्षित ठौर पर पहुंचाया जाए, व्यवस्था के साथ और लोगों के पुनर्वास/विस्थापन को लेकर ठोस कार्रवाई अमल में लाई जाए। मेरे इस शहर को बचाने के लिए हर वो मुमकिन कोशिश की जानी चाहिए जो हो सकती है। संकट की इस घड़ी में आप सब नगर वासियों ने जो एकजुटता दिखाई है वो सुकून देने वाली है, खासतौर पर युवाओं की अपने इस शहर को बचाने की कोशिश इतिहास हमेशा याद रखेगा और मिसालें भी देता रहेगा।
मैं जोशीमठ हूँ, मेरे शहरवासियों हौसला रखिए। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जोशीमठ को बचाने के लिए हर वो प्रयास कीजिए जो हो सकता है। भगवान बदरीविशाल जी की कृपा से इस शहर पर जो संकट के बादल मंडरा रहे हैं, जल्द ही सबकुछ सही होगा। घना अंधेरा के बाद ज़रूर उजाले का सूरज उगेगा…।
(रोहित वर्टेक्स गोस्वामी के फ़ेसबुक पेज से साभार)
अपनी राय बतायें