सन 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु पर न्यूयॉर्क टाइम्स ने ख़बर का शीर्षक दिया था- ‘नेहरू- द मेकर ऑफ़ मॉडर्न इंडिया’ यानी नेहरू- आधुनिक भारत के निर्माता। ‘द इकॉनमिस्ट’ ने आवरण कथा का शीर्षक दिया था ‘वर्ल्ड विदाउट नेहरू- यानी नेहरू के बिना दुनिया’। ध्यान दें, दुनिया, सिर्फ़ भारत नहीं है। इसने आगे जोड़ा कि दुनिया का मंच उनके बिना ग़रीब हो जाएगा। तो एक बात तो साफ़ है कि नेहरू के बारे में दुनिया की राय नहीं बदली है। 1964 से लेकर 2019 तक। भारतीयों के एक बड़े हिस्से की भी नहीं। संघ का दुष्प्रचार तंत्र चाहे जो भी कह ले।
नेहरू-पटेल को लड़ाने वालों को नेहरू की कितनी समझ?
- विचार
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- 15 Nov, 2019

नेहरू को कैसे याद किया जाए? क्या अमेरिकी सांसद और वहाँ के हाउस ऑफ़ रेप्रेज़ेंटेटिव्स के बहुमत के नेता स्टेनी होयर के कहे शब्दों की तरह जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के ‘हाउडी मोदी’ इवेंट में कहा- आप गाँधी और नेहरू के देश से आए हैं? या फिर प्रधानमंत्री की इस ग़लतबयानी की तरह कि नेहरू सरदार वल्लभभाई पटेल की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए थे?
असल सवाल यह है कि नेहरू दरअसल क्या थे? आधुनिक भारत के निर्माता? कश्मीर समस्या के जनक? फिर जूनागढ़ के भारत में विलय के बाद सार्वजनिक भाषण में पाकिस्तान से कश्मीर और हैदराबाद की अदलाबदली करने का प्रस्ताव देने वाले सरदार पटेल कौन थे? यहाँ ज़रा-सा रुकते हैं। जूनागढ़ में सरदार पटेल के भाषण की पंक्ति थी- ‘अगर वे हैदराबाद (देने) पर सहमत हो जाएँ तो हम कश्मीर (देने) पर सहमत हो जाएँगे।’
कमाल यह है कि ठीक यही स्थिति जनसंघ के संस्थापक (और नेहरू सरकार के मंत्री भी) श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भी थी। उनकी जीवनी- भारत केसरी डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी: विद मॉडर्न इम्प्लिकेशंस- के लेखक एससी दास भी तमाम दस्तावेज़ों के साथ यही कहते हैं कि सरदार पटेल कश्मीर के बदले पूर्वी पाकिस्तान लेने को लेकर बहुत उत्सुक थे और इस बात पर ‘डॉक्टर मुखर्जी और भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल में सहमति थी।’ हैदराबाद की जगह पूर्वी पाकिस्तान इसलिए हो गया था क्योंकि नेहरू ने सरदार पटेल को ‘पुलिस कार्रवाई’ कर हैदराबाद ले लेने की इजाज़त दे दी थी, और हैदराबाद लिया भी जा चुका था।