बड़े भारी मन से मैं यह लिख रहा हूँ।
साम्प्रदायिक तनाव नहीं रुकेगा तो विकास कैसे हो पाएगा: मनमोहन सिंह
- विचार
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- 6 Mar, 2020

मौजूदा संकट को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मेरा विश्वास है कि यह पवित्र कर्तव्य है कि भारत की जनता को सच बताया जाए। और सच यह है कि मौजूदा संकट गहरा और चिंताजनक है। जिस भारत को हम जानते हैं और जिस पर हमें गर्व है वह हमारे हाथों से तेज़ी से फिसलता जा रहा है। जानबूझकर भड़काए गए साम्प्रदायिक तनाव, आर्थिक कुप्रबंधन और बाहरी स्वास्थ्य संकट भारत की प्रगति व वैश्विक मंच पर उसकी हैसियत को कम करता जा रहे हैं।
सामाजिक शत्रुता, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य संकट भारत के लिए एक बड़े ख़तरे की घंटी है। सामाजिक अराजकता और आर्थिक बर्बादी हमने ख़ुद अपने आप को दिए हैं जबकि कोरोना वायरस का खौफ़ बाहरी कारणों से है। मुझे इस बात की चिंता है कि ये तीनों संभावित ख़तरे न सिर्फ़ भारत की आत्मा को तहस-नहस कर देंगे, बल्कि दुनिया के नक्शे पर भारत की आर्थिक और लोकतांत्रिक प्रसिद्धि को भी कम करेंगे।
पिछले कुछ हफ़्तों से दिल्ली चरम हिंसा का शिकार हो रही है। अकारण हमने क़रीब 50 भारतीयों को खो दिया है और सैकड़ों घायल हैं। समाज के अराजक तबक़े, जिनमें से राजनीतिक जमात भी शामिल है, ने साम्प्रदायिक तनाव और धार्मिक उन्माद को भड़काया है। विश्वविद्यालयों में, सार्वजनिक स्थानों पर और घरों में साम्प्रदायिक हिंसा हो रही हैं और जो सहसा ही भारतीय इतिहास के कुछ काले अध्याय की याद दिलाते हैं। जिन संस्थाओं पर क़ानून-व्यवस्था को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी है वे अपने नागरिकों को सुरक्षा करने के अपने धर्म को छोड़ बैठे हैं। न्यायिक संस्थाएँ और लोकतंत्र का चौथा खंभा कहे जाने वाले मीडिया ने भी हमें निराश किया है।