खोदा पहाड़ निकली चुहिया। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था कि वह इस रविवार को सोशल मीडिया छोड़ने की सोच रहे हैं। उसके बाद दुनिया भर में जिज्ञासा फैल गई थी कि क्या वह वास्तव में सोशल मीडिया से तौबा करने की सोच रहे हैं और अगर वह ऐसा करने जा रहे हैं तो उसकी वज़हें क्या हैं। मोदी के इस ट्रवीट पर सैकड़ों प्रतिक्रियाएं भी आ गई थीं। इनमें जहाँ उनसे ऐसा न करने की गुज़ारिश की गई थी वहीं, उन्हें नसीहत भी दी गई थी। मसलन राहुल गाँधी ने अपने ट्वीट में कहा - मोदी जी, सोशल मीडिया नहीं घृणा छोड़िए।
पीएम मोदी के ट्वीट के बाद कई तरह के कयास भी लगने शुरू हो गए थे। यह अफ़वाह भी उड़ने लगी थी कि मोदी जी सोशल मीडिया पर पाबंदियाँ बढ़ाने वाले हैं और उसी दिशा में यह पहला क़दम हो सकता है।
मेन स्ट्रीम मीडिया पर सरकार का पूरा कंट्रोल है मगर सोशल मीडिया में हो रही आलोचना को वह नियंत्रित नहीं कर पा रही है। खास तौर पर नागरिकता क़ानून और एनआरसी के मामले में तो सोशल मीडिया आंदोलनकारियों का अस्त्र-शस्त्र बन गया है और ऐसे में सरकार चाहती है कि सोशल मीडिया को ही कमज़ोर कर दिया जाए।
पीएम मोदी के दूसरे ट्वीट से अव्वल तो यह तय हो गया है कि प्रधानमंत्री सोशल मीडिया नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर प्रधानमंत्री को यही घोषणा करनी थी तो उन्होंने पहले ऐसा सनसनीखेज़ ट्वीट क्यों किया? यही बात वह सीधे भी तो कह सकते थे।
ट्विटर पर ही प्रधानमंत्री के साढ़े पांच करोड़ फ़ॉलोवर हैं। इसके अलावा फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम को मिलाकर भी उनके करीब सात करोड़ से ज़्यादा फ़ॉलोवर हैं। ज़ाहिर है कि अगर उन्हें अपने नए अभियान के लिए हाइप पैदा करना था तो इस तरह के मार्केटिंग के हथकंडे आज़माने की ज़रूरत नहीं थी। कम से कम प्रधानमंत्री के पद पर बैठे किसी नेता को ऐसा करना शोभा नहीं देता। ऐसे हथकंडों से उनकी विश्वसनीयता और भी कम होती है।
सस्पेंस और सरप्राइज में भरोसा
लेकिन मोदी की राजनीति का यही स्टाइल है। वह सस्पेंस और सरप्राइज में यक़ीन रखते हैं और नोटबंदी से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक तक वह ऐसा करते रहे हैं। इसे भी उन्होंने सरप्राइज़ की तरह पेश करना चाहा था, मगर इतनी जल्दी सस्पेंस से परदा उठाने की वज़ह क्या थी? कम से कम दो-तीन दिन और लोगों की जिज्ञासा बढ़ने देते। लेकिन लगता है कि उन्हें यह एहसास हो गया था कि उनका पहला ट्वीट बूमरैंग कर रहा है, बैकफ़ायर कर रहा है।
मोदी के पहले ट्वीट से ये चर्चाएं चल पड़ी थीं कि वह सोशल मीडया से भाग रहे हैं क्योंकि उनके हर ट्वीट पर उन्हें गंभीर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। पहले ही वह मीडिया से मुखातिब नहीं होते और अब जो एक चैनल था, वह उसे भी बंद कर देना चाहते हैं।
दूसरी चर्चा यह चल पड़ी कि पीएम मोदी सोशल मीडिया के प्रभाव को कम करना चाहते हैं इसलिए वह खुद सोशल मीडिया छोड़ रहे हैं और अब वह ऐसे क़दम उठाएँगे जिनसे लोग भी इस मीडिया का इस्तेमाल न कर पाएं। इन क़दमों में डाटा की दरों में एक मुश्त बढ़ोतरी करना एक क़दम हो सकता है।
यह तो जगज़ाहिर है कि ज़्यादातर टेलीकॉम कंपनियाँ इस समय मुश्किल दौर से गुज़र रही हैं और वे डाटा की क़ीमतें बढ़ाने जा रही हैं। यह भी सब जानते हैं कि भारत में डाटा की दरें दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम हैं। अब ऐसे में अगर डाटा की दरों में दस-पंद्रह गुना की बढ़ोतरी हो जाए तो टेलीकॉम कंपनियों को भी राहत मिलेगी और सरकार को भी। बहुत सारे उपभोक्ता बढ़ी हुई क़ीमतों में इंटरनेट का इस्तेमाल ही नहीं कर सकेंगे और मन मारकर सोशल मीडिया से बाहर हो जाएंगे। इससे इस मीडिया के भरोसे चलने वाले आंदोलन और गतिविधियाँ भी कमज़ोर पड़ जाएंगी।
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