महाराष्ट्र में 23 साल से राजनीति कर रही एनसीपी अपने सबसे ख़राब दौर से गुजर रही है। भतीजे अजित पवार की बगावत के बाद 83 साल के शरद पवार भी अपनी बची-खुची विरासत को बचाने के लिए दर दर भटक रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल कांग्रेस के नेता पूछ रहे हैं कि क्या कांग्रेस को अब एनसीपी को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिये। राजनीतिक रणनीतिकार मानते हैं कि यह सबसे बेहतर मौका है जब एनसीपी की घड़ी को बंद कर देना चाहिये।
कांग्रेस की कीमत पर बढ़ी एनसीपी
महाराष्ट्र में एनसीपी हमेशा से कांग्रेस को धोखा देकर और उसके साथ ही बढ़ी है। सन 1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद ही शरद पवार ने अपने इरादे साफ़ कर दिये थे और पहले तो वो पीएम बनने की नाकाम कोशिश करते रहे और बाद में 1999 में सोनिया गांधी को विदेशी महिला बताकर अलग होकर अपनी पार्टी बना ली। लेकिन 2004 आते-आते उनको समझ में आ गया कि कांग्रेस के बिना राज्य और देश दोनों में काम नहीं चलेगा, तब वो साथ आये लेकिन अंदर से लगातार कांग्रेस को कमजोर करने का मौक़ा देखते रहे।
विपक्ष का नेता क्यों बने एनसीपी?
अब एनसीपी टूट गयी तब भी वो विपक्ष के नेता का पद चाहती है। इतना ही नहीं, उसने कांग्रेस से अभी रुकने कहा है। कांग्रेस ये बात क्यों मान रही है?
राहुल को समझना होगा
असल में राहुल गांधी को खुद महाराष्ट्र के हालात समझने होंगे। उनको एनसीपी को छोड़ देना चाहिये तब कांग्रेस फिर से खड़ी हो सकती है। अगर एनसीपी हट गयी तो कांग्रेस लोकसभा की कम से कम 24 और विधानसभा की 130 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है इससे पार्टी फिर ज़िंदा हो जायेगी। एनसीपी के हटने पर दलितों का एक बड़ा वर्ग वंचित बहुजन आघाड़ी के साथ आ जायेगा जिसका फायदा कांग्रेस को होगा।
कैसा है वोट बैंक?
एनसीपी का मूल वोट बैंक अब तक मराठा ही है इसलिए वो पश्चिम महाराष्ट्र और ठाणे, नवी मुंबई, रायगढ़ के अलावा फैल नहीं पाती। कांग्रेस के कारण कई बार उसे मुस्लिम मतदाता मिल जाता है। अब अजित पवार के टूटने से मराठा वोट बैंक टूट जायेगा और मुस्लिम भी अब सिर्फ कांग्रेस या शिवसेना के साथ खड़े होंगे। अगर शिवसेना और कांग्रेस के साथ वंचित की आघाड़ी बनती है तो मुंबई समेत कई इलाकों में फायदा होगा। एनसीपी का कैडर, जो कभी कांग्रेसी ही था, वो लौट कर वापस आ जायेगा।
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