जो लोग फ़लिस्तीनियों के स्वतंत्र राष्ट्र के संघर्ष में दिलचस्पी रखते हैं और उस पर नज़र रखे हुए हैं, उन्हें लग रहा होगा कि जैसे पश्चिम एशिया में एक बार फिर से इतिहास दोहराया जा रहा है। एक बार फिर इज़रायलियों द्वारा फ़लिस्तीनियों से उनकी ज़मीन, उनका हक़ छीनने की कोशिशें हो रही हैं, विरोध करने पर उन पर ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं, चरमपंथी संगठन हमास हिंसा से उसका जवाब देने की कोशिश कर रहा है और उसे कुचलने के लिए इज़रायल अपनी सैन्य ताक़त का इस्तेमाल कर रहा है।
क्या पश्चिम एशिया में सिर्फ़ इतिहास दोहराया जा रहा है या वह बदलेगा भी?
- विचार
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- 15 May, 2021
हमें इज़रायल की उन चालों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए जो वह खुद को मज़बूत करने के नाम पर कर रहा है। 1948 में उसे जो ज़मीन दी गई थी, वह मौजूदा इज़रायल का एक तिहाई भी नहीं थी। लेकिन अपनी विस्तारवादी और युद्ध नीतियों के बल पर उसने फ़लिस्तीनियों के लिए ग़ाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में एक छोटा सा टुकड़ा छोड़ा है। उस पर भी उसकी नज़रें लगी हुई हैं।
केवल यही नहीं, और भी चीज़ों का दोहराव देखा जा सकता है। इसमें सबसे प्रमुख है अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का उदासीन रवैया, जिसमें इज़रायल की पीठ पर हाथ रखने वाले अमेरिका और पिछलग्गू देश भी हैं और अरब तथा इसलामी देश भी।