गाय विशेषकर देसी गाय का हमारे देश में कितना महत्व है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे भारत का बहुसंख्यक हिन्दू समाज 'गऊ माता ' कहकर संबोधित करता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी पर्व बाक़ायदा पूरी श्रद्धा एवं धार्मिक विश्वास के साथ एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पूरे देश में हिन्दू समाज के लोग देसी गायों की पूजा करते हैं तथा गऊ माता से प्रार्थना करते हैं।
गाय के दूध में भैंस के दूध की तुलना में कई विशेषतायें होती हैं। उदाहरण के तौर पर गाय के एक कप दूध से 8 ग्राम प्रोटीन प्राप्त होता है। चूँकि इसमें वसा की मात्रा कम होती है इसलिये वज़न को नियंत्रित रखने हेतु गाय का दूध श्रेष्ठ माना गया है। भैंस के 1 कप दूध में 285।5 कैलोरी होती है जबकि गाय के एक कप दूध में केवल 160 कैलोरी ही होती है। सुपाच्य होने कारण डॉक्टर्स भी बच्चों को गाय का दूध पिलाने की ही सलाह देते हैं।
गाय के दूध के और भी अनेक फ़ायदे बताये गये हैं। जैसे कि इसके लगातार प्रयोग से हार्ट, डाईविटीज़, कैंसर, टीबी व हैज़ा जैसी बीमारियां दूर रहती हैं। गाय का दूध बच्चों के दिमाग़ी विकास के लिए भी अत्यंत फ़ायदेमंद माना गया है। चूँकि यह प्राकृतिक रूप से हल्का मीठा होता है इसकी वजह से यह पित्त और गैस की समस्या से भी निजात दिलाता है। माना जाता है कि दूध में गुड़ मिलाकर इसका सेवन करने से मूत्राशय से संबंधित रोगों में भी आराम मिलता है।
हालाँकि यह बात भी सच है कि देश का बहुसंख्य हिन्दू समाज भले ही गाय को गऊ माता के रूप में स्वीकार कर उसकी पूजा करता हो व उसके प्रति श्रद्धा रखता हो। परन्तु वही बहुसंख्य हिन्दू समाज गौमूत्र और गाय के गोबर के लाभप्रद होने पर विश्वास नहीं करता।
विशेषकर तर्कशील, वैज्ञानिक सोच व स्वभाव के लोग तो गौमूत्र व गाय के गोबर को औषधि के रूप में हरगिज़ स्वीकार नहीं करते। बल्कि ऐसा करने व सोचने वालों का तार्किक रूप से विरोध भी करते हैं।
दो वर्ष पूर्व जब कोरोना के क़हर के समय कुछ अति उत्साही हिंदूवादी संगठन के कुछ लोग व इसी विचारधारा के चंद नेता गौमूत्र के सेवन तथा गाय के गोबर के लेप से कोरोना महामारी से बचाव का प्रचार कर रहे थे, उस समय भी वैज्ञानिक सोच रखने वालों व डॉक्टर्स ने इन प्रयासों का विरोध किया था।
हैरानी की बात तो यह कि भारत सरकार के आयुष मंत्रालय, विज्ञान व टेक्नोलॉजी तथा और भी कई केंद्रीय मंत्रालयों ने भावी शोधार्थियों से कथित तौर पर देसी गाय के दूध के साथ साथ उसके मूत्र व गोबर के भी औषधीय गुणों पर शोध प्रस्तावना मांगी थी। सरकार के इस क़दम के बाद ही देश और दुनिया के 576 वरिष्ठतम वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर गौमूत्र व गोबर को लेकर इस तरह का प्रचार बंद कराने की मांग की थी। हस्ताक्षर कर्ताओं में देश के लगभग सभी अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल थे जिनमें कि ज़्यादातर हिन्दू धर्मावलंबी वैज्ञानिक ही थे।
गौमूत्र का व्यवसाय
गौमूत्र का लाभ और किसी को मिले या न मिले परन्तु इसको व्यवसाय बनाकर देश के अनेक बाबा रुपी चतुर्बुद्धि लोग भोले भाले भारतीय हिन्दू समाज से अब तक अरबों रूपये ज़रूर कमा चुके हैं और कमा रहे हैं। इन बाबाओं से आपने गौमूत्र के गुणों का बखान तो टीवी पर या सार्वजनिक सभाओं में ज़रूर सुना होगा परन्तु इन्हें स्वयं गौमूत्र का सेवन करते कभी नहीं देखा होगा।
जब इन गौमूत्र विक्रेता व्यवसायियों पर किसी भी तरह का शारीरिक कष्ट आता है तो यह स्वयं गौमूत्र का प्रयोग नहीं करते बल्कि वे एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की शरण में जाते हैं। परन्तु स्वयं गौमूत्र के कथित लाभ की भरपूर मार्केटिंग ज़रूर करते हैं।
आश्चर्य तो इस बात का है कि मंत्री, सांसद व विधायक जैसे ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी बिना किसी तर्क, बिना किसी वैज्ञानिक आधार के गौमूत्र व गोबर के कथित लाभ की वकालत करने लगते हैं।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्म पाल सिंह तो मेरठ में पत्रकार सम्मलेन में गाय के प्रति अपनी श्रद्धा एवं अंधविश्वास की सभी सीमायें पार कर गये। उन्होंने 'ज्ञान वर्धन ' किया कि गौमूत्र छिड़कने से भूत प्रेत और वास्तु दोष जैसी समस्याओं से निजात मिलती है। अपनी 'ज्ञान गंगा' प्रवाहित करते हुये उन्होंने फ़रमाया कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है जबकि गौमूत्र में गंगा मैय्या का वास होता है'।
कुछ अति आस्थावान परन्तु अतार्किक व अशिक्षित लोग गौमूत्र को कैंसर जैसी असाध्य बीमारी के लिये भी रामबाण औषधि मानते हैं। जबकि वैज्ञानिकों के अनुसार गौमूत्र में 95 प्रतिशत पानी के अतिरिक्त पोटेशियम, सोडियम, फ़ास्फ़ोरस और क्रिएटिनिन जैसे खनिज होते हैं। और इनमें से कोई भी तत्व कैंसर-रोधी या कैंसर को समाप्त करने वाला नहीं है। कैंसर का इलाज केवल एलोपैथिक पद्धति से की जाने वाली कीमियोथ्रैपी ही है, गौमूत्र सेवन हरगिज़ नहीं। हां गौमूत्र खेतों में डालने वाली चीज़ ज़रूर है।
खेतों में इसके प्रयोग से मिटटी को उपजाऊ बनाया जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार गौमूत्र लगभग इंसानों के मूत्र जैसा ही होता है। दरअसल प्राकृतिक रूप से किसी भी प्राणी के शरीर से बाहर निकलने वाला कोई भी तत्व जैसे मल-मूत्र, पसीना, पस, नाक, आंसू आदि कुछ भी मानव के खाने या पीने योग्य नहीं होते।
गौमूत्र के कथित फ़ायदों के प्रति आस्था रखने वालों को यह भी सोचना चाहिये कि जो पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक नीम जैसी अनेक आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों की उपयोगिता को स्वीकार कर चुके हैं। क्या वे अब तक गौमूत्र या गाय के गोबर की औषधीय विशेषता पर ख़ामोश रहते?
और भारत में यदि इसे सर्वमान्य स्वीकृति प्राप्त होती तो इसे चंद 'चतुर व्यवसायियों’ के अतिरिक्त और भी अनेक कम्पनियाँ बेच रही होतीं। अस्पतालों में चिकित्सकों द्वारा मरीज़ों को गौमूत्र और गाय का गोबर इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित किया जा रहा होता।
भारत सहित पूरे विश्व में इसका व्यवसाय फलता फूलता। परन्तु चूँकि यह पूर्णतयः अवैज्ञानिक और केवल आस्था से जुड़ा विषय है इसीलिये इसे वैश्विक स्वीकार्यता हासिल नहीं। कुल मिलाकर गौमूत्र को लेकर हक़ीक़त कम फ़साना ज़्यादा प्रतीत होता है।
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