महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक उथल-पुथल के बाद विरोधी उद्धव ठाकरे समूह द्वारा दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे धड़े से अपनी प्रतिक्रिया फिर से तैयार करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने दलबदल और अयोग्यता सहित विभिन्न संवैधानिक मुद्दों पर शिवसेना और उसके असंतुष्ट विधायकों की याचिकाओं पर सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे खेमे और एकनाथ शिंदे धड़े ने आज यह साबित करने की कोशिश की कि पार्टी पर किसका नियंत्रण हो। दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी दलीलें रखीं।
बता दें कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के क़रीब 40 बागी विधायकों के जून में उनके खिलाफ विद्रोह करने के बाद उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में पद छोड़ दिया था। इसके बाद शिंदे खेमे ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई है। शिंदे खेमा अब शिवसेना पर भी इस आधार पर दावा कर रहा है कि उद्धव ठाकरे में बहुमत का विश्वास नहीं रहा था। जबकि उद्धव खेमा यह दावा कर रहा है कि बागियों ने दबबदल किया है।
टीम ठाकरे ने शिंदे के नेतृत्व वाले दूसरे खेमे पर पार्टी विरोधी रुख को सही ठहराने के लिए एक नकली कहानी गढ़ने का आरोप लगाया है। टीम ठाकरे ने कोर्ट में दलील दी कि फ्लोर टेस्ट और शिंदे की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति सहित सभी घटनाएँ एक जहरीले पेड़ के फल हैं, जिसके बीज दोषी विधायकों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में बेशर्मी से बोए गए थे।
अगर 2/3 विधायक पार्टी से बाहर आते हैं तब? सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल पर टीम ठाकरे ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में क़ानून के तहत शिवसेना के गुटों का विलय होना चाहिए या नए समूह को एक राजनीतिक दल बनाना चाहिए। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, ठाकरे खेमा ने कहा, 'शिंदे खेमा अगर एक नई पार्टी बनाता है तो उन्हें चुनाव आयोग के साथ पंजीकरण करना होगा, लेकिन अगर वे किसी अन्य पार्टी में विलय हो जाते हैं तो कोई पंजीकरण की ज़रूरत नहीं है।'
टीम ठाकरे ने कहा कि 1/3 पार्टी में अभी भी शेष हैं बचे हैं और 2/3 यह नहीं कह सकते कि 'हम पार्टी हैं'।
उद्धव ठाकरे की ओर से दलीलें दी गईं कि 'बाग़ी गुवाहाटी में बैठे थे और खुद को राजनीतिक दल घोषित कर रहे थे। उनका उद्देश्य दलबदल को वैध बनाना है। उन्होंने जो भी काम किया है वह नियमों का उल्लंघन है। महाराष्ट्र में बनाई गई सरकार अवैध है, इसलिए इसके द्वारा लिए गए सभी निर्णय भी अवैध होंगे।'
जब टीम ठाकरे ने पूछा कि क्या दलबदल विरोधी कानून अभी भी लागू है या यह कुछ ऐसा है जो सिर्फ कागज पर है, तो टीम शिंदे ने जवाब दिया कि यह कानून उस नेता के लिए नहीं है जो अपनी ही पार्टी के सदस्यों का विश्वास खो चुका है और किसी तरह उन्हें बंद करना चाहता है।
शिंदे खेमा ने दलील दी कि "... ठाकरे गुट अयोग्यता नोटिस का दावा करता है लेकिन अब तक किसी को भी अयोग्य घोषित नहीं किया गया है। सदन के बाहर आयोजित पार्टी की बैठक में शामिल नहीं होना दलबदल का आधार नहीं है। पार्टी के अंदर असंतोष दलबदल के लिए आधार नहीं है।"
शिंदे खेमे ने यह भी कहा, '(ठाकरे) समूह चुनाव आयोग के पास गया और कहा कि 'हम राजनीतिक दल हैं'। हमें चुनाव आयोग की कार्यवाही को अयोग्यता की कार्यवाही के साथ मिलाना नहीं चाहिए। पार्टी के भीतर अंतर-दलीय विद्रोह पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के समूह से अलग है। यह अंतर पार्टी का मुद्दा दलबदल का आधार नहीं है।'
शिंदे धड़े ने कहा, 'वे चाहते हैं कि अध्यक्ष से सभी शक्तियां छीन ली जाएं और सुप्रीम कोर्ट को दलबदल न्यायाधिकरण बनाना चाहते हैं। यह अभूतपूर्व है। यह वह जगह नहीं है जहां सुनवाई होनी चाहिए।'
अपनी राय बतायें