क्या राहुल गांधी का रायबरेली से चुनाव लड़ना एक मास्टर स्ट्रोक है या वह बीजेपी के जाल में फंस गये हैं? क्या उन्होंने बीजेपी को ही उलझा दिया है? कहा जा रहा था कि बीजेपी अमेठी में राहुल गांधी को चुनावी महाभारत में अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंसाना चाहती है ताकि वह अमेठी तक उलझ कर रह जाएं। पूरा चुनाव राहुल गांधी बनाम स्मृति ईरानी हो जाए और मोदी को बाक़ी का पूरा मैदान खुलकर खेलने के लिए छोड़ दिया जाए। बीजेपी चाह रही थी कि अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ें ताकि मोदी को परिवारवाद का आरोप नये सिरे से लगाने का मौक़ा मिल जाए। मां सोनिया गांधी राजस्थान से राज्य सभा में और बेटा बेटी लोकसभा में। एक ही परिवार के तीन तीन सदस्य संसद में। कांग्रेस इस खेल को समझ रही थी।
प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने का मानस नहीं बना पा रही थीं। प्रियंका गांधी को लग रहा है कि पूरे देश में इंडिया गठबंधन के लिए प्रचार कर बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाना और मोदी के आरोपों का जवाब देना किसी एक लोकसभा सीट से बंधने से ज्यादा जरूरी है। साफ़ है कि जिस सहज सरल अंदाज में प्रियंका गांधी मोदी के झूठ को बेनकाब कर रही हैं और महिला यौन शोषण करने वालों का बचाव करने पर मोदी को कटघरे में खड़ा कर रही हैं उस तरह राहुल गांधी भी हमला नहीं कर पा रहे हैं। मोदी चाहते हुए भी प्रियंका गांधी पर व्यक्तिगत हमले करने की स्थिति में नहीं हैं।
उधर राहुल गांधी भी बीजेपी के खेल को समझ रहे थे। वह अभिमन्यु नहीं बनना चाहते थे लेकिन रणछोड़ दास की संभावित पदवी से भी बचना चाहते थे। सवाल उठता है कि राहुल गांधी फिर क्यों रायबरेली से चुनाव लड़ने को तैयार हुए। सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी वायनाड सीट नहीं छोड़ना चाहते। उन्हें लगता है कि वायनाड से पूरे केरल को साधा जा सकता है। 2019 में राहुल गांधी वायनाड से लड़े तो कांग्रेस को पूरे केरल में इसका फायदा मिला। उसे वहां की 20 लोकसभा सीटों में से 19 सीटें हासिल हुईं। लेकिन कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है।
स्वयं नरेंद्र मोदी ने 2014 में वड़ोदरा के साथ साथ वाराणसी से चुनाव लड़ा था। जीतने पर वड़ोदरा को छोड़ दिया था। तो क्या रायबरेली जीतने के बाद राहुल गांधी वायनाड छोड़ देंगे? हो सकता है कि ऐसा करने पर केरल के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका कुछ खामियाजा उठाना पड़े लेकिन राहुल गांधी की फिलहाल चिंता 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सौ पार ले जाने की है।
इस बहाने पीएम मोदी राहुल के ‘डरो मत’ के नारे पर भी तंज कस रहे हैं लेकिन एक सवाल उठता है कि अगर मोदी इतने ही निडर हैं और स्मृति ईरानी इतनी ही बहादुर हैं तो क्यों नहीं ईरानी को बीजेपी ने रायबरेली से चुनाव मैदान में उतारा?
आखिर सुबह ही पता चल गया था कि राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं। ईरानी का नामांकन रायबरेली से भरवाया जा सकता था। पहले कहा जा रहा था कि मोदी और अमित शाह वरुण गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर रहे हैं। लेकिन वरुण ने चुनाव लड़ने से इनकार कर क्या उनके दांव को चलने से पहले ही फुस्स नहीं कर दिया।
कहा जा रहा है कि अमेठी के मुकाबले रायबरेली ज्यादा सुरक्षित सीट है। यहां चुनाव जीतने के लिए राहुल गांधी को बहुत ज्यादा पसीना बहाने की ज़रूरत नहीं है। नामांकन भरना है और फिर देश भर में चुनाव प्रचार के लिए निकल जाना है। वोटिंग से पहले के दो दिन रायबरेली में बिताने हैं जैसा कि खुद मोदी वाराणसी में करते रहे हैं। अगर अमेठी से चुनाव लड़ते तो जाहिर है कि ज़्यादा समय वहां देना पड़ता। रोज रोज स्मृति ईरानी के संभावित आरोपों के जवाब देने पड़ते या उल्टे आरोप लगाने पड़ते। राहुल गांधी ने अमेठी से दूर रहकर खुद को चुनावी कीचड़ से बचा लिया लगता है।
तय है कि राहुल के चुनाव लड़ने से आसपास की दर्जन भर से ज्यादा सीटों पर असर पड़ेगा। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को भी इसका फायदा होगा। दोनों मिलकर चुनाव रैलियां करने ही वाले हैं। अब चूंकि दोनों ही चुनाव भी लड़ रहे हैं (अखिलेश कन्नौज से) लिहाजा दोनों के कार्यकर्ताओं में जोश आएगा और वोट ट्रांसफर भी आसानी से हो सकेगा।
राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर जिस तरह से मोदी ने रिएक्ट किया है उससे साफ़ होता है कि कांग्रेस ने मोदी के गेम प्लान को गड़बड़ कर दिया है। वैसे भले ही मोदी कह रहे हों कि ‘राहुल गांधी अमेठी से डर गये, भाग गये’, लेकिन हो सकता है कि स्मृति ईरानी ने चैन की सांस ली हो!
अपनी राय बतायें