जवाहरलाल नेहरू को याद करना, उनके किये-कहे को गुनना- समझना क्यों ज़रूरी है, यह शायद अब किसी को समझने या समझाने की ज़रूरत नहीं है। कंगना रनौत ने नवंबर, 2021 में ठीक फ़रमाया था कि असली आज़ादी 2014 में मिली। दरअसल, वह संघी जमात की असली आज़ादी की बात कर रही थीं। यह साफ़ है कि जब संघ के लोग देश की बात करते हैं तो उस देश के आहाते से बहुत सारे तबके बाहर रखे जाते हैं। अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े और हर तरह के हाशिये पर पड़े लोग। विभाजन के इन असली पैरोकारों ने, हर तरह के विभाजनों की अपनी विशेषज्ञता करीने से संभाल कर रखी है। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये उसी की खा रहे हैं।
संघ जब तक है नेहरू उससे लड़ते रहेंगे!
- विचार
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- 16 Nov, 2021

जवाहरलाल नेहरू का जिस्म भले ही नहीं रहा हो, लेकिन वह एक लड़ाई अभी भी लड़ रहे हैं। वह लड़ाई क्या है यह कंगना के उस बयान से भी पता चलता है जिसमें अभिनेत्री ने कहा था कि आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली है। अब गांधीजी भी निशाने पर ले लिए गए हैं। गांधी- दिवसों पर सोशल मीडिया पर गोडसे छाया रहता है, वैसे ही जैसे नेहरू के ख़िलाफ़ अनर्गल प्रचार से यह मीडिया कभी ख़ाली नहीं रहता। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आज जयंती है। उनकी जयंती पर पढ़िए यह लेख।
विभाजन के इन असली पैरोकारों ने, हर तरह के विभाजनों की अपनी विशेषज्ञता करीने से संभाल कर रखी है। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये उसी की खा रहे हैं।
संकीर्णता की उनकी घेरेबंदी में इतने बड़े हिंदुस्तान की समाई कहां। वहां इतनी रंगीनियों और विविधता की गुंजाइश ही नहीं। फिर वह दिल कहां, दिमाग़ कहां। इनकी परवरिश ही इकहरी, एकांगी और अपंग रही है। नफ़रत की ख़ुराक़ पर पले- बढ़े हैं और वही लिख-पढ़-बोल रहे हैं। तो कंगना इन्हीं लोगों को असली आज़ादी मिलने की बात कर रही हैं।
जब आज़ादी के लिए भगतसिंह जैसे वतन के नौजवान फांसी के फंदों को चूमते हुए शहीद हो रहे थे। गांधी के साथ हज़ारों हज़ार जेल भर रहे थे तब अंग्रेज़ों के मानसिक ग़ुलाम ये हिंदू महासभाई और संघी प्राणप्रण से ग़ुलामी की तरफ़दारी में लगे हुए थे। यह क़तई अजब नहीं था कि इन्हें यह आज़ादी रास नहीं आई। राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगीत संघ वालों के लिए बेमतलब और बेगानी चीज़ रहीं। साम्प्रदायिक ज़हर से, दंगों और अड़ंगों से वे स्वतंत्रता को छिन्न-भिन्न करते रहे। इस महादेश की विरासत, संस्कृति और पहचान पर सबसे गहन प्रहार इन्होंने बाबरी ध्वंस करके किया। उस समय की भाजपाई नेताओं की खिलखिलाहट भले आपके मन में कुत्सा पैदा करती हो पर वे खिली हुईं बांछें इशारा कर रही थीं कि उन्हें अपनी असली आज़ादी नज़र आने लगी है। 2014 में यह असली आज़ादी उन्हें मिल गयी जिसके बारे में नकली झांसी की रानी ने हमें बताया।
इनकी 'असली आज़ादी' ने 1947 में मिली दुश्मन-आज़ादी पर क्या कहर ढा रखा है इसे क्या बताना, यह तो सब खुलेआम और डंके की चोट पर किया जा रहा है।