मुंबई पुलिस ने टीआरपीखोरों के घोटाले का जो भंडाफोड़ किया है, वह पूरी तसवीर का एक महत्वपूर्ण मगर छोटा सा पहलू है। ये कोई नया पहलू भी नहीं है क्योंकि इस तरह के भंडाफोड़ पहले भी होते रहे हैं, जिनमें चैनलों द्वारा टीआरपी मापने के लिए इस्तेमाल होने वाले पीपल्स मीटरों का पता करके अपनी टीआरपी बढ़ाने का हथकंडा आज़माया गया। इसलिए इस पर इतना चौंकने या उत्तेजित होने की ज़रूरत नहीं है। ये काम टीआरपी-वॉर में उलझे चैनलों के लिए छोड़ दीजिए।
कंटेंट के बजाए टीआरपी पर फ़ोकस, धंधेबाज़ी पर उतरा मीडिया
- विचार
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- 12 Oct, 2020

आज के पतन के लिए अगर हम कुछ एंकरों और चैनलों के मालिकों को दोषी मानकर सारा ठीकरा उन पर फोड़ते हैं तो हम खुद को धोखा देते हैं। एंकर बदल जाएंगे तो चीज़ें ठीक हो जाएंगी, ऐसा नहीं है। कुछ मालिक अगर मुनाफ़ाखोरी कम करने की सोच भी लें तो भी कुछ नहीं होगा। आज अगर एसपी सिंह, राजेंद्र माथुर या प्रभाष जोशी होते तो या तो यही कर रहे होते या कहीं हाशिए में फेंक दिए गए होते जैसे कि बहुत से पत्रकार फेंक दिए गए हैं।
सच बात तो ये है कि ये घोटाला बहुत बड़े घोटाले का एक छोटा सा हिस्सा भर है। वास्तव में टीआरपी यानी रेटिंग सिस्टम अपने आप में एक घोटाला है और इस घोटाले ने पूरे मीडिया को भ्रष्ट करने में भूमिका निभाई है।
इसने उसके चाल-चरित्र को बदलने में ज़बरदस्त भूमिका निभाई है। टीआरपी ने ये काम भारत में ही नहीं किया है बल्कि दुनिया में जहाँ-जहाँ भी वह है, वहां भी यही किया है।