दिल्ली की सीमा पर इकट्ठे हो रहे आंदोलनरत किसानों ने केंद्र सरकार की ओर से मिले बातचीत के न्यौते को ठुकरा दिया है। गृह मंत्री अमित शाह की ओर से भेजे गए प्रस्ताव में किसानों को बुराड़ी में तय किए स्थान पर प्रदर्शन करने की शर्त नत्थी थी, जो किसानों को स्वीकार नहीं थी। किसानों का कहना है कि बातचीत बिना शर्त होनी चाहिए और जो तीन क़ानून सरकार ने बनाए हैं, उनको ख़त्म करना भी वार्ता के एजेंडे में होना चाहिए।
किसानों के आंदोलन से ऐसे निपटना चाहती है मोदी सरकार?
- विचार
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- 1 Dec, 2020
सरकार की रणनीति ये दिख रही है कि एक तो किसान आंदोलन को बदनाम करने का अभियान चलाकर उसे कमज़ोर किया जाए। वह उसे खालिस्तान प्रायोजित या राजनीति प्रेरित घोषित करके उसकी लोकप्रियता और प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रही है ताकि आगे चलकर ताक़त का इस्तेमाल करके उससे निपट सके। इसी रणनीति के तहत वह इसे पंजाब के किसानों का आंदोलन बता रही है।
केंद्र सरकार के रवैये से नहीं लगता कि वह खुले मन से बातचीत करना चाहती है। वह अभी भी किसानों पर तीनों क़ानून थोपने पर अड़ी हुई है। अगर ऐसा न होता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इन क़ानूनों की तारीफ़ करने में वक़्त ज़ाया न करते। उन्होंने इस कार्यक्रम के ज़रिए संदेश दे दिया है कि वे पीछे नहीं हटेंगे।