झारखंड के आदिवासियों के लिए काम करने वाले 83 वर्ष के बुज़ुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी पार्किंसन नामक बीमारी से जूझ रहे हैं। उन्हें विशेष देखभाल की ज़रूरत है और कुछ छोटी-मोटी सहूलियतों की भी। स्ट्रॉ और सिपर कप भी ऐसी ही चीज़ें हैं। बीस दिन पहले उन्होंने ये दोनों चीज़ें अपनी ज़ब्त की गई चीज़ों में से देने की मामूली सी माँग की थी।
सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के साथ बर्बर बर्ताव क्यों?
- विचार
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- 27 Nov, 2020

क़रीब एक दर्ज़न ऐसे मामले हैं जिन पर तुरंत सुनवाई होनी चाहिए थी, मगर उन्हें लगातार टाला जा रहा है। इनमें धारा 370 से लेकर, इलेक्टोरल बांड, आरटीआई, सीएए, यूएपीए जैसे बहुत ही संगीन मामले शामिल हैं। इनमें से कई मामलों की तो सुनवाई ही शुरू नहीं की गई है। ऐसे में अगर सवाल उठ रहे हैं तो ग़लत क्या है? क्या 83 साल के बुजुर्ग देश की सुरक्षा के लिये इतना बडा ख़तरा बन गये हैं कि वो उन्हें स्ट्रा और सीपर नहीं दे सकती?
राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानी एनआईए ने इसके लिए बीस दिनों का समय माँगा और अब यह कहते हुए मना कर दिया कि ज़ब्त सामान में ये चीज़ें थी ही नहीं। स्वामी के वकील ने इसे ग़लत ठहराते हुए कहा है कि उनके बैग में दोनों चीज़ें थीं, मगर यदि मान लिया जाए कि एनआईए सही बोल रही है तो क्या मानवीय आधार पर वह इन्हें उपलब्ध नहीं करवा सकती थी? ये चीज़ें इतनी महँगी नहीं हैं और वैसे भी स्वामी उसके लिए भुगतान करने को तैयार थे। लेकिन एनआईए ने ऐसा नहीं किया।