मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी आप के लिये इतिहास के एक चक्र के पूरा होने जैसा है। सिसोदिया न केवल सरकार में नंबर दो के मंत्री हैं बल्कि वो पार्टी में भी नंबर दो की हैसियत रखते हैं। लेकिन उनका महत्व सरकार और पार्टी से अधिक इस बात से है कि अन्ना और केजरीवाल के बाद वो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। मनमोहन सरकार ने जब अन्ना और केजरीवाल को तिहाड़ जेल भेजा था तो सिसोदिया भी जेल गये थे। केजरीवाल के साथ उनकी दोस्ती मिथकीय है। वो तक़रीबन बीस साल से एक-दूसरे के जिगरी हैं। दोनों ने मिलकर अन्ना आंदोलन की रूपरेखा और रणनीति बनाई थी। चेहरे के तौर पर अन्ना का चुनाव भी दोनों ने मिलकर ही किया था। ये कह सकते हैं कि अन्ना आंदोलन के नायक अगर केजरीवाल थे तो सिसोदिया की भूमिका भी किसी नायक से कम नहीं थी। ऐसे में भ्रष्टाचार विरोधी नायक का भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना त्रासद है, दुखद है और विरोधाभासी भी।

दिल्ली के कथित आबकारी घोटाले मामले में मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी के बाद से भ्रष्टाचार को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं? आख़िर भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी का यह हाल कैसे हुआ कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री को जेल जाना पड़ा?
मनीष सिसोदिया आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी बनाने में भी प्रमुख रणनीतिकार थे। ये अलग बात है कि पार्टी में बाद में केजरीवाल काफ़ी आगे निकल गये और सिसोदिया की भूमिका सीमित होती गई है। केजरीवाल के इर्द-गिर्द पूरी पार्टी घूमने लगी, सब कुछ उनके हिसाब से होने लगा और मनीष बाक़ी साथियों की तरह बॉस के मातहत हो गये। ये भूमिका मनीष की इसलिये बनी कि वो केजरीवाल के सामने कभी असर्ट नहीं कर पाये। कभी उनसे अलग राय रखने की हिम्मत नहीं दिखा पाये। उन्हें ये मलाल भी रहा कि अगर वो ऐसा कर पाते तो शायद पार्टी वो सारी ग़लतियाँ नहीं करती जो वो करती चली गई। ऐसा नहीं था कि उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि केजरीवाल के फ़ैसले पार्टी को नुक़सान पहुँचा रहे हैं, पार्टी अपने रास्ते से भटक रही है, पार्टी चुनाव जीतने के लिये वो सब कुछ कर रही है जिसका विरोध करने के लिये आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था। पर शायद उनके विचारों पर दोस्त के प्रति निष्ठा भारी पड़ गई। और अब उनको इसी दोस्ती की क़ीमत चुकानी पड़ रही है।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।