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पाकिस्तान: ताक़तवर फ़ौज़ को चुनौती दे पाएंगे विपक्षी दल?

1971 में बांग्लादेश बनने के बाद पाकिस्तानी जनता के मन में भारत-भय इतना गहरा बैठ गया है कि उसका एकमात्र मरहम फ़ौज़ ही है। फ़ौज़ है तो कश्मीर है। फ़ौज़ के बिना कश्मीर मुद्दा ही नहीं रह जाएगा। इसके अलावा फ़ौज़ ने करोड़ों-अरबों रु. के आर्थिक व्यापारिक संस्थान खड़े कर रखे हैं। जब तक राष्ट्र के रुप में पाकिस्तान का मूल चरित्र नहीं बदलेगा, वहां फ़ौज़ का वर्चस्व बना रहेगा।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

पाकिस्तान की पीपल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो ने हाल ही में लगभग सभी प्रमुख विरोधी दलों की बैठक बुलाई, जिसमें पाकिस्तानी फ़ौज़ की कड़ी आलोचना की गई। पाकिस्तानी फ़ौज़ की ऐसी खुले-आम आलोचना करना तो पाकिस्तान में देशद्रोह-जैसा अपराध माना जाता है। नवाज़ शरीफ ने अब इस फ़ौज़ को नया नाम दे दिया है। उसे नई उपाधि दे दी है। 

फ़ौज़ को अब तक पाकिस्तान में और उसके बाहर भी ‘सरकार के भीतर सरकार’ कहा जाता था लेकिन मियां नवाज़ ने कहा है कि वह ‘सरकार के ऊपर सरकार’ है। यह सत्य है। पाकिस्तान में अयूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक और मुशर्रफ ने तो अपना फ़ौज़ी शासन कई वर्षों तक चलाया ही लेकिन जब गैर-फ़ौज़ी नेता लोग सत्तारुढ़ रहे, तब भी असली ताकत फ़ौज़ के पास ही रही है। 

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अब तो यह माना जाता है कि इमरान खान को भी जबरदस्ती जिताकर फ़ौज़ ने ही पाकिस्तान पर लादा है। फ़ौज़ ही के इशारे पर अदालतें जुल्फिकार अली भुट्टो, नवाज शरीफ और गिलानी जैसे नेताओं के पीछे पड़ती रही हैं। ये ही अदालतें क्या कभी पाकिस्तान के बड़े फ़ौज़ियों पर हाथ डालने की हिम्मत करती हैं? 

पाकिस्तान के सेनापति कमर जावेद बाजवा की अकूत संपत्तियों के ब्यौरे रोज़ उजागर हो रहे हैं लेकिन उन्हें कोई छू भी नहीं सकता। मियां नवाज ने कहा है कि विपक्ष की लड़ाई इमरान खान से नहीं है, बल्कि उस फ़ौज़ से है, जिसने इमरान को गद्दी पर थोप रखा है। 

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पीछे हटेगी फ़ौज़?

यहां असली सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान के नेता लोग फ़ौज़ से लड़ पाएंगे? ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि फ़ौज़ थोड़ी पीछे खिसक जाए। सामने दिखना बंद कर दे, जैसा कि 1971 के बाद हुआ था या जैसा कि कुछ हद तक आजकल चल रहा है लेकिन फ़ौज़ का शिकंजा पाकिस्तानियों के मन और धन पर इतना मजबूत है कि उसे कमजोर करना इन नेताओं के बस में नहीं है। 

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पाकिस्तान का चरित्र कुछ ऐसा ढल गया है कि फ़ौज़ी वर्चस्व के बिना वह जिंदा भी नहीं रह सकता। यदि पंजाबी प्रभुत्ववाली फ़ौज़ कमजोर हो जाए तो पख्तूनिस्तान और बलूचिस्तान टूटकर अलग हो जाएंगे। सिंध का भी कुछ भरोसा नहीं। 

1971 में बांग्लादेश बनने के बाद पाकिस्तानी जनता के मन में भारत-भय इतना गहरा बैठ गया है कि उसका एकमात्र मरहम फ़ौज़ ही है। फ़ौज़ है तो कश्मीर है। फ़ौज़ के बिना कश्मीर मुद्दा ही नहीं रह जाएगा। इसके अलावा फ़ौज़ ने करोड़ों-अरबों रु. के आर्थिक व्यापारिक संस्थान खड़े कर रखे हैं। जब तक राष्ट्र के रुप में पाकिस्तान का मूल चरित्र नहीं बदलेगा, वहां फ़ौज़ का वर्चस्व बना रहेगा।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक
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