‘अगर मदरसे के युवा भी ग्रेजुएट होकर नौकरी के क़ाबिल हो जाएँ तो इसमें क्या ऐतराज़ है?’ यह कितनी व्यावहारिक बुद्धि की बात है! मदरसा शिक्षा का आधुनिकीकरण कर उसमें पढ़ने वाले बच्चों को नौकरी पाने लायक बनाने की कोशिश जब 2007 में शुरू हुई तो मुसलमानों के बीच के ही कुछ लोगों ने उसका विरोध किया था। उसमें प्रमुख थे मौलाना असद मदनी, उनका ख़ानदान और ऑल इण्डिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड में क़ौम की इजारेदारी कर रहे उनके सहयोगी। उनका मानना था कि यह 'मदाख़लत फिद्दीन' यानी दीन (धर्म) में हस्तक्षेप है।