महाभारत का युद्ध सिर्फ़ कौरवों और पांडवों के बीच नहीं था। यह सत्य और असत्य के बीच था। यह न्याय और अन्याय के बीच था। यह संसाधन और संसाधन-विहीनता के बीच था। यह अहंकार और विनम्रता के बीच था। यह लूट और भागीदारी के बीच था। यह तानाशाही और लोकतंत्र के बीच था। यह सत्ता लोलुपता और राजधर्म के बीच था।