पूरी दुनिया बेसब्री से इंतज़ार कर रही है कि कब कोरोना वायरस का आतंक ख़त्म हो और लोग सामान्य ज़िंदगी में वापस लौट सकें। हर किसी को लग रहा है कि जल्दी ही कोरोना की दवाई आ जाएगी या टीके का ईजाद हो जाएगा और वे बेख़ौफ़ हो जाएंगे। उन्हें लॉकडाउन से मुक्ति मिल जाएगी, वे जहाँ चाहे जा सकेंगे, जो चाहे कर सकेंगे, जिससे चाहे मिल सकेंगे। मगर यदि आपको ये कहा जाए कि कोरोना वायरस कभी जाएगा ही नहीं, हमें उसके साथ ही जीना होगा तो आप पर क्या गुज़रेगी। निश्चय ही आप निराशा में डूब जाएंगे।
दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने आशंका व्यक्त की है कि हो सकता है कि कोरोना कभी जाए ही न। यानी अगर हम सोच रहे हैं कि ये कोई मौसमी वायरल है और कुछ समय बाद अपने आप चला जाएगा तो हम ग़लत सोच रहे हैं।
मुमकिन है कि कुछ ख़ास मौसम में या कुछ ख़ास इलाक़ों में कोरोना वायरस का प्रकोप कम रहे, मगर इसकी संभावनाएं बहुत कम हैं कि यह वायरस पूरी दुनिया से सफ़ाचट हो जाएगा।
डब्ल्यूएचओ के आपातकालीन मामलों के निदेशक माइकल रयान के मुताबिक़, दूसरे वायरस की तरह कोरोना भी हमारे साथ रह सकता है और हमें उसके साथ रहना सीखना पड़ेगा। एचआईवी का वायरस इतने सालों बाद भी मौजूद है और चेचक का टीका कब का खोज लिया गया था मगर वह अभी भी यहाँ-वहाँ फैल जाता है।
जहाँ तक कोरोना के इलाज का सवाल है तो इस समय इसे लेकर सौ से ज़्यादा जगहों पर शोध चल रहा है और कई जगह ये इंसानों पर ट्रायल के चरण में पहुंच गया है। ज़ाहिर है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक युद्ध स्तर पर कोई दवाई या टीका खोजने में लगे हुए हैं।
चूँकि ये खोज केवल चिकित्सा के लिहाज़ से ही नहीं धंधे के हिसाब से भी बहुत महत्वपूर्ण होगी, इसलिए प्रयासों में कोई कमी नहीं बरती जा रही है। जो भी कंपनी या देश सबसे पहले इसका टीका खोजेगा, उसके वारे-न्यारे हो सकते हैं।
तमाम देशों के बीच ये स्पर्धा का भी मामला बना हुआ है कि कौन आगे निकलकर अपनी काबिलियत साबित करता है। कहा जा रहा है कि इस समय ब्रिटेन और चीन इस होड़ में आगे चल रहे हैं। फिर भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। अनुमान यही है कि खोज में छह महीनों से दो साल तक का समय लग सकता है।
मगर यदि दवाई या टीका खोज भी लिया गया तो खोज के साथ ही कोरोना से जंग ख़त्म नहीं हो जाएगी। इसके बाद उसके बड़े स्तर पर उत्पादन और फिर दुनिया भर में पहुँचाने में भी समय लगेगा। टीका मिलने के बाद टीकाकरण अभियान में भी बरसों लग सकते हैं। यानी इसे आप 3 से 5 साल का कार्यक्रम समझ सकते हैं।
आख़िरकार, हम इतना लंबा अरसा घरों में बंद रहकर नहीं गुज़ार सकते और न ही आर्थिक गतिविधियों को ख़त्म किया जा सकता है। यही वज़ह है कि अब पूरी दुनिया लॉकडाउन से निकलने को उतावली हो रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ये भी कह रहा है कि जिन इलाक़ों से कोरोना को ख़त्म कर दिया गया है, वहाँ दोबारा संक्रमण नहीं होगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। और ये हम देख भी रहे हैं कि चीन के वुहान में पूरी तरह ख़त्म कर दिए जाने के बाद फिर से संक्रमित लोग मिल रहे हैं।
अब चीन की सरकार वुहान की पूरी एक करोड़ की आबादी की टेस्टिंग करने की तैयारी कर रही है। इसी तरह दक्षिण कोरिया और सिंगापुर में भी कोराना से संक्रमण के मामले मिले हैं।
वैज्ञानिक ये भी कह रहे हैं कि दुनिया भर में कोरोना के ख़िलाफ़ इम्यूनिटी या प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेना भी संभव नहीं है या इसमें बरसों लग सकते हैं। दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी कुपोषण की शिकार है, उसे जब तक पौष्टिक आहार नहीं मिलेगा तब तक उसमें प्रतिरोधक क्षमता भी पैदा नहीं की जा सकेगी। फिर प्रतिरोधक क्षमता स्थायी भी नहीं होती।
3 लाख बच्चों की मौत की आशंका!
यहाँ ये भी ध्यान रहे कि यूनिसेफ ने अगले 6 महीनों के अंदर भारत में क़रीब 3 लाख बच्चों की मौत होने की आशंका व्यक्त की है। इसकी बड़ी वज़ह हमारा कमज़ोर स्वास्थ्य तंत्र है। यानी बीमारी से लड़ने के लिए हमारे पास स्वास्थ्य सुविधाएं ही नहीं हैं। ऐसे में भारत और उसके जैसे ग़रीब आबादी वाले मुल्कों में लोग कोरोना का शिकार होते रहेंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी का मतलब ये भी है कि हमें कोरोना से लड़ने के साथ-साथ उसके साथ जीने की तैयारी भी करनी चाहिए। ज़ाहिर है कि इसके लिए हमें वे एहतियात जारी रखने पड़ेंगे जो हमने इन दिनों अपनाए हैं जिनमें मास्क लगाना, साफ़-सफ़ाई और सामाजिक दूरी का ध्यान रखना शामिल है।
हमें जीने के तौर-तरीके बदलने होंगे, काम-धंधों का रूप बदलना होगा। इसके अलावा अपनी सरकारों को मजबूर करना होगा कि वे सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करें। वास्तव में पूरी दुनिया इसकी तैयारी भी कर रही है।
चीन सहित बहुत से देशों में मास्क पहनना और दूसरी सावधानियाँ अपनाना अब अनिवार्य हो चुका है। तो मित्रों, अब दवाईयों और टीके का इंतज़ार मत कीजिए। अपनी लाइफ़ स्टाइल बदल डालिए। हमें अब कोरोना के संग ही जीना है।
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