आज क्रांतिकारी उधम सिंह की शहादत का दिन है। आज ही के दिन यानी 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को फाँसी की सज़ा हुई थी। उधम सिंह का जीवन और उनकी शहादत कई मायने में अलग है। उनकी ज़िंदगी रूमानियत में डूबी कहानी है।
उधम सिंह: जिन्होंने जलियाँवाला नरसंहार का बदला लिया, हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूल गये
- विचार
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- 30 Jul, 2020

जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के लिए उधम सिंह इंग्लैण्ड की हुकूमत को उसके घर में घुसकर सबक़ सिखाना चाहते थे। उनके निशाने पर पंजाब का पूर्व गवर्नर ओ डायर आया। अंत में वह दिन भी आया जब क्रांतिवीर उधम सिंह को फाँसी दी गई। वही क्रांतिकारियों का अंदाज़! हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूमकर उधम सिंह झूल गए। आज उनकी शहादत का दिन है। भारत माता को आज़ाद कराने का यह अंदाज़ क्या आज देश को याद है?
उधम सिंह को हम एक ऐसे नौजवान के रूप में जानते हैं, जो एक संकल्प को 21 साल तक अपने सीने में दबाए रखता है। यह संकल्प एक घटना से जुड़ा हुआ है। 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब के अमृतसर स्थित जलियाँवाला बाग़ में जनरल डायर के आदेश पर निहत्थे और बेकसूर हज़ारों भारतीयों को मार दिया गया था। इस सभा में बीस साल का यह नौजवान भी था जिसने अपनी आँखों से इस हौलनाक मंजर को देखा था। कहा जाता है कि उसी दिन उधम सिंह ने यह प्रण किया कि जनरल डायर को मारकर इस नरसंहार का बदला ज़रूर लेगा।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।