
प्रिया रमानी और एम. जे. अकबर
आख़िर एमजे अकबर ने अपना मुँह खोल ही दिया। जो बोला वह उनके क़द से मेल नहीं खाता। हालाँकि जो किया, वह तो क़तई उनकी गरिमा से मेल नहीं खाता। आवाज़ उठाने वाली महिला पर मुक़दमा ठोक दिया। यह भी कहा कि चुनाव से पहले ये शिकायतें उछली हैं, ज़रूर इनके पीछे कोई एजेंडा है। अब और हस्तियाँ भी आहत महिलाओं को अदालत में घसीटेंगी। ‘संस्कारी’ अभिनेता आलोक नाथ पहल कर चुके हैं।
पर अकबर अकबर हैं। नामी और क़ाबिल पत्रकार। जिसने एक दशक तक राज किया। पत्रकारिता में कम उम्र में तहलका मचा दिया। राजनीति में जब भी गये मात खाई। पहली बार कांग्रेस में शामिल हुये। गांधी की मौत के साथ साथ उनकी भी राजनीतिक मौत हो गई। दुबारा पत्रकारिता में आये। फिर राजनीति में गये उस पार्टी में जिसकी ज़िंदगी भर आलोचना करते रहे थे। मंत्री भी बन गये। क़िस्मत का खेल देखिये अतीत उन्हे डँसने के लिये सामने खड़ा हो गया। कम-से-कम बारह महिलाओं ने उन पर छेड़खानी और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये हैं। पहले वे शांत रहे। फिर उलटी कर दी। देश लौटते ही कहने लगे कि चुनाव के पहले कोई एजेंडा काम कर रहा है। यह उन्होंने नहीं बताया कि इतनी बड़ी संख्या में महिलायें उनके खिलाफ षडयंत्र क्यों रचेंगी ? इससे उनको क्या राजनीतिक लाभ मिलेगा ? विभिन्न क्षेत्रों की और हस्तियों पर भी तो दर्जनों शिकायतें महिलाएँ सामने लाई हैं।