कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने अपने पत्रों और साक्षात्कारों में कांग्रेस पार्टी के पुनरुत्थान के लिए लोकतांत्रिक बदलाव लाने का आह्वान किया है। उन्होंने 'पार्टी के हालात पर अफ़सोस जताया और कहा कि कांग्रेस को जनता ने बीजेपी के सामने 'प्रभावी विकल्प' के रूप में नहीं देखा। वह ऊपर से नामांकन के बजाय नेताओं के चयन, सामूहिक नेतृत्व और लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ चाहते हैंI
दूसरे लोग राहुल गांधी को 'आक्रामक और प्रभावशाली' भावना की कमी के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं और कहते हैं कि कांग्रेस का नेतृत्व कमज़ोर हो गया है। अन्य कई लोग कहते हैं कि कांग्रेस की केंद्र और राज्य इकाइयों में तालमेल नहीं हैI
इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि इन सभी आरोपों में कुछ सच्चाई है। बिहार में हाल के राज्य चुनावों में कांग्रेस ने ख़राब प्रदर्शन किया, जैसा कि कई राज्यों के उपचुनावों में भी हुआ।
मेरा मानना है कि न तो कपिल सिब्बल और न ही अन्य लोगों ने गहराई से कांग्रेस की दुर्दशा का सही विश्लेषण किया है।
स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस ने ज़बर्दस्त भूमिका निभाई थी। जिस कारण आज़ादी के बाद कांग्रेस को चुनावों में भारी सफलता मिली। केंद्र और राज्यों दोनों में अधिकांश चुनावों में उसने जीत हासिल की।
जनता की याददाश्त कमज़ोर होती है, और कांग्रेस के नेताओं को जल्द ही एहसास हो गया कि वे केवल इस प्रतिष्ठा पर हमेशा चुनाव नहीं जीत सकते। भारत एक अर्ध सामंती देश है जिसमें जाति और धर्म का ख़ासा असर है और चुनावों में इनकी बड़ी भूमिका होती है। इसलिए कांग्रेस ने एक गठबंधन बनाया ताकि भविष्य के चुनावों में भी जीत सुनिश्चित कर सके। इसमें 3 मुख्य समूह (1) उच्च जातियाँ, (2) मुसलमान और (3) अनुसूचित जाति, शामिल थे।
उत्तर भारत के बड़े राज्यों जैसे कि यूपी और बिहार में उच्च जातियाँ (ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, भूमिहार आदि) कुल आबादी का लगभग 16-18%, मुसलमान लगभग 16-18% और अनुसूचित जाति लगभग 20% हैं। इस गठबंधन की वजह से 50% से अधिक मत कांग्रेस को मिलने लगे। जबकि चुनाव जीतने के लिए केवल 30% से अधिक मतों की आवश्यकता थीI इस तरह कांग्रेस आज़ादी के बाद कई दशकों तक पूरे भारत में चुनाव जीतती आयी।
यह गठबंधन अब टूट गया है। उच्च जातियों ने बीजेपी को अपना लिया है। दिसंबर 1992 में बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद मुसलमानों ने कांग्रेस छोड़ दी (और यूपी में SP के साथ, बिहार में RJD के साथ गठबंधन किया) और यूपी में अनुसूचित जातियों ने अपनी पार्टी बनाई - BSP (जो कुछ अन्य राज्यों में भी उपस्थिति है)।
नतीजतन कांग्रेस के पास अब कोई जाति या धार्मिक वोट बैंक नहीं रह गया है। कांग्रेस कुछ सीटों पर सफल होती है, लेकिन यह या तो किसी उम्मीदवार के व्यक्तिगत प्रभाव के कारण होता है, या किसी अन्य पार्टी (जैसे बिहार में आरजेडी) पर गुल्लक की सवारी करके- जिसके वोट गठबंधन में होने पर मिलते हैं।
इसलिए कपिल सिब्बल और अन्य लोगों के मायूसी और उदासी भरे विलाप के बावजूद कांग्रेस के लिए कोई भविष्य नहीं देखा जा सकता है। भारत में ज़्यादातर लोग वोट बैंक के रूप में वोट करते हैं लेकिन कांग्रेस अब किस जाति या धर्म का प्रतिनिधित्व करती है? मेरे विचार में किसी का नहीं।
भले ही इसके नेतृत्व में बदलाव हो और लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनायी जाए, जैसा कि कपिल सिब्बल की माँग है, इससे क्या फर्क पड़ेगा? यह इन्हें कोई जाति या धार्मिक वोट बैंक नहीं देगा। मेरे विचार से अब कांग्रेस के दिन समाप्त हो गए हैं।
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