दुनिया के नक़्शे पर ये अटकलें लगायी जा रही हैं कि भारत में कितने करोड़ लोग बेरोज़गार होंगे और कितने ग़रीब या फिर भारत के उद्योग-धंधे बैठ जायेंगे या 21 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के बाद वे सरपट भागने लगेंगे? ऐसे में, रिज़र्व बैंक ने उम्मीद लगाये बैठे लोगों को शुक्रवार को यह कह कर निराश कर दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत न केवल पतली है बल्कि उसके जल्दी सुधरने के भी आसार नहीं हैं।
भले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कितने ही दावे किये हों लेकिन हक़ीक़त यह है कि सरकार के पास फ़िलहाल कोई दृष्टि दिखाई नहीं पड़ती और आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था का वो संकट खड़ा होगा जिसके बारे में शायद पहले किसी ने सोचा भी न हो।
ये संकट सिर्फ़ अर्थव्यवस्था का नहीं, ये संकट है संकट को अब तक न मानने का जिसकी वजह से इससे निपटने के कारगर कदम नहीं उठाये गये। लेकिन शुक्रवार को रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने मान ही लिया कि मौजूदा वित्तीय साल में भारत की विकास दर नकारात्मक रहेगी। इस बात को दुनिया भर की तमाम एजेंसियाँ और विशेषज्ञ पिछले एक माह से कह रहे थे।
रिज़र्व बैंक के मुताबिक़, कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को नुक़सान हुआ है। मार्च महीने में औद्योगिक उत्पादन में 17% की कमी आयी है। हालाँकि अनाज का उत्पादन बढ़ा है। लेकिन सबसे डराने वाले आंकड़े आयात और निर्यात के हैं। बैंक के मुताबिक़, अप्रैल महीने में आयात 58% गिरा है और निर्यात 60.3%।
भारतीय अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने की बात अभी हाल में दुनिया की दो बड़ी एजेंसियों ने भी की है। मशहूर एजेंसी गोल्डमैन सैक्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि जून की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 45% की सिकुड़न देखने को मिल सकती है। हालाँकि उसने ये कह कर थोड़ी राहत देने की कोशिश की कि पूरे वित्तीय वर्ष में सिकुड़न सिर्फ़ 5% ही होगी। ये आँकड़ा भी कोई कम डरावना नहीं है।
हालाँकि ये भी सच है कि भारत अकेला देश नहीं है जिसकी विकास दर नकारात्मक होगी। अमेरिका और यूरोप के तमाम देशों के ऊपर भी ये संकट है। गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक़, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अकेला चीन है जो 3% की रफ़्तार से आगे बढ़ सकता है।
गोल्डमैन सैक्स की ही तरह मैनेजमेंट कंसल्टेंट एजेंसी आर्थर लिटिल का अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था में 10.8% की सिकुड़न देखने को मिल सकती है। उसके मुताबिक़, आर्थिक संकट की वजह से भारत में 13.5 करोड़ लोग बेरोज़गार होंगे और 12 करोड़ लोग ग़रीब हो जायेंगे।
आर्थर लिटिल का ये भी कहना है कि भारत को एक ट्रिलियन डालर का घाटा हो सकता है! यानी पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का हवाई सपना हवाई ही साबित होगा और रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का ये कहना सच साबित हो जायेगा कि अर्थव्यवस्था में भयानक तबाही आयेगी।
अब सवाल ये है कि मोदी सरकार इस संकट से निपटने और अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने में सक्षम है या नहीं?
रघुराम राजन ने इसे ये कह कर साफ़ कर दिया है मोदी सरकार में टैलेंट नहीं है। उन्होंने कहा है कि अकेले प्रधानमंत्री कार्यालय इससे नहीं निपट सकता, उसे देश के दूसरे लोगों और विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिये और यही चिंता की सबसे बड़ी वजह है।
मोदी सरकार में न केवल प्रतिभा का ज़बरदस्त अकाल है, बल्कि सत्ता का ऐसा केंद्रीयकरण हो गया है कि सब कुछ प्रधानमंत्री कार्यालय ही मैनेज करता है। बाहर से सलाह-मशविरा करना भी उन्हें गवारा नहीं है।
प्रतिभा की कमी का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पिछले दो सालों से अर्थव्यवस्था लगातार नीचे गिर रही है। विकास के सारे इंडिकेटर नीचे गिरते हुए देखे गये। पर सरकार ने ये मानने से इनकार कर दिया कि कोई आर्थिक संकट है। बल्कि ऐसा कहने वालों की हंसी उड़ायी गयी, उनको डिस्क्रेडिट करने की कोशिश की गयी और आंकड़ों को छुपाने का प्रयास किया गया।
बेरोज़गारी का आँकड़ा हो या फिर किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा, इन्हें छुपा दिया गया और सरकार ने ऐसा क्यों किया इसका संतोषजनक जवाब तक नहीं दिया।
अब जानकारी ये आ रही है कि जनवरी से मार्च तक के जीडीपी के आँकड़े भी सार्वजनिक नहीं किये गये हैं। रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को प्रेस को बताया है कि उनके पास पूरे आंकड़े नहीं हैं, ऐसे में कोई पक्की तस्वीर अभी नहीं बतायी जा सकती है। अगर मौजूदा संकट से निपटने का ये तरीक़ा है तो फिर भगवान ही मालिक है।
अपनी राय बतायें