नेपाल के चीन परस्त प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने तुरंत पेट्रोल के दाम में प्रति लीटर दो रुपये की कमी का ऐलान किया। साफ़ है कि नेपाल की जनता इससे काफ़ी राहत तो महसूस करेगी ही उन्हें सप्लाई में बाधा आने से पेट्रोल पम्पों पर घंटों इंतजार से भी राहत मिलेगी।
325 करोड़ रुपये की लागत से बनी इस पाइपलाइन के शुरू हो जाने से सड़क यातायात पर लोड कम होगा और भारत और नेपाल के बीच वाहनों की आवाजाही भी काफ़ी सुगम होगी और भारत-नेपाल सीमा पर सड़कों का जाम काफ़ी हद तक ख़त्म हो जाएगा। भारत-नेपाल सीमा से होकर रोजाना तीन सौ से अधिक पेट्रोल ट्रक नेपाल जाते थे।
इस पाइपलाइन से साल में क़रीब 20 लाख टन पेट्रोल की सप्लाई नेपाल को की जा सकेगी जिससे नेपाल की पेट्रोलियम ज़रूरतें पूरी होंगी।
ग़ौरतलब है कि नेपाल के संविधान में मधेसी लोगों के साथ भेदभाव के मसले पर मधेसियों ने वहाँ की सरकार के ख़िलाफ़ 2015 में जबर्दस्त आन्दोलन किया था और विरोध के तौर पर भारत-नेपाल सीमा पर वाहनों की आवाजाही को रोक दिया था। भारत सरकार का भी इस नाकेबंदी और आन्दोलन को अप्रत्यक्ष समर्थन मिला था जिस वजह से नेपाल को पेट्रोल जैसी ज़रूरी सप्लाई ठप हो गई थी।
चीन की चिरौरी करने वाले नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने तब भारत को धमकी दी थी कि वह चीन से पेट्रोल और अन्य ज़रूरी वस्तुओं का आयात करने लगेंगे। सितम्बर, 2015 से फ़रवरी, 2016 तक भारत-नेपाल सीमा पर एक तरह से नाकेबंदी की हालत रही थी और नेपाल की जनता पेट्रोल और अन्य वस्तुओं की सप्लाई रुक जाने से त्राहि-त्राहि करने लगी थी।
नेपाल में आम लोगों की परेशानी का फायदा न केवल नेपाल का राजनीतिक वर्ग अपने निहित स्वार्थ के लिये लेने लगा बल्कि चीन ने भी नेपाल में भारत विरोध की हवा को देखते हुए नेपाली नेताओं को लुभाने वाले कई प्रस्ताव दिये जिसमें तिब्बत के रास्ते वाहनों से नेपाल को पेट्रोल और अन्य ज़रूरी सप्लाई का वादा किया। लेकिन यह प्रस्ताव काफ़ी ख़र्चीला होने की वजह से व्यावहारिक नहीं साबित हुआ और अंततः नेपाल को भारत की ओर ही मुंह करना पड़ा। लेकिन नेपाल में भारत विरोध की हवा बनाने से नेपाल के राजनेता बाज़ नहीं आए।
बिहार के बेग़ूसराय जिले के बरौनी तेल शोधक कारखाने से तेल मोतिहारी से होते हुए नेपाल के अमलेखगंज के फ़्यूल डिपो तक भेजा जाएगा, जहां 16 हज़ार किलोलीटर पेट्रोल भंडार करने की क्षमता है।
मोतिहारी-अमलेखगंज के बीच यह पाइपलाइन भारत और नेपाल के रिश्तों की गांठ इतनी मजबूत करेगी कि इसके टूटने की शंका से नेपाल कांपने लगेगा। भौगोलिक निकटता और सांस्कृतिक समानता की वजह से नेपाल सदियों से भारत का स्वाभाविक साथी रहा है। वास्तव में भारत और नेपाली लोगों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता विकसित हो चुका है लेकिन वैसा ही रिश्ता चीन और नेपाल के बीच जनता के स्तर पर नहीं विकसित हुआ जो भारत-नेपाली लोगों के बीच सदियों से रहा है।
दोनों देशों के बीच परिवार का रिश्ता होने की बात कही जाती रही है लेकिन आधुनिक युग में नेपाली राजनीतिज्ञ अपने निहित स्वार्थों के लिये चीन से नजदीकियां बढ़ाने लगे और भारत के ख़िलाफ़ चीन कार्ड खेलने लगे। इससे भारत और नेपाल के रिश्तों में खटास पैदा होने लगी।
1950 की भारत-नेपाल मैत्री संधि को तोड़ने की बात नेपाली राजनेता करने लगे जिस पर भारत ने हमेशा खुल कर बात करने की बात कही। लेकिन नेपाली नेताओं ने कभी भी इस संधि पर सार्थक बात नहीं की। इस संधि की भावना को तोड़ते हुए नेपाल ने चीन के साथ सैन्य और रक्षा सम्बन्ध गहरे करने शुरू कर दिये।
नेपाल एक संप्रभु देश है और उसका यह हक़ है कि किसी भी देश के साथ किसी भी तरह की दोस्ती रखे लेकिन भारत का हमेशा यही कहना रहा है कि यह दोस्ती भारत के सामरिक हितों को चोट पहुंचाने वाली नहीं हो। नेपाली राजनीतिज्ञों ने यह कभी नहीं सोचा कि भारत के साथ रिश्तों की क़ीमत पर चीन से दोस्ती गहरी करने की उनकी कोशिश नेपाल के हितों के ख़िलाफ़ ही जाएगी।
भारत ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए नेपाली लोगों के लिये यह पाइपलाइन बनाने का काम तयशुदा वक़्त से काफ़ी पहले कर नेपाली लोगों को यह संदेश दिया है कि भारत के साथ सहयोग का रिश्ता रखने से ही उनका भला हो सकता है। अब नेपाल को पेट्रोल सप्लाई के लिये चीन की ओर नहीं देखना होगा। उम्मीद की जानी चाहिये कि भारत-नेपाल पेट्रोल पाइपलाइन भारत और नेपाल के बीच राजनीतिक रिश्तों में परस्पर विश्वास और मिठास का एक नया दौर शुरू करेगी।
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