महात्मा गांधी पर रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म 'गांधी' जिन्होंने देखी होगी उन्हें शायद वह दृश्य याद हो जब गांधी जी से मिलने के लिए जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद वग़ैरह कांग्रेस के बड़े नेता उनके पास जाते हैं और गांधी जी से किसी बहुत अहम मसले पर गंभीर चर्चा करना चाहते हैं लेकिन गांधी जी उनसे बात करने के बजाय बकरी के बच्चे को मिट्टी का लेप लगाने चल देते हैं। नेहरू और पटेल खीझ कर रह जाते हैं। इन नेताओं के किरदार निभा रहे रोशन सेठ और सईद जाफ़री ने बहुत बढ़िया ढंग से उसे अभिव्यक्त किया है।

एक ऐसे समय में जब राजनीति का मक़सद किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया हो और समाज में सब तरफ़ पैसे की ताक़त का बोलबाला हो, सामान्य लोग भी निजी और सार्वजनिक जीवन में मन वचन और कर्म से बहुत हिंसक हो चुके हों, गांधी जी के इस पहलू के बारे में बात करना ज़्यादा ज़रूरी हो गया है।
गांधी जी के बारे में इस तरह के सैकड़ों क़िस्से पढ़ने-सुनने में आते हैं। अपनी ही धुन में रहते थे, जो सोच लिया उसे करना है, अपना एजेंडा तय करके उस पर ख़ुद भी अमल करना है और दूसरों से भी करवाना है। यह उनके स्वभाव की विशेषता थी। इस पर वह अड़े रहते थे।