आप और बीजेपी के बीच वोटों का फ़ासला सिर्फ़ तीन फ़ीसदी का है। बीजेपी को 39% और आप को 42% वोट मिले। दिल्ली में अगर लोकसभा के वोटों को छोड़ दिया जाये तो 2013 के बाद ये बीजेपी को मिलने वाले सबसे अधिक वोट हैं। 2015 में उसे 32% वोट तो 2017 में एमसीडी में 36%, 2020 के विधानसभा चुनाव में 38% और 2022 में 39% वोट मिले। यानी बीजेपी लगातार अपने वोट बढ़ा रही है।
2017 के एमसीडी चुनाव में केजरीवाल सरकार की तमाम कामयाबियों के बावजूद बीजेपी को 181 सीटें मिली थीं और बिजली-पानी मुफ़्त करने और सरकारी स्कूलों को सुधारने और मुहल्ला क्लीनिक बनाने के दावों के बाद भी दिल्ली के लोगों ने उसकी झोली में सिर्फ़ 49 सीटें ही दी थीं। यानी दिल्ली मॉडल को दिल्ली के लोगों ने ही रिजेक्ट कर दिया था। अब यही दिल्ली मॉडल उसे 2022 में बंपर सीटें नहीं दिला पाया है।
ये तो भला हो कांग्रेस का कि वो सिमट गई और महज़ 11% वोट लेकर तीसरे नंबर पर आयी। अगर उसने तीन फ़ीसदी वोट और ले लिया होता तो आप को शर्मनाक हार का मुँह देखना पड़ता। क्योंकि दिल्ली में अब ये बात साफ़ हो गई है कि आप हिंदुत्व का नारा लगाने के बाद भी बीजेपी का वोट नहीं ले पा रही है। उसे बीजेपी विरोधी वोटों का ही सहारा है। उलटे ये कहा जा सकता है कि हिंदुत्व की वजह से उसे इस बार घाटा लग गया। उसे मुस्लिम बाहुल्य इलाक़ों में हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को 9 में से 7 जीत ऐसे ही वार्डों में मिली है। ऐसे में नोट पर लक्ष्मी गणेश की तस्वीर लगाने की बात से आप को नुक़सान ही हुआ। कम से कम दिल्ली में ये बात कही जा सकती है।
सिसोदिया के साथी मंत्री सत्येंद्र जैन पाँच महीनों से जेल में हैं और चुनाव के दौरान जेल के अंदर के उनके वीडियो मीडिया में रिलीज़ किये गये और आप की ईमानदार छवि को चूना लगाने की जम कर कोशिश बीजेपी की तरफ़ से हुई।
यहाँ तक कि कुछ स्टिंग ऑपरेशन के वीडियो भी सामने लाये गये। पिछले दिनों लोकनीति और सीएसडीएस ने दिल्ली का सर्वे किया। इस सर्वे में ये जानकारी सामने आयी कि दिल्ली में अब लोग पहले से कम आप नेताओं की ईमानदारी पर यक़ीन कर रहे हैं। ये इस बात का सबूत है कि आप के ख़िलाफ़ बीजेपी का प्रचार रंग ला रहा है और जो पार्टी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की उपज है उसकी ईमानदारी अब संदेह से परे नहीं है। ऐसे में केजरीवाल की पेशानी पर बल पड़ रहे हों तो हैरान नहीं होना चाहिये।
आप ने पिछले दिनों गुजरात चुनाव के दौरान खुद को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर पेश किया! इसमें कोई दो राय नहीं है कि वो अकेली पार्टी है जिसने इतने कम समय में दो राज्यों में सरकार बनायी है और बहुत संभव है कि गुजरात नतीजों के बाद वो औपचारिक तौर पर राष्ट्रीय पार्टी बन भी जाये। लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि राष्ट्रीय पटल पर मोदी को चुनौती देने की बात करना अलग बात है और हक़ीक़त में उस स्थिति में पहुँचना अलग सवाल है।
मोदी को 2024 में चुनौती देने और विपक्ष के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरने की महत्वाकांक्षा पालने के बीच आप को पहले लोकसभा की सीटें जीतनी पड़ेंगी। अभी तक वो दिल्ली में यानी अपने सबसे बड़े गढ़ में एक भी लोकसभा की सीट नहीं जीत पायी है। 2014 में भी वो सारी सात सीटें हारी थी और 2019 में भी वो ख़ाली हाथ ही रही। यहाँ तक कि पंजाब में भी जहां उसने 2014 में चार सीटें जीती थीं, सिर्फ़ एक सीट ही जीत पाई। और वो सीट भी हाल के उपचुनाव में हार गई। यानी राष्ट्रीय पार्टी होने का दावा करने वाली पार्टी का आज की तारीख़ में लोकसभा में एक भी नुमाइंदा नहीं है। हालाँकि राज्यसभा में उसके दस सांसद ज़रूर हैं।
ऐसे में महज़ एमसीडी के चुनाव जीतने के बाद आप बड़ी-बड़ी बात ज़रूर कर ले पर हक़ीक़त ये है कि अभी उसे लंबा सफ़र तय करना है। दिल्ली अभी भी बहुत दूर है!
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