पिछले लोकसभा चुनाव के समय एक इजराइली एजेंसी द्वारा बनाया गया पेगासस (Pegasus) नाम का स्पाईवेयर काफ़ी चर्चा में था। इसके माध्यम से भारतीय पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता की जासूसी करने की बात अमेरिकी फ़ेडरल कोर्ट में WhatsApp ने स्वीकार भी की थी। और अब कोरोना की इस लड़ाई में भारत सरकार द्वारा बनाया गया ‘आरोग्य सेतु’ ऐप चर्चा में है। इस ऐप को लेकर न सिर्फ़ कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने सवाल खड़े किए हैं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन नामक एक संगठन ने भी अपनी चिंताएँ जताई हैं। तो अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार कोरोना के ख़िलाफ़ संघर्ष में देश की जनता को इस बीमारी के बारे में कुछ विशेष जानकारी देने के लिए इस ऐप का इस्तेमाल कर रही है या इसके पीछे कुछ और भी मक़सद है?
इस ऐप को लेकर राहुल गाँधी ने कहा कि यह ऐप ‘एक जटिल जासूसी (निगरानी) रखने वाली ऐप है, जिसे किसी निजी कंपनी को संचालन के लिए दिया गया है, जिसके पास कोई संस्थागत दूरदृष्टि नहीं है।’ उन्होंने आँकड़ों की सुरक्षा और निजता को लेकर भी सवाल उठाए थे। लेकिन केंद्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इस आरोप का खंडन किया और कहा कि ऐप का डाटा सुरक्षा आर्किटेक्चर मज़बूत है। राजनीतिक विरोध के बावजूद सरकार पीछे नहीं हट रही है और आरोग्य सेतु ऐप के इस्तेमाल को बढ़ाने की लगातार कोशिशें जारी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार अनेक माध्यमों से रोज़ाना लोगों से आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने की अपील कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस ऐप का मक़सद इस बात की जानकारी देना है कि आप जाने अनजाने में किसी कोरोना वायरस संक्रमित शख्स के संपर्क में आए या नहीं।
केंद्र सरकार ने सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करना अनिवार्य कर दिया है। वहीं दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि ज़मीन पर काम करने के पुराने तरीक़े की जगह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप और अन्य तकनीक नहीं ले सकती है।
डब्ल्यूएचओ के इमर्जेंसी हेड माइक रायन के मुताबिक़, ‘हम इस बात पर ज़ोर देना चाहेंगे कि आईटी टूल्स सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की जगह नहीं ले सकते हैं, जिनकी ज़रूरत ट्रेस, जाँच, आइसोलेट और क्वॉरंटीन करने में पड़ती है।’
कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप की मदद से नए मामलों की पहचान हो सकती है और क्लस्टर बनने से रोका जा सकता है। आरोग्य सेतु कोविड-19 पॉजिटिव मामलों को ट्रैक करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनवाया गया एक मोबाइल एप्लीकेशन है। यह स्मार्टफ़ोन के जीपीएस और ब्लूटूथ की मदद से कोरोना वायरस संक्रमण को ट्रैक करने का दावा करता है। इसे मोबाइल में इंस्टॉल कर व्यक्ति को ख़ुद ही अपने स्वास्थ्य संबंधी जानकारी इसमें डालनी होती है। सरकार का दावा है कि इसे एक बार मोबाइल में इंस्टॉल कर लेने से अगर व्यक्ति हमेशा जीपीएस, ब्लूटूथ ऑन रखे तो उसे घर से बाहर निकलने पर यह पता चलता रहेगा कि वह कहीं किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं आया।
नोएडा: ऐप डाउनलोड नहीं करना अपराध
इसे अभी तक पाँच करोड़ से भी ज़्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है और केंद्र सरकार चाहती है कि यह देश में हर व्यक्ति के मोबाइल तक पहुँच जाए। केंद्र सरकार ने सभी सरकारी विभागों और सभी निजी कंपनियों से भी कहा है कि वे सब अपने अपने कर्मचारियों के लिए इसे मोबाइल पर डाउनलोड करना अनिवार्य कर दें। दिल्ली से सटे नोएडा में तो प्रशासन ने मोबाइल में इस ऐप को इंस्टॉल नहीं करने पर तो दंडनीय अपराध बना दिया है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अगर कोई बाहर दिखता है और उसके स्मार्टफ़ोन पर इस ऐप को नहीं पाया जाता है तो उसपर जुर्माना लगाया जा सकता है या जेल की सजा दी जा सकती है।
क्या हैं सुरक्षा चिंताएँ?
विशेषज्ञों का कहना है कि इस ऐप के इस्तेमाल का क़ानूनी आधार स्पष्ट नहीं किया गया है। इसके अलावा उनका आकलन है कि ऐप की निजता पॉलिसी और टर्म्स ऑफ़ सर्विस डाटा सुरक्षा के कई सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, जैसे उद्देश्य को सीमित रखना, न्यूनतम डाटा लेना, उसके भंडारण को सीमित रखना, और डाटा को प्रोसेस करने में गोपनीयता, पारदर्शिता और निष्पक्षता का पालन होना।
अभिव्यक्ति और निजता को लेकर काम करने वाली संस्था इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफ़एफ़) ने आरोग्य सेतु पर अपना विस्तृत शोध किया है।
आईएफ़एफ़ ने कहा है कि इसमें कई कमियाँ हैं। पहली कमी यह है कि भारत में व्यापक डाटा सुरक्षा क़ानून का अभाव है और जो सर्विलांस और इंटर्सेप्शन के क़ानून हैं वे वर्तमान हालातों से बहुत पीछे हैं।
आईएफ़एफ़ यह भी कहता है कि सिंगापुर और कुछ यूरोपीय देशों में भी सरकार इस तरह की ऐप का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन वहाँ ऐसी कई बातों का ख्याल रखा जा रहा है जिन्हें भारत में नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। जैसे, सिंगापुर में सिर्फ़ स्वास्थ्य मंत्रालय इस तरह की प्रणालियों द्वारा इकट्ठा किए गए डाटा को देख या इस्तेमाल कर सकता है और नागरिकों से वादा किया गया है कि पुलिस जैसी एजेंसियों की पहुँच इन डाटा तक नहीं होगी। इसके विपरीत, भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय के इसमें मुख्य रूप से शामिल होने के कोई संकेत नहीं हैं।
सिंगापुर में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का इस्तेमाल सिर्फ़ बीमारी के नियंत्रण के लिए हो रहा है और लॉकडाउन और क्वॉरंटीन जैसे क़दम लागू करने के लिए नहीं हो रहा है। अधिकतर ऐप ब्लूटूथ का इस्तेमाल करते हैं (जैसे सिंगापुर में) या जीपीएस का, लेकिन आरोग्य सेतु दोनों का इस्तेमाल करता है। अधिकतर ऐप सिर्फ़ एक बिंदु पर डाटा इकट्ठा करते हैं लेकिन आरोग्य सेतु कई बिंदुओं पर डाटा माँगता है। आईएफ़एफ़ के अनुसार आरोग्य सेतु में पारदर्शिता के मोर्चे पर भी कई कमियाँ हैं। यह ऐप अपने डवलपर्स और उद्देश्य दोनों के बारे में जानकारी नहीं देता है।
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