क़रीब एक सौ चौंतीस साल पुरानी कांग्रेस नाम के वटवृक्ष की जड़ें कमज़ोर पड़ने लगी हैं। धरती में जमी जड़ों से होकर पत्तियों तक पहुँचने वाले जीवन रस की धारा सूखती नज़र आ रही है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि तने बेजान हो रहे हैं। पत्तियाँ पीली पड़ रही हैं। राजनीतिक कोलाहल में यह आभास हो रहा है कि 2014 और 2019 की हार के कारण कांग्रेस सन्निपात की स्थिति में पहुँच गई है। लेकिन ऐसी हार तो कांग्रेस पहले भी देख चुकी है। 1977 की हार कांग्रेस के लिए कहीं ज़्यादा शर्मनाक थी जब प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गाँधी लोकसभा का चुनाव भी नहीं जीत पाई थीं। 1885 में स्थापना के बाद और 1947 में आज़ादी की लड़ाई जीतने तक कांग्रेस की हार-जीत के कई मुकाम आए। लेकिन कांग्रेस एक पार्टी के तौर पर इतनी विचलित कभी नज़र नहीं आयी।