भारत और पाकिस्तान ऐसे पड़ोसी हैं जिन्हें लड़ने के लिए बहाने नहीं तलाशने पड़ते। कुछ मुद्दे उनके पास सदाबहार हैं तो कुछ उनकी झोली में आ गिरते हैं। कई बार वे खुद ही मुद्दे खड़े कर डालते हैं। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि वे दूसरी बहुत सी बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं और उनकी प्राथमिकता उनका समाधान करना होना चाहिए।
इसीलिए कोरोना के इस महासंकट के दौर में भी उनके बीच में तक़रार जारी है। अब उनकी लड़ाई की वज़ह बना है कश्मीर का वह इलाक़ा जिस पर पाकिस्तान का नियंत्रण है। ये इलाक़ा है गिलगिट, बाल्टिस्तान और मुज़फ्फराबाद का।
भारत के मौसम विज्ञान विभाग ने अपने मौसम बुलेटिन में इन इलाक़ों के मौसम को भी शामिल कर लिया है, जो कि ज़ाहिर है कि पाकिस्तान को पसंद नहीं आया है और उसने इसे शरारतपूर्ण कार्रवाई बताते हुए इसका विरोध किया है।
पाकिस्तान का कहना है कि भारत द्वारा पिछले साल प्रकाशित किए गए नक्शे की ही तरह यह भी वास्तविकता से उलट है और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन करता है। उसने ये भी कहा है कि ये भारत के ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार का एक और सबूत है।
क्या है विवाद?
आइए पहले तो ये समझ लेते हैं कि ये विवाद है क्या। दरअसल, भारत के मौसम विज्ञान विभाग ने पूरे देश को 36 सब डिवीजन में बाँट रखा है और इन इलाक़ों के लिए मौसम बुलेटिन देता है। ज़्यादातर सब डिवीजन राज्यों के हिसाब से हैं लेकिन बड़े राज्यों में एक से ज़्यादा सब डिवीजन भी हैं और कई छोटे राज्यों को मिलाकर भी एक सब डिवीजन बना दिया गया है।पहले जम्मू-कश्मीर के लिए भी एक सब डिवीजन था। हालाँकि इसमें पाकिस्तान के कब्ज़े वाले इलाक़ों को भी शामिल किया गया था, लेकिन उस बुलेटिन में गिलगिट-बाल्टिस्तान और मुज़फ़्फराबाद का नाम शामिल नहीं किया जाता था। धारा 370 को हटाए जाने के बाद इस सब डिवीजन का नाम जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हो गया था, क्योंकि लद्दाख को राज्य से अलग करके अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था।
गत 7 अप्रैल से मौसम विभाग ने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, गिलगिट-बाल्टिस्तान, मुज़फ्फराबाद सब डिवीजन के नाम से बुलेटिन शुरू किया तो ये पाकिस्तान को चुभ गया और उसने इस पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी।
पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला
इस विवाद की एक कड़ी पाकिस्तान से भी जुड़ती है। गत 30 अप्रैल को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने वहाँ की संघीय सरकार को गिलगिट-बाल्टिस्तान में एक कामचलाऊ सरकार की देखरेख में चुनाव करवाने की इजाज़त दे दी थी। गिलगिट में पहले भी चुनाव होते रहे हैं। पिछले चुनाव 2015 में हुए थे।
मगर भारत सरकार ने ये कहते हुए इस पर कड़ी आपत्ति की कि पाकिस्तान ने इस इलाक़े पर अवैध तरीकों से ज़बरदस्ती कब्ज़ा किया हुआ है और भारत यहाँ भौतिक बदलाव करने की लगातार कोशिशों को अस्वीकार करता है। पाकिस्तान ने उसी दिन भारतीय आपत्तियों को खारिज़ भी कर दिया था।
वोट बैंक का तुष्टिकरण!
दरअसल, मौसम बुलेटिन कोई बड़ी बात नहीं है, मगर इस बहाने भारत सरकार पाकिस्तान के कब्ज़े वाले इलाक़े पर अपना दावा जता रही है। ये दावा भी नया नहीं है, बल्कि हमारे संविधान तक में इसका उल्लेख है और संसद के संकल्पों और प्रस्तावों में भी इसे दोहराया गया है। लेकिन अगर सरकार इसे उभारना चाहती है तो इसके कई कारण हो सकते हैं। अव्वल तो ये कि इससे सत्तारूढ़ दल के वोट बैंक का तुष्टिकरण होता है।
बीजेपी की राजनीति और विचारधारा में कश्मीर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वह अपनी राजनीति में इसका लगातार इस्तेमाल करती रही है। ऐसा करके वह अंधराष्ट्रवादी भावनाएं उभारती रहती है और अकसर सफल भी हुई है।
धारा 370 को हटाकर भी बीजेपी ने यही किया था। बहुत सारे लोगों का मानना है कि इससे उसका वोटबैंक मज़बूत हुआ है। हालाँकि बीजेपी के नेता इसे राष्ट्रीय एकता और अखंडता के आवरण से ढकने की कोशिश करते हैं मगर सचाई यही है कि इसमें मुसलमानों और पाकिस्तान के विरोध का पुट रहता है जो कि बीजेपी की राजनीति को खाद-पानी देने का काम करता है।
कश्मीरियों का नुक़सान
जिस तरह भारत में बीजेपी कश्मीर का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए करती है, उसी तरह पाकिस्तान के राजनीतिक दल भी करते हैं। वे भी कश्मीर के बहाने भारत विरोधी भावनाओं को भड़काते हैं और राजनीतिक फ़ायदा उठाते हैं। नुक़सान होता है तो केवल कश्मीरियों का चाहे वे सरहद के इस ओर रह रहे हों या उस ओर।
यहाँ ये याद रखा जाना चाहिए कि दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को स्वीकार किया है और इसी आधार पर वे अपनी तरफ के कश्मीर पर शासन करते हैं। इसलिए बेहतर तो यही होता कि जब तक सीमा विवाद का कोई समाधान नहीं हो जाता तब तक कुछ ऐसा न करें जिससे विवाद खड़ा हो या तनाव बढ़े।
लेकिन अकसर कई देश इसे मानते नहीं। चीन लगातार अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता रहता है और जब कभी भारत सरकार वहाँ कुछ करती है तो उसका विरोध भी करता है। जवाब में भारत सरकार भी अपना विरोध जताती है और ये सिलसिला चलता रहता है।
लेकिन वर्तमान सरकार जिस तरह से कश्मीर मसले को लगातार सुलगाए रखने की कोशिश कर रही है, उससे इतना तो साफ़ है कि उसकी आगे की रणनीति में कोई आक्रामक कार्रवाई भी हो सकती है। यानी अगले आम चुनाव के पहले वह पाकिस्तान से अगर कोई छोटा या बड़ा सैन्य टकराव मोल ले ले तो कोई हैरत नहीं होगी।
आख़िर पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के अंदर हवाई हमला करके उसने यही किया था और उसका चुनावी फ़ायदा भी उठाया। कहते हैं इश्क और जंग में सब कुछ जायज़ है और सियासत को भी बहुत से लोग जंग ही मानते हैं।
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