25 जून 1975 से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को राहत दे दी यानी वो प्रधानमंत्री बनी रह सकती थीं, लेकिन यह राहत आधी अधूरी थी। 24 जून 1975 के इस फ़ैसले के रास्ते से ही इंदिरा गाँधी ने सरकार में बने रहने की तैयारी पूरी कर ली।
इमरजेंसी के 45 साल- सुप्रीम कोर्ट से कैसे बच गयी थीं इंदिरा गाँधी?
- विचार
- |
- |
- 25 Jun, 2020

माना जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आपात काल लगाने के लिए तैयारी बहुत पहले ही कर ली थी। क्या वह हर व्यवस्था को अपने काबू में रखना चाहती थीं? इसे समझने के लिए दो साल पीछे जाना पड़ेगा। 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगी थी उससे पहले इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ न्यायपालिका में केस चल रहा था।
कुछ लोग मानते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सिन्हा के 12 जून के फ़ैसले की वजह से श्रीमती गाँधी ने 25 जून 1975 को इमरजेंसी लगाई, जबकि उस आदेश पर तो सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून को स्टे ऑर्डर दे दिया था। हाइकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए मशहूर वकील एन पालखीवाला को बुलाया गया। उस समय सुप्रीम कोर्ट में गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं, इसलिए अपील वैकेशन जज जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर के सामने रखी गई। जस्टिस अय्यर ने इस पर आंशिक स्थगन आदेश दे दिया। जस्टिस अय्यर ने अपने फ़ैसले में कहा कि इंदिरा गाँधी संसद की कार्यवाही में तो शामिल हो सकती हैं, लेकिन वोट नहीं दे सकतीं। यानी क़ानूनी तौर पर वे सांसद बने रह सकती थीं, लेकिन नैतिकता के आधार पर उनका प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहना मुश्किल हो गया था।