पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच केंद्र सरकार ने 'सस्ता आटा, सस्ती दाल' लांच कर एक नेक काम किया है। सरकार की ये जनकल्याणकारी योजना है क्योंकि देश में अब एक तरफ अडानी का फार्च्यून आटा आम जनता का खून पी रहा है तो दूसरी तरफ़ अडानी की दाल। ऐसे में अडानी के कान खींचने के बजाय सरकार ने अपनी ही देशी सहकारी संस्थाओं को अडानी के मुकाबले मैदान में उतार दिया या यूं कहिये खुद मैदान में मोर्चा संभाल लिया। खुद प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस 'भारत आटे' की ब्रांडिंग करने की उदारता दिखाई है।
केंद्र सरकार देशभर में 27.50 रुपए प्रति किलो की कीमत पर 'भारत आटा' उपलब्ध कराएगी। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 6 नवंबर को दिल्ली में आटे के वितरण वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इसे 10 किग्रा और 30 किग्रा के पैक में उपलब्ध कराया जाएगा। मोदी जी देश के पहले उदार प्रधानमंत्री हैं जो चीनी पेटीएम से लेकर देशी भारत आटा बेचने तक के लिए अपनी तस्वीर के इस्तेमाल की इजाजत देते हैं। वे पांच किलो मुफ्त अन्न का थैला हो या कोरोना से बचाव के लिए लगाए गए टीके का प्रमाणपत्र, सभी जगह छपने के लिए राजी हो जाते हैं। इतना सहज, सरल और उदार प्रधानमंत्री कम से कम मैंने तो अपने जीवन में अभी तक नहीं देखा।
इस समय सचमुच जनता महंगाई की मार से सिसक रही है। आर्तनाद कर रही है। बाजार पर अडानी और अम्बानी जी का कब्जा है। ये दोनों महानुभाव आटा-दाल से लेकर हर माल पर हावी हैं और इनकी चाबी सरकार के पास भी नहीं है। ऐसे में जनता को राहत देने के लिए सरकार ने मोदी ब्रांड सस्ता भारत आटा और अरहर की दाल बेचने का समानांतर इंतजाम कर सचमुच लोकल्याणकारी काम किया है। सरकार देश की 80 करोड़ आबादी को पहले से मुफ्त का राशन दे रही है। अब जो शेष 60 करोड़ लोग बचे वे मोदी ब्रांड सस्ता भारत आटा और दाल खरीदकर अपना जीवनयापन आसानी से कर सकते हैं। अपने आपको सच्चा भारतीय साबित करने के लिए भारत आटा खाने से सस्ता दूसरा क्या रास्ता हो सकता है? आपको मैं इस योजना के बारे में तफ्सील से बताये देता हूँ।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक़ देशभर में कोई 2 हजार ठिकानों पर यह मोदी ब्रांड सस्ता आटा मिलेगा। इसे नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के साथ ही नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, सफल, मदर डेयरी और अन्य सहकारी संस्थानों के माध्यम से बेचा जाएगा। देश में इस समय अलग-अलग ब्रांड का आटा 35 से 50 रुपये किलो के भाव से बिक रहा है। जिसकी जैसी हैसियत है, वो वैसा आटा खरीदता है। मैंने भी अपनी हैसियत के मुताबिक कल ही सबसे सस्ता 35 रुपये किलो के भाव से दस किलो आटा खरीदा।
हमारी सरकार मॅंहगाई से जूझने के लिए आजकल सीधे बाजार में बनिया बनकर उतर आती है। ये दुस्साहस का काम है अन्यथा सरकार का काम प्रशासन करना होता है न कि दाल-आटा बेचना।
आपको मालूम ही है कि हमारी केंद्र सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास करने के अलावा बेचने में सिद्धहस्त है। पिछले दस साल ने देश का जितना सामान बेचने लायक था सीना ठोंक कर बेच डाला। लेकिन देश का दीवाला नहीं निकलने दिया। आखिर सरकार सरकारी सम्पदा को बेचे न तो देश की 80 करोड़ आबादी को मुफ्त में पांच किलो अन्न कहाँ से दे? इसके लिए कोई अडानी, अम्बानी तो अपने खजाने खोलेंगे नहीं! अडानी-अम्बानी तो खुद व्यापारी हैं। मिलकर देश में समानांतर सरकार चलते हैं। खुद सरकार को उनके इशारे पर भरतनाट्यम करना पड़ता है। वे अपने दम पर दुनिया को मुट्ठी में कर लेते हैं। पहले भी कर लेते थे और अब भी कर रहे हैं।
मैं तो कहता हूँ कि केंद्रीय चुनाव आयोग [केंचुआ] भी सरकार की ही तरह उदारता दिखाए और पांच राज्यों के लिए होने वाले चुनावों में मतदान के दिन मतदान केंद्रों के बाहर लगने वाले राजनीतिक दलों के बूथों पर भारत आटा बेचने की व्यवस्था करे। जनता अपना कीमती वोट सरकार को दे और लौटते में सस्ता आटा साथ लेकर जाए। वैसे भी चुनाव के समय 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन की योजना के विस्तार की घोषणा जब आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है तो मोदी ब्रांड भारत आटा बेचने से कौन से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन हो जाएगा? यूँ तो ये संहितायें होती ही उल्लंघन करने के लिए हैं। उस लक्ष्मण रेखा का क्या लाभ जिसे कोई लांघे ही न!
(राकेश अचल के फ़ेसबुक पेज से)
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